अफेयर - 2

 _अफेयर-2 (कहानी)_


   _तृप्ति के मन में नीरज के प्रति कुछ तो थो जो स्टाॅफ के  अन्य सदस्यों के संज्ञान में कभी न कभी अवश्य आया था। स्वयं नीरज का व्यवहार जो तृप्ति के प्रति कभी सौम्य हो जाता तो यकायक कठोरता में बदल जाता। नीरज की जीवन संगनी समीरा स्तन केंसर की प्रारंभिक चपेट में थी अतः पत्नी की देखभाल करने के कारण अक्सर नीरज को स्कूल से छूट्टी लेनी पड़ती। घर और ऑफिस के चक्कर में घनचक्कर बना नीरज कोमल और अति सुन्दर विवाहिता क्लर्क तृप्ति के प्रति न चाहते हुये भी आकर्षित था किन्तु उसने कभी जाहिर नहीं होने दिया। सड़क मार्ग पर आगे पीछे पृथक-पृथक मोपेट पर दौड़ते ये दो अघोषित प्रेमी एक-दूसरे के मन घुसपैठ कर चुके थे। कार्यालय में नीरज की उपस्थिति पाकर तृप्ति का रोम-रोम खिल उठता। अक्सर कम बोलने वाली तृप्ति अपने आसपास नीरज को पाकर चहक उठती। तृप्ति की आवाज सुनने को आतुर नीरज जब तब कक्षा में अध्यापन छोड़कर ऑफिस में आ धमकता। दोनों की नज़रों की टकराहट प्रेमोत्सव मनाया करती जो दूसरों की दखल अंदाजी से परेशान हो जाती थी।_


_कार्यालय में कामकाज के दौरान अनायास ही हाथ से हाथ का स्पर्श अन्य कोई भले ही सूचित न करे किन्तू तृप्ति और नीरज अवश्य नोट करते। तृप्ति को कोई आपत्ति न होती। ये देखकर नीरज के हौसलें बुलंद हो जाते जिससे वह अक्सर तृप्ति को छूने के नये-नये बहाने ढूंढे करता।_


_नीरज के अवकाश के दिनों में मुरझाई तृप्ति किसी को भी रूचिकर नहीं लगती। उसकी बेरूखी और झुंझलाहट नीरज द्वारा स्कूल ज्वाइंन करने के बाद ही खत्म होती।_


_बिजनेस में अधिक समय देने वाले तृप्ति के पति विश्वास अक्सर टूअर पर रहा करते। दो वर्षीय परी का लालन-पालन तृप्ति के लिए कभी चुनौती भरा नहीं रहा। खाली समय में नीरज से फोन पर लम्बी बातें करना तृप्ति की आदत बन गया था। इस दौरान परी अक्सर तृप्ति के इर्द-गिर्द बनी रहती, जिसकी चहचहाट दूसरी ओर से नीरज भी सुन लेता।_


_समीरा अब पहले से ठीक थी। मगर बिमारी से अधिक उसे नीरज की बेवफाई ने कमजोर बना दिया था। वह गुमसुम रहकर भी नीरज से कुछ न कुछ छिपा रही थी। वर्ना नीरज के मोबाइल पर तृप्ति के प्यार भरे संदेश पढ़कर भी वह शांत कैसे रह सकती थी? सुधांशू से अफेयर का दण्ड उसे इस बीमारी के रुप में मिला, आध्यात्मवादी समीरा धीरे-धीरे यह स्वीकार करने लगी थी।_


_समीरा की यह खामोशी नीरज को खाये जा रही थी। वह बैचेन रहने लगा था। नीरज ने अपने किये पर समीरा से अनेको बार माफी मांगी थी मगर समीरा कुछ न बोली। नीरज ने बहुत जानने की कोशिश की किन्तु उसे समीरा के रूखेपन का कारण और समाधान नहीं मिला।_


_इधर तृप्ति को नीरज की उपेक्षा सहन नहीं हो रही थी। वह बिन पानी मछली की तरह तड़पने लगी थी। स्वजनों ने उसकी छटपटाहट स्पष्टतः नोट की थी। वेतन पत्रकों की गणना में महान अंतर देखकर प्रिन्सीपल सर ने पहली बार तृप्ति को डांट पिलाई जो धीरे-धीरे हर माह की रस्म सरीखी की हो गयी।_


_विश्वास को नीरज और तृप्ति के विषय में ज्ञात हुआ। वो मारे क्रोध के छटापटा रहा था। विश्वास प्रतिशोध लेने का मन बना चूका था। तृप्ति ऑफिस से अभी लौटी नहीं थी।_

_तब ही डोर बेल बज उठी। तुफानी वेग से विश्वास दरवाजा खोलने उठा। द्वार पर सगुन खड़ी थी। सगुन को देखकर विश्वास का क्रोध जाता रहा। तृप्ति की प्रिय सहेली सगुन से फ्लर्ट करने का शौकिन विश्वास उस पर अपना हृदय हार बैठा था। रफ एण्ड टफ के सिध्दान्त का अनुपालन करने वाली सगुन इतनी सरलता से विश्वास के चंगूल में नहीं आई। सैकड़ों डेट और धन का अतिशय अपव्यय का परिणाम विश्वास को विलंब से किन्तु सगुन के रूप में मिला।_


_तृप्ति घर आ चूकी थी। सगुन और विश्वास चाय पर हंसी-मज़ाक करने में व्यस्त थे। तृप्ति को संदेह बहुत पहले से था। आज दोनों को इतने करीब देखकर उसका शक़ यकिन में बदल गया। सगुन के लौट जाने पर दोनों पति-पत्नी परस्पर क्रुध्द तो थे किन्तु एक-दूसरे से कुछ कह न सके। एक अघोषित शीत युध्द छिड़ चूका था। बेडरूम में लेटे-लेटे दोनों विचारों में खोये थे। कौन किसको दोष दे! इसी उधेड़बुन में सुबह हो गयी।_


_समाप्त_

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_प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।_


_सर्वाधिकार सुरक्षित_ ©️®️

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_जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)_

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