उफनता प्यार!

उफनता प्यार!

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कहानी

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"तुम्हारी नज़र में प्यार क्या है नीतू!" समर्थ ने पूंछा।


"आप जिसे प्यार करते है उसे देखने को, उससे मिलने को मन करता है। अपने प्यार को पाने को मन मचल उठता है। प्यार..प्यार तड़पाता है... रूलाता है और वह सबकुछ करवाता है जो आपने कभी नहीं किया!" नीतू बोली।


"मेरा नज़रीया थोड़ा अलग है। प्यार परवाह करना सिखाता है। प्यार में हम कैसे भी रहे किन्तु अपने प्रियतम को प्रसन्न देखना चाहते है। उसकी खुशी की चिंता में हम अपना अपनी खुशी भूल जाते है।" समर्थ बोला।


"एक ही बात है। दोनो ही तरीकों से हम अपने प्यार को हासिल करते है।" नीतू बोली।


"नहीं! प्यार सही अर्थो में हासिल करना नही है बल्की अपने प्रियतम की खुशी के लिए उससे दूर रहकर भी उससे प्यार करते रहना है।" समर्थ ने आगे कहा।


"आप कुछ भी कहे लेकिन मैं आपसे दूर नहीं रह सकती और न ही आपको प्यार करना छोड़ सकती हूं।" नीतू गर्व से बोली।


"मैं ये नहीं कह रह नीतू कि तुम्हारा प्यार, प्यार नहीं है। मगर तुम पुरी तरह से सही भी नहीं हो। तुम युवा होकर अभी केवल अठारह साल की हो और मैं तीस का। उस पर शादीशुदा हूँ, सो तुम्हें कैसे स्वीकार कर लूं।" समर्थ का धीरज जवाब देने लगा था।


"प्यार में सही गलत कुछ नहीं होता समर्थ जी! सही और गलत देखकर प्यार नहीं किया जाता। प्यार बस हो जाता है। जैसा मुझे आपसे हो गया।" नीतू बोली।


"तो तुम क्या चाहती हो!" समर्थ ने पूंछा।


"मैं अपना सबकुछ छोड़ने के लिए तैयार हूं। आप भी अपना घरबार छोड़कर मेरे साथ चलिए।" नीतू बेबाक थी।


"कितनी बदनामी होगी। हमारे अपने खून के आसूं रोयेंगे। उन्हें दुखी करके क्या हम सूखी रह पायेंगे।" समर्थ ने कहा।


"समय के साथ सबकुछ ठीक हो जायेगा। कुछ ही सालों में सभी जन पहले जैसे हो जायेंगे।" नीतू ने कहा।


"एक औरत होकर तुम दूसरी औरत का घर तोड़ना चाहती हो!" समर्थ गुस्से में था।


"मुझे पता था आप ये सवाल मुझसे जरूर करेंगे। मैंने इसका भी हल ढूंढ निकाला है।" नीतू ने समर्थ कहा।


"और क्या है वो हल।" समर्थ ने पूंछा।


"मुझे आपकी पहली बीवी से कोई आपत्ति नहीं। आप उनके साथ भी रहे और मेरे साथ भी। हम दोनों आपके लिए करवा चौथ का व्रत रखेगीं। पहले आप उनका व्रत तुड़वाना और फिर मेरा।" नीतू का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर था।


"ये कोई मज़ाक नहीं है। ऐसा नहीं हो सकता। तुम्हें मुझे भूलना पड़ेगा। तुम्हारे लिए लड़कों की कोई कमी नहीं है। पढ़ाई पूरी करो और मनमर्जी से शादी करो, कौन रोकता है।" समर्थ बोला।


"ठीक है! मैं पढ़ाई पूरी करने के लिए तैयार हूं। पर इससे पहले आपको मुझसे शादी करनी होगी।" नीतू बोली।


"ये क्या बकवास है!" समर्थ झल्लाया।


"डोन्ट वरी! पढ़ाई पूरी करने के बाद ही मैं आपके साथ पत्नी की तरह रहूंगी। लेकिन तब तक मैं आपके नाम का सिंदूर और गले में मंगल सूत्र पहनूंगी, ताकी मुझे अन्य जगह शादी करने का दबाव नहीं बनाया जाएं या ऐसा ही कोई षडयंत्र नहीं रचा जा सके।" नीतू पूरी तैयारी के साथ आई थी।


"लेकिन मैं कैसे मान लूं कि जो लड़की अपने जन्म देने वाले माता-पिता की नहीं हुई वो मेरी होकर रहेगी?" समर्थ ने पूंछा।


"क्या मतलब?" नीतू आश्चर्य में पड़ गयी।


"मतलब ये कि इस बात की क्या ग्यारंट है कि तुम मुझे धोखा नहीं दोगी? जैसे अभी अपने मां-बाप को दे रही हो!" समर्थ ने कहा।


"शादी तो हर लड़की को करना होती है और यदि मैं अपनी मनमर्जी से कर रही हूं तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए।" नीतू बोली।


"लेकिन तुम्हारे मां-बाप नहीं चाहते कि तुम मुझसे शादी करो। उन्होनें तुम्हारे लिए कितना कुछ सोच के रखा है, ये बात मुझे खुद उन्होंने बताई है।" समर्थ बोला।


"आपको मेरे मां-बाप और भाईयो से डरने की कोई जरूरत नहीं है। मेरे रहते वे लोग आपका कुछ अहित नहीं कर सकते। जरूरत पड़ी तो हम पुलिस की मदद लेंगे।" नीतू के पास समर्थ के हर प्रश्नों का जवाब था।


"मैं डर नहीं रहा। मैं खुद सामने आकर तुम्हारे परिवार के लोगों से मिलकर आया हूं। गल़त होता तो कब का तुम्हें साथ लेकर रफूचक्कर हो जाता और तुम्हारे साथ भी ऐसा-वैसा कुछ कर के भाग खड़ा होता।" समर्थ ने कहा।


"आप इतना क्यो सोच रहे है समर्थ! आपको दो-दो बीवीयों का प्यार मिलने जा रहा है, आपको तो खुश होना चाहिए! किस्मत वालों को ही यह सब मिलता है।" हर्षित नीतू बोली।


"नीतू समझने की कोशिश करो। अभी ये सब तुम्हें अच्छा लग रहा है लेकिन जब तुम दोनों सौतनें मेरे कारण लड़ाई-झगड़ा पर उतर आयेंगी तब हम तीनों का सुख चैन खत्म हो जायेगा।" समर्थ ने तर्क दिया।


"मैं आपके लिए सबकुछ सहने को तैयार हूं। लड़ाई- झगड़ा, कोर्ट-कचहरी सबकुछ।" नीतू ने कहा।


"लेकिन मैं इस बदनामी को गले नहीं लगाना चाहता। जब मेरे बच्चों को पता चलेगा कि उनके पापा ने प्रेम विवाह के लिए अपनी धर्म पत्नी को धोखा देकर दूसरी शादी की तब उन पर इस अशुभ आचरण का क्या प्रभाव पड़ेगा? और क्या तुम अपने होने वाले बच्चों से नज़र मिला पाओगी? क्या कहोगी उनसे कि तुम्हारा प्यार इतना उफान पर था कि तुमने एक शादीशुदा आदमी की गृहस्थी में कलह पैदा की और दो बच्चों के बाप से जबरन शादी की। " समर्थ ने पूंछा।


नीतू पहली बार मौन थी।


"क्या तुम अपनी संतान को उचित मार्ग पर चलने की प्रेरणा या सीख दे सकेगी जब की तुम खुद ही अनुचित मार्ग पर चल रही हो?" समर्थ बोलता गया।


नीतू अब भी मौन थी।


"नीतू प्यार कोई दिखावे की वस्तु नहीं है जिसे सार्वजनिक किया जाएं! अपने निजी प्रेम की जग हंसाई करना प्यार के उच्च आदर्शो का सरासर अपमान है। प्रेम अनुभव करने की, असीम सुख महसूस करने की अनुभूति है। प्रेम त्याग करना सीखाता है न की छींनना-छपटना।" समर्थ के प्रवचन जारी थे।


"मीरा बाई का प्रेम विश्व विख्यात है। उन्होंने अपने प्रियतम कृष्ण को न केवल अपने पति में देखा बल्की उन्हें स्वीकार भी किया। उन्होंने कृष्ण को प्राप्त करने के लिए जप किया तप किया किन्तु युद्ध नहीं किया और न हीं संसार के समझ अपने निर्दोष प्रेम को अनुचित मार्ग से प्राप्त करने का ढिंढोरा पीटा।"


"प्यार एक-दूसरे के लिए मर जाना या मरने-मारने का नाम नहीं है। प्रेम सृजन है। प्रेम निस्वार्थ और निश्कलंक  समर्पण की पवित्र भावना का नाम है। नवाकुंर जीवन को पनाह देकर उसका संरक्षण करना प्रेम है। प्रेम स्वागत है अच्छे-बुरे सभी तरह के अनुभवों का, विचारों का जिन्हें हम सजीवता से जीते है।"


 "आप कितना अच्छा बोलते है। मुझे आप इसलिए भी अधिक पसंद है कि आपके जैसा दूसरा कोई नहीं है। जितना नाॅलेज और अनुभव आपके पास है उतना मैंने कहीं नहीं देखा। मुझे आप पर गर्व है और अपने आप पर भी की मैंने आपको प्यार किया। चाहे जो जाएं मैं आपको किसी कीमत पर नहीं खो सकती। आप मेरा पहला और अंतिम प्यार है।" ये कहते हुये नीतू समर्थ के गले जा लगी।


समर्थ निरूत्तर था। इतना कहने-सुनने और समझाने के बाद भी नीतू का प्यार समर्थ के प्रति कम नहीं हुआ था। अब समर्थ के पास भूमिगत होने के अलावा कोई मार्ग न था। उसने नीतू के परिवार जनों को मिलकर सबकुछ बता दिया तथा नीतू को बिन बताएं सहपरिवार समर्थ कहीं चला गया।


समर्थ के बिन मछली की तरह तड़प रही नीतू घर से भाग खड़ी हुई। किन्तु समर्थ उसे कहीं नहीं मिला। विषपान के बाद हाथ की नस भी काटी लेकिन मृत्यु नीतू का बाल भी बांका नहीं कर सकी। परिवार जनों का नीतू को विवाह के बंधन में बांधने का प्रयास जारी था। आधा दर्जन युवकों को इंकार करने वाली नीतू ने अंततः गोविंद में समर्थ की छवि का दर्शन कर लिया। नीतू और गोविंद के विवाह की तैयारियां शुरू हो गयी।


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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टिप्पणियाँ

  1. प्रिय अनुज
    जितेन्द्र जुगनू जी
    निस्संदेह आपका प्रयास श्रेष्ठ है‌ आपकों एक शानदार लेखन के लिए हार्दिक बधाई ।
    सदैव यूंही श्रेष्ठ का प्रयास करते रहे यही हमारी दुआ है ।
    ‌। आपका
    दिनेश वर्मा दानिश

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