रामसिंग- एक शिक्षक की कहानी
*रामसिंग-एक शिक्षक की कहानी*
*शिक्षक* रामसिंग ने प्रसन्न मन से नवीन शाला में पदभार ग्रहण किया। प्राथमिक शाला में आकर रामसिंह बहुत उत्साहित थे। कल के भविष्य आज के विद्यार्थीयों को पढ़ाने के नये-नये तरीक़ो का संग्रह था शिक्षक रामसिंग के पास। बच्चें भी शिक्षक विहीन शाला में नये शिक्षक के आगमन पर प्रसन्नता से खिल उठे थे। शिक्षक रामसिंग कक्षा की ओर बढ़े ही थे कि हेडमास्टर साहब ने कहा- 'पुस्तक विभाग कार्यालय से बच्चों की किताबे उठा लाओ।' रामसिंग कुछ समझ पाते उससे पुर्व ही अगला आदेश था कि जाते-जाते बच्चों की गणवेश के नाप भी दर्जी को देते आना और अगले दिन शाला आते हुये सभी की युनिफार्म भी अनिवार्यत: लेकर आना।
हम्माल बने शिक्षक किताबें ढोते हुये जब स्कूल पहूंचे तब तक बच्चें जा चूके थे।
अगले दिन मजदूरी को मजबूर शिक्षक ने यूनिफार्म का पोटला शाला में रखा ही था कि लाइन में खड़े बच्चों को देखकर प्रसन्नता खिल उठें। विद्यार्थीयों को युनिफार्म वितरण आरंभ हुआ जो दिन भर चलता रहा। शाम होते ही शिक्षक रामसिंग के हाथों में स्कूल सर्वे का एक नया आदेश था जो अगले ही दिन से शुरू करना था। गली-मोहल्लों की खाक़ छानते हुये शिक्षक रामसिंह जब दो पल सुस्ताने बैठे थे तब ही पास के स्कूल से एक दूसरे शिक्षक श्यामलाल ने बताया कि रामसिंग का नाम बीएलओ ड्यूटी में आया है। आज शाम ही कलेक्टर ऑफिस की मीटींग में उन्हें बुलाया गया है। शिक्षक रामसिंग दोड़ते भागते और रिक्शा-टेम्पो बदलते हुये कलेक्टर ऑफिस पहूंचे। अब उन्होंने स्कूल सर्वे के साथ-साथ मतदाता परिचय पत्र बनवाने का कार्य भी शुरू कर दिया।
एचएम ने शिक्षक महोदय से कहा कि नगर भ्रमण करते हुये बच्चों के आधार कार्ड, समग्र आईडी और बैंक खाता भी खोजकर लिखकर ले आना। उक्त नम्बर्स उपलब्ध न हो तो उनका नव निर्माण भी रामसिंह को ही करना है।
बच्चें मध्यान्ह भोजन खाकर घर चले जाते।
इसी बीच शिक्षक रामसिंग को शिक्षण-प्रशिक्षण का निमंत्रण मिला। रामसिंह ने प्रशिक्षण में उपस्थिती दी ही थी कि चलते प्रशिक्षण में उन्हें पता चला कि शिक्षक रामसिंह के विद्यालय में आकस्मिक निरिक्षण दल पहूंचा है। वे बच्चों के शैक्षणिक स्तर की सघनता से माॅनिटरींग कर रहे है। पढ़ाई में बच्चों का स्तर आवश्यकता अनुसार नहीं पाये जाने पर शिक्षक के विरूध्द अनुशासनात्मक कार्यवाही की जायेगी।
संयोग से शिक्षक महोदय की कक्षा के बच्चों का शैक्षणिक स्तर कमजोर पाया गया। अगले ही दिन शिक्षक महोदय को कारण बताओ सूचना पत्र प्राप्त हो गया।
दक्षता संवर्धन के टेस्ट सिर पर थे। बच्चों को अब तक ठीक से नहीं पढ़ाये जाने का दुःख रामसिंग को खाये जा रहा था। उस पर बच्चों की परिक्षाओं का दौर चल पड़ा था।
एक दिन रामसिंग ने जल्दी विद्यालय पहूंचने का मन बनाया। उन्होंने बच्चों को भी खबर कर दी। बच्चें समय पुर्व विद्यालय उपस्थित हो गये। रामसिंग शाला पहूंचे तो दिग्भ्रमित हो गये। सारा विद्यालय नर्सरी गार्डन बना हुआ था। ढेर सारे पोधों को आज ही रोपा जाना था। पता चला मंत्री जी स्वयं वहां आ रहे है अतः रामसिंह को गड्ढे खुदवा कर तथा खाद आदि तैयार रखने का दायित्व मिला था।
हैडमास्टर भी दौड़-दौड़े जल्दी शाला आ पहूंचे। गांव के अन्य लोगों की मदद लेकर रामसिंह गढ्डे खोदने तथा खाद आदि की व्यवस्था में संलग्न नज़र आये। बच्चें कक्षा में बैठे अब भी शिक्षक रामसिंग की प्रतीक्षा कर रहे थे।
मंत्री जी के आगमन पर समूची शाला में समर्थकों को तांता लग गया। नाश्ते की प्लेट पर लोग टूट पड़े। पौधारोपण कार्यक्रम संध्या तक चला। निराश बच्चें एक बार फिर खाली हाथ घर लौट गये।
बच्चों का जब भोहभंग हुआ तो वे शाला से अनुपस्थित रहने लगे। रामसिंह के बहुत खोजने और पालकों से बारम्बार विनती करने पर भी बच्चें शाला आने को तैयार नहीं थे।
कुछ बच्चें स्कूल आते तो कुछ घर के अनेक काम-काज गिनाकर गैर हाजिर रहने लगे।
खाली-खाली कक्षा देखकर रामसिंह का मन पढ़ाने में नहीं लगता। आये दिन की डाक और नित्य नये मानसिक दबाव ने रामसिंह को वर्षों का बीमार बना दिया था। दो बार निलम्बन और तीन बार वेतन वृद्धि रुकवा चूके रामसिंह ने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के लिए आवेदन कर दिया। उन्होंने तय किया कि अब बिना किसी दायित्व के जीवन के शेष दिनों में सरकारी स्कूलों के बच्चों को निस्वार्थ पढ़ायेंगे....और सिर्फ पढ़ायेंगे।
समाप्त
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