दो बदन- कहानी

 दो बदन-कहानी

    हर रोज की तरह ऑफिस से लौट रहा शिव उस अनजान लड़की को देखते ही रूक गया। जोरो की वर्षा हो रही थी। रास्ते पर वाहनों की भीड़ थी लेकिन कोई भी युवती का आग्रह स्वीकार नहीं कर रहा था। ऑटो टैक्सी वाले रूकने को तैयार न थे। युवती के चेहरे के भाव देखकर शिव को अनुमान हुआ कि शायद लड़की बिमार है। उसे हाॅस्पीटल जाने के लिए सवारी गाड़ी की तलाश थी। शिव ने अपनी कार युवती के पास ही रोक दी। जैसे कोई अदृश्य शक्ति उससे यह सब करवा रही हो। कार का दरवाजा खुल चूका था। युवती बिना वक्त गंवाये कार की पिछली सीट पर बैठ गयीं। वह दर्द से कराह रही थी। शिव ने कार दौड़ा दी। नजदीक ही संजीवनी हाॅस्पीटल था। युवती ने अपना नाम गौरी बताया। मोहपाश में बंधा शिव गौरी को हाॅस्पीटल में एडमिट करवाने के बाद भी वही ठहर रहा। अनायास ही शिव उस गौरी का अघोषित पति बन गया। कागजी कार्यवाही में गौरी के पति के नाम स्थान पर शिव का नाम अंकित हुआ। हाॅस्पीटल स्टाॅफ के साथ एडमिट अन्य मरीजों के परिजन भी शिव को गौरी का पति मान बैठे थे। शिव की देखभाल से गौरी भाव विभोर थी। बेडरेस्ट कर रही गौरी नहीं चाहती थी शिव उसे छोड़कर कहीं जाए। शिव का नि:स्वार्थ समर्पण गौरी का हृदय भेद गया। शिव अब गौरी का था और गौरी, शिव की। बिस्तर पर लापरवाही वश गौरी का अंग प्रदर्शन शिव से सहा नहीं गया। उसने निर्दोष दृष्टी से गौरी के निजी अंग पर कंबल ढक दिया। इस घटना से गौरी अविभूत थी। पर स्त्री के कामुक अंग का दर्शन हेतु पुरूष सदैव लालायित नज़र आते है किन्तु शिव ऐसा कदापि न था। वह गौरी पर प्रेम रुपि दृष्टीपात कर रहा था। शिव का निर्दोष प्रेम गौरी अनुभव कर रही थी। वह गदगद थी। गौरी चाहती थी की जब तक हाॅस्पीटल से उसकी छुट्टी न हो जाये, शिव उसके हाथ में अपना हाथ रखकर उसे हिम्मात देता रहे। शिव के अनेक बार आग्रह करने पर भी गौरी निंद लेने को राज़ी नहीं हुई। उस संदेह था कि आंखें बंद करते ही शिव उसकी दृष्टी से दूर हो जायेगा। गौरी नहीँ चाहती थी कि शिव एक पल भी उसकी नज़रों से ओझल हो। शिव स्वयं गौरी की उपस्थिति से प्रसन्न था। ऑपरेशन थियेटर में मात्र आधे घंटे के लिए गौरी से दूरी पर शिव व्याकुल हो उठा। इस न्यूनतम समय में गौरी को वह अपना सबकुछ स्वीकार कर चूका था। हाॅस्पीटल से डिस्चार्ज होने पर गौरी चाहती थी कि वह शिव के कंधों के सहारे सीढ़ीयां ऊतरे। किन्तु जब शिव ने गौरी को छूआ तक नहीं तब गौरी को अपने प्रेम पर संदेह हुआ। शायद यह उसका भ्रम था। शिव एक विवाहित पुरूष है तथा संभवतः वह अपनी पत्नी से असीम प्रेम करता हो? इसी ऊधेड़बून में गौरी कार की पिछली सीट पर बैठने लगी।

"अब कार की पिछली सीट पर बैठने की आवश्यकता है!" शिव ने गौरी से कहा।

इतना सुनते ही गौरी खिल उठी। उसके चेहरे की रौनक देखते ही बनती थी। गौरी को विश्वास हो गया कि शिव भी उससे उतना ही प्रेम करता है जितना वह शिव से करती है।

चेहरे पर मुस्कान लिए गौरी कार में शिव के बगल वाली सीट पर बैठ गयी। उसका सिर शिव के कंधे पर था। शिव ने गौरी सिर पर अपना हाथ फेरा। इस अनुभव ने गौरी को न केवल संरक्षण दिया अपितु उसके दुःखी गृहस्थी को बहुत बड़ा संबल मिला। गौरी चाहती थी शिव उसे एक प्रेम की निशानी दे। शिव स्वयं गौरी का मस्तक चूमना चाहता था किन्तु वह साहस जुटा न सका। पति का शोषण सह रही गौरी के लिए शिव का निश्छल प्रेम किसी पुनर्जन्म सरीखा था। वह ईश्वर को बारंबार धन्यवाद दे रही थी कि उन्होंने शिव को उसकी अधुरी दुखमय जीवन में आशा की किरण बनाकर भेजा। वह शिव पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देना चाहती थी किन्तु शिव था कि वह गौरी को अपने हृदय की देवी मान चूका था। जिसे वह जीवन पर्यन्त पूजना चाहता था। शिव का स्वयं के प्रति इतना आदर देखकर गौरी को अपने अंदर एक विशेष विभूति का आभास हो रहा था। बीस वर्षों के भी दोनों का परस्पर निश्छल और निष्कंलक प्रेम अनवरत जारी था जहा वृध्द होने के बाद भी शिव में गौरी और गौरी में शिव के प्राण बसते थे।


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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