नारी तू नारायणी-कहानी
नारी तू नारायणी-कहानी
शादी के पूर्व कौमार्य खो चूकी युवतियों की सहेली सुमति को स्वयं पर कोई गर्व नही था किन्तु सुमति की सहेलियां जाने अनजाने सुमति की सहेली होने पर गर्व कर बैठती। सुमति कोई नकचढ़ी और घमंडी किश्म की लड़की नहीं थी जिसके पास आने भर से युवक कतराते हो। वह मिलनसार और खुशमिजाज अवश्य थी किन्तु उसने अपनी मर्यादा कभी नहीं लांघी। दोस्तों के साथ घुमने-फिरना उसे पसंद था लेकिन वह कभी लेट नाइट घर से बाहर नहीं रही। उसका तर्क था की देर बाहर घूम रही लड़की की अस्मत लूटी जा सकती है इसमें कुछ नया नहीं है। यदि युवक भी आधी-रात में सुनसान स्थान पर मटरगश्ती करेंगे तब वे भी लुटपाट का शिकार हो सकते है। जिसके पास जो होगा वह अवसर पाकर लूट लिया जायेगा। लड़को का धन लुटेगा और लड़कीयों की इज्जत। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। बाकी नब्बे प्रतिशत युवतियों की तरह सुमति ने भी शराब का स्वाद चखा था। किन्तु उसने ये कभी किसी को बताया नहीं। वह रहस्यों की खो थी जिसमें अन्य लड़कीयों की तरह बेहिसाब राज़ दफन थे। मगर इच्छा विरूध्द कभी कोई उससे कुछ भी उगलवा नहीं सका। सुमति जानती थी कि पुरुष शक्ती में उससे अधिक बलवान है और वह चाहकर भी इस मामले में उनसे आगे नहीं निकल सकती। यह गाॅड गिफ्ट है और अन्य महिलाओं को इस सार्वभौमिक सत्य को स्वीकारने की उसने कई बार वकालत भी की।
"स्त्री-पुरूष को असमान प्रकृति ने ही बनाया है तब यहां औरतों को मर्दों के समान बताने का कूटनीतिक षडयंत्र नहीं तो क्या है। पुरूषों को ही भारी-भरकम अटैची क्यों उठानी चाहिये यदि महिला उसके समान है तो आगे बढ़कर उसे वज़नदार कार्य करना चाहिये। ठीक उसी तरह पुरूष बच्चें पैदा नहीं कर सकते। वे केवल अपना अंशदान कर सकते है। नौ माह तक गर्भ में शिशू को एक महिला ही रख सकती है क्योंकी उसके पास गर्भाशय है। ये और बात है कि साइंस इतनी तरक्की कर रहा है कि आने वाले दिनों में पुरुष में बच्चों को जन्म दे सके तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।" सुमति के तर्क थे।
उसके क्रांतिकारी विचारों को भांप कर युवक सुमति से चाहकर भी नजदीकियां नहीं बढ़ा सके। इसका अर्थ ये कतई नहीं था कि सुमति खूबसूरत नहीं थी। उसकी सुन्दरता पर उसे आये दिन कमेंट्स मिलते थे जिन्हें वह नाॅरमली लिया करती थी।
औरतों की तारीफें और उनके अद्भुत साहस की प्रंशसा करते हुये उनसे अतिरिक्त कार्य करवाने की कूटनीति चाल वर्षों पुरानी है। और यह इक्कीसवीं सदी में चरम पर है। सुमति ने अपनी दादी और नानी को केवल घर और बच्चें संभालते हुये देखा था किन्तु अब उसकी मां उक्त पारंपरिक कार्यों के साथ-साथ वह सब कर रही है जिसे कभी दस हाथ वाली देवी जंगदम्बा ही कर पाती थी। बच्चें पैदा करना और गृहस्थी को संभालना औरत का प्राकृतिक कर्तव्य था और है किन्तु अब महिलाओं को इसके अतिरिक्त घर के बाहर जाकर नौकरी भी करनी है। पैसा कमाना है। ऑफिस से लौटते हुये शाम को सब्जी-भाजी खरीदते हुये घर आना है क्योंकी यहां औरत की शारीरक थकान ऑफिस से लौटे पुरुष के सामने कोई मायने नहीं रखती। उसे तुरंत खाना बनाने में जुट जाना है। इसके पूर्व चाय-नाश्ता पति-बच्चें और परिवार को परोसना भी है।
सभी को खाना खिलाने और रसोई का काम निपटाने में आधी रात हो जाती है। कुछ पल मोबाइल में घुसना चाहा तो पति ने अपनी बाहों में जकड़ लिया। उन्हें तृप्त किया किन्तु स्वयं पिछली बार तृप्त कब हुई थी उसे याद नहीं है।
बच्चों के स्कूल में पैरेन्ट्स मीटींग हो - 'तुम चली जाना। मुझे बहुत काम है।' 'सास या ससूर को डाॅक्टर्स को भी तुम ही दिखा लाना।' मुझे ऑफीस से लेट हो जायेगा, मगर हां तुम ऑफिस से छुट्टी ले लेना।'
कई लोग विज्ञापन के घोर विरोधी होते है मगर यदि ठीक से परखा जाए यो विज्ञापन विरोधी लोगे के यहाँ वे ही घर उपयोगी सामग्री अधिक मिलेगी जो वे विज्ञापन देखकर ही खयीर लाये है। संबंधित का दिमाग मात्र विज्ञापन का विरोधी था मन तो सामग्री खरीदना चाहता था और उसने सामग्री लाकर घर मे संजा दी।
परपुरूष के प्रति आकर्षण सुमति को भी हुआ। उनसे हाथ मिलाना, गले लगाना सुमति ने भी किया। किन्तु इससे आगे न स्वंय बढी और न ही युवकों को बढ़ने दिया। यहां उसने अपने मन को अपने दिमाग पर कभी हावी होने नहीं दिया।
रेप की घटनाएं सुमति ने सुनी, पढ़ी किन्तु इतने वर्षों में उसके साथ कभी कोई दुर्व्यवहार नहीं हुआ। उसने फैशन से अधिक शरीर को ढकने और सुविधा को अधिक महत्व दिया। उसके दोस्तों में सभी स्वभाव के युवक थे जिनसे वह देर रात भी व्हाइटसप चैटिंग करती। कामुक युवकों के इरादों को उसने अपने स्तर पर न केवल सबक सिखाया अपितु उसके प्रति युवकों के निजी विचार में पवित्रा भी वही लेकर आई। अच्छे-बूरे सभी तरक के लड़के सुमति का तारिफ करने से खूद को रोक नहीं सके।
सुमति जैसी युवती हर लड़की में है। आवश्यकता आत्म पहचान की है। सुमति आज भी निर्भिक और निडर है। आम सभी तरह की समस्याओं से लड़ते हुये वह अपना जीवन आनन्द और उत्साह से जी रही है।
सर्वाधिकार सुरक्षित-
जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर
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