दुष्कर्मी -कहानी

 दुष्कर्मी -कहानी


"सुमन! सुमन! अरे कहां मर गयी?" बाथरूम में नहा रहे कैलाश ने आवाज़ लगाई।


"जीeee आईssss!" सुमन ने लम्बा उत्तर दिया।

बर्तन मांजना छोड़ सुमन भागते हुये बाथरूम के द्वार पर आ पहूंची।


"जी! आपने बुलाया?" सुमन ने पूछा।


"हां! ये पीठ पर साबून मल दे।" कैलाश ने रौबदार आवाज़ में कहा।


"जी!" सुमन ने कहा। वह कैलाश की पाठ पर साबून मलने में व्यस्त हो गयी।


"अच्छा सुन! आज शाम को मेरे कुछ दोस्त खाने पर आ रहे है।" कैलाश ने कहा।


"मगर आप तो जानते है मेरी माहवारी चल रही है। ऐसे में खाना कैसे बनाऊंगी?" सुमन ने कहा।


"अरे यार तेरे पास हमेशा कुछ न कुछ बहाना होता है! चल छोड़ मुझे नहाने दे। मैं उन्हें बाहर ही खाना खिला दूंगा।" कैलाश झूंझलाते हुये बोला। वह नहाने लगा।


फोन की घंटी सुनकर सुमन ने फोन उठाया। ये उनकी हालिया ब्याहता बेटी समृध्दि का करूण स्वर था।


"क्या! विराज ने तुझ पर हाथ उठाया? उसकी इतनी हिम्मत! तू वही ठहर! अभी आकर उसे सबक सिखाता हूं।" कैलाश फोन पर समृध्दि से बात कर रहे थे।


"ये कोई नहीं बात नहीं जी! विराज अक्सर हमारी बेटी को मारता पीटता है?" सुमन बोली।


"तो तुमने मुझे अब तक बताया क्यों नहीं? मैं विराज को नहीं छोडूंगा। उसने मेरी फूल जैसी बेटी पर हाथ कैसे उठाया?" कैलाश कपड़े पहनते हुये बोला।


"जैसे आप उठाते है हाथ मुझ पर! वैसे ही विराज ने उठाया तो क्या गल़त किया? अब समृध्दि उसकी बीवी है वह जैसा चाहे रखे, समृध्दि को हर हाल में उसके साथ रहना होगा।" सुमन बोली।


कैलाश चूप था। जैसे किसी ने उसे अंदर से झंझोड़ दिया हो। वह सुमन से नज़र नहीं मिला पा रहा था।


"मैंने जानवरों की तरह इस घर में काम किया। नौकरानी बनकर आपकी सेवा की। दिन को दिन समझा, रात को रात नहीं समझी। आपकी हर जायज-नाजायज इच्छा को पूरा किया। जब आपकी इच्छा हुई आपने मुझे नोंचा-खसोंटा! मैंने उफ्फ तक नहीं किया।" सुमन बोल रही थी।


"शायद पत्नी को यह सब भोगना ही पड़ता है! समृद्धि के हालात देखकर तो यही लगता है। पति जो करे वह सही है। पत्नी को सब सहना होता है। इसलिए आप विराज से कुछ मत कहीये।" सुमन का गला रूंध आया था।


"तुम सच कह रही हो सुमन! शायद मेरे पापों की यही सज़ा है।" कैलाश बोले। वे शांत थे। सुमन पर किये गये अपने किये व्यवहार से वे शर्मिन्दा थे।


"पापा! पापा मैं आ गयी।" समृद्धि घर के अंदर दाखिल होते ही बोली।


"अरे समृद्धि तु।" हर्षीत कैलाश ने समृध्दि को हृदय से लगा लिया।


"पापा! आपको अपने किये पर पछतावा है यह जानकर हमें बहुत अच्छा लगा।" समृद्धि बोली।


"हमें?" सुमन बोली।


"हां मां! विराज भी मेरे साथ आये है और यह सब उन्हीं का प्लान था।" समृद्धि बोली।


"प्लान! कैसा प्लान!" कैलाश ने पूछा।


"यही कि अपनी बेटी को दुःखी होते हुये एक पिता कभी नहीं देख सकता। मैंने समृध्दि पर अत्याचार करने की झूठी खबर आप तक पहूंचाई थी जिससे कि हो सकता था आप यह अपनी बेटी को दुःखी देखकर सासू मां पर अत्याचार करना बंद कर दे! और हमारी योजना काम कर गयी। आपको अपनी गलती का अहसाह हो गया।" विराज ने आगे बताया। वह समृद्धि के पीछे-पीछे घर में दाखिल हुआ था।


सुमन और कैलाश हतप्रद थे। कैलाश ने पुनः हाथ जोड़कर सुमन से माफी मांगी। सुमन ने उन्हें माफ कर दिया।

ससूर दामाद खुशी-खुशी घर गृहस्थी की बातें करने लगे। सुमन चाय बनाने किचन में चल दी। समृद्धि भी उसके पीछे-पीछे रसोईघर में जाकर व्यस्त हो गयी।


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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