व्रत-लघुकथा
व्रत-लघुकथा
सावन मास शुरू होते ही घर में व्रत रखने की होड़ शूरू हो गयी। किसका व्रत प्रभावी और आकर्षक हो, ऐसा प्रयास किया जाने लगा। छूटकी ने पिता से पूछा कि उन्होंने किस तरह का व्रत किया है? पिता ने बताया कि वे पूरे दिन में केवल एक समय रात्री में भोजन करेंगे। मां ने छूटकी को बताया कि वे दोनों समय फलाहार पर निर्भर रहेंगी। बड़ी बहन तो निराहार उपवास कर रही है। छूटकी अपनी दादी के पास पहूंची। दादी केवल लौंग के साहरे संपूर्ण दिवस व्रत का पालन करेंगी।
दादा जी छूटकी के मनोभाव समझ गये।
"बेटी! ईश्वरीय भक्ति के अनेक रास्ते है। श्रद्धा और समपर्ण हमें भगवान के नजदीक लाते है जिससे सद्कर्मों की प्रेरणा मिलती है।" दादाजी ने समझाया।
छुटकी को पता चला कि अच्छे कार्यों की प्रेरणा व्रत-उपवासों से मिलती है। सच्ची श्रद्धा से भूख-प्यास को नियंत्रित किया जा सकता है।
समाप्त
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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