लेडीज वाॅशरुम-कहानी

 लेडीज वाॅशरुम-कहानी

"ये आदमी झूठ बोल रहा है सर! यह जान बूझकर लेडिज वाॅशरुम में घूस था।" शर्मिष्ठा की शिकायत थी।

"देखीये मैम! आपसे पहले मैं यहां आ चूका था। आप मेरे बाद में आई थी और मैं पहले भी कह चूका हूं कि जेट्स टाॅयलेट पर ताला जड़ा था। बहुत मजबूरी में मुझे यहां आना पड़ा।" पुलकित ने सफाई दी।

ब्रांच मैनेजर शलभ जोशी बड़े इत्मीनान से सारा मामले को समझने में लगे थे। एक-एक कर ऑफिस के सभी कर्मचारी वहां जमा हो गये।

"सर! मुझे तो लगता है मेरा मोबाइल नम्बर वाॅशरुम की दीवार पर इसी आदमी ने लिखा है। पता नहीं जाने कैसे-कैसे लोगों के मुझे फोन आ रहे है। मैं बहुत परेशान हो गयी हूं सर।" रिद्धिमा ने आगे बढ़कर अपनी निजी शिकायत कह सुनाई।

"ओहहहहह! तो तुम वही आदमी हो जो हमारे ऑफिस की महिलाओं के नम्बर जेन्टस वाशरुम में लिखकर आते हो। हो न हो वे गन्दी और ऊट पटांग बातें भी तुम ही टाॅयलेट की दीवारों पर लिखते होंगे? तुम तो हमारे ऑफिस के कर्मचारी भी नहीं लगते?" मैनेजर शलभ जोशी ने कहा।

"सर! मैं पहले भी बता चूका हूं कि मैं जरूरी काम से और ऑफिस शुरू होने के पहले ही यहां आ गया था। बाथरुम की दीवारों पर कौन क्या लिखता है मुझे कुछ पता नहीं है।" पुलकित ने कहा।

"देखो मिस्टर! सीधे-सीधे अपना गुनाह कबूल कर लो, वर्ना पुलिस तो तुमसे कबूल करवा ही लेगी।" शर्मिष्ठा अकड़ते हुये बोली।

पुलकित कुछ पल मौन खड़ा रहा। शर्मिष्ठा के साथ सभी को लगा कि पुलकित डर गया है।

"कुछ कहोगे या फिर पुलिस को बुलाऊं?" शलभ जोशी ने आगे कहा।

पुलकित की खामोशी अब सभी को चुमने लगी थी।

"देखो बेटा! सभी को साॅरी बोलकर चुपचाप निकलने में ही तुम्हारी भलाई है!" वरिष्ठ कर्मचारी सिद्धांत गुप्ता बोले।

गुप्ता जी की बात ऑफिस में कोई टाल नहीं सकता था। अब सभी पुलकित द्वारा साॅरी बोलने की प्रतिक्षा कर रहे थे।

"देखीये सर! मैं पीएफ डिपार्टमेंट से हूं और यहां इंस्पेक्शन के लिए आया हूं।" पुलकित ने कहा।

"मैंने कुछ गल़त नहीं किया। नेचुरली मुझे लेडिज टाॅयलेट जाना पड़ा क्योंकि जेन्टस् टाॅयलेट बंद था। आपको पुलिस बुलानी है तो बुला सकते है। मेरा जवाब तब भी वही होगा जो अब है।" पुलकित बोला।

वह चेयर पर बैठ गया।

शलभ जोशी के चेहरे के भाव बदल गये। अधिकांश कर्मचारी भी शांत मुड में दिखाई दिये। ऑफिस के कई लोगों ने पीएफ लोन के अप्लाई किया था। कुछ के पीएफ खाते में वित्तीय गड़बड़ीयां थी जिसकी शिकायत कर्मचारी पीएफ ऑफिस में कई बार कर चुके थे। उन्हीं शिकायतों के निवारणार्थ पुलकित को शलभ जोशी के कार्यालय में जांच-पड़ताल के लिए भेजा गया था।

"सर! हम सभी ने अनजाने में आपको बहुत परेशान किया। हम सभी को माफ कर दीजिए। आईये मेरे केबीन में चलते है!" शलभ जोशी ने बड़ी विनम्रता से इंस्पेक्शन अधिकारी पुलकित से कहा।

शर्मिष्ठा और रिध्दिमा सिर झूकाये खड़ी थी।

"आप सभी की शिकायत जायज है। किन्तु इमरजेन्सी में वैकल्पिक चीज़ों का इस्तेमाल हम सभी ने कभी न कभी किया है। इसे मेरा एक निर्दोष कृत्य और गैर इरातन अपराध जानकर आप सभी मुझे माफ करें।" इतना बोलकर पुलकित शलभ जोशी के साथ चल दिये।

शर्मिष्ठा मुस्कुरा दी। सभी प्रसन्न थे। आज वर्षों पुरानी उनकी पीएफ संबंधी समस्याओं के निराकरण की उम्मीद दिखाई दी थी। कर्मचारी अपनी-अपनी समस्या का प्रदर्शन पुलकित के सामने करने की तैयारी में व्यस्त हो गये।


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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