दूसरा आदमी-कहानी
दूसरा आदमी-कहानी
"तब तू क्या दूसरा आदमी करेगी?" पड़ोस की काकी बोली।
"काकी इसमें गल़त क्या है? राजेश और मैं एक-दूसरे से प्रेम करते है और आज नहीं तो कल राजेश मुझे जरूर अपनायेगा।" रूशाली बोली। वह अपनी फुटवेअर शाॅप पर सफाई कर रही थी।
"लेकिन रूशाली! राजेश के लिए अपने दोनों भाई सबकुछ है। मुझे तो लगता है कि अपने भाईयों की परवरिश में वह अपना पूरा जीवन खपा देगा।" रूशाली की सहेली नंदा ने कहा।
"लेकिन दूसरा आदमी करने की जरूरत क्या है? लोग क्या कहेंगे? एक पति के जीवित होते हुये दूसरा आदमी करना कितना बड़ा पाप है? अच्छा बड़ी दुकानदारी है इसमें ही जीवन कट जायेगा।" काकी ने रूशाली से कहा।
"काकी! रतन अपनी बचपन की शादी को भूल चूका है फिर रूशाली उसे क्यों याद रखें। और वेसै भी यह पुरानी बातें है जिन्हें भूलने में ही सबकी भलाई है।" नंदा ने कहा।
रतन की बात सामने आते ही रूशाली मायुस अवश्य हो जाती किन्तु जैसे-तैसे वह खूद को संभाल लेती। बपचन में ही उन दोनों की शादी करने वाले दोनों के पिता अब इस दुनिया में नहीं थे। रतन ने भी कभी रूशाली से मिलने की कोशिश नहीं की। हां! मगर राजेश के पहले तक रूशाली चाहती थी की रतन शहर आकर उसे अपना ले। उसने स्वयं गांव जाकर रतन से बात की थी। मगर रतन तब तक किसी और युवती के प्रेम में था अतः वह रुशाली को अपनाना नहीं चाहता था।
रूशाली ने काकी की तानों को कभी गंभीरता से नहीं लिया। वे जब भी बाजार आती रूशाली से मिले बिना नहीं जाती। नंदा ने किसी तरह काकी को चाय पीलाकर विदा किया।
राजेश की पान दुकान शहर के बाजार में थी जहां से राजेश और रूशाली दोनों एक-दूसरे को देखा करते थे। रूशाली ने फूटवेअय के साथ-साथ कटलरी के सामना भी विक्रय हेतु दुकान में रख लिया था। कामकाज इतना बढ़ गया कि उसे तीन लड़कीयां हेल्प के लिए अपनी दुकान पर रखनी पड़ी।
राजेश हिसाब-किताब में रूशाली की मदद कर दिया करता। वह अक्सर रूशाली की दुकान पर बे रोकटोक आया-जाया करता था।
"ये लीजिए!" रूशाली ने जूतों का पैकेट राजेश की तरफ बढ़ाते हुये कहा।
"अरे रूशाली लेकिन इसकी क्या जरूरत है?" राजेश ने कहा।
"आपके जूते पूराने हो गये है। उन्हें बदलकर दूसरे पहन लीजिए। और हां शाम को लौटते समय अपने भाईयों के ही ले जाईयेगा ताकि आप भी ये जुते पहन सके।" रूशाली ने कहा।
रूशाली राजेश की इतनी कैयर करती मानो वह उसकी पत्नी ही हो। सारे बाजार में राजेश और रूशाली की प्रेम कहानी के चर्चे थे। हर किसी के मन में यहीं प्रश्न था कि क्या राजेश, रूशाली का दूसरा आदमी बन पायेगा?
अनवरत......
लेखक-
जितेन्द्र शिवहरे
बहुत भावुक कहानी है। हर एक दृश्य को बखूबी निभाया गया है, कलम से। मानो दृश्य आंखो के सामने घूम रहा हो। अत्यंत ही जिज्ञाशुक कहानी है।
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