सौदा-कहानी By जितेन्द्र शिवहरे

 सौदा-कहानी        जितेन्द्र शिवहरे 


      निरूपा के दु:खों का अंत होता नहीं दिख रहा था। मधूर को भी यही चिंता खायें जा रही थी। उसे अपनी कमजोरी का पता था और निरूपा भी यह सब जानते हुये भी इतने सालों से मधूर का साथ निभा रही थी। एक अदद बच्चें की ख्वाहिश में निरूपा सूखकर कांटा हो गयी। बच्चा गोद के लेने के प्रस्ताव को वह कभी का अस्वीकर कर चूकी थी। दु:खी मन के साथ निरूपा चुपचाप सर्वस्व सह रही थी।


मधूर हर प्रकार से निरूपा को खुश रखने की कोशिश करता। लेकिन निरूपा के चेहरे पर खुशी नहीं आई।


एक दिन जब बाजार में राहुल को देखा तो निरूपा सन्न रह गयी। हमेशा हंसने-हंसाने वाला राहुल आज गुमसुम था। काॅलेज में सबके फेवरिट राहुल से निरूपा भी कभी प्रेम करती थी। मगर राहुल ने निरूपा को कभी सच्चा प्रेम नहीं किया। उसका प्यार मस्ती-मज़ाक और शरीर सुख तक ही सीमित था।


कैफे में बैठे-बैठे राहुल अपनी पूर्व प्रेमिका निरूपा से आंखें नहीं मिला पा रहा था।


"कविता से शादी के बाद भी तुम खुश नहीं हो! ऐसा क्यो?" निरूपा ने पूँछा।


"शायद मुझे अपने किये का दंड इसी जन्म में मिल रहा है।" राहुल निराश था।

वह सिर झुकाकर अपने किये पर शर्मिन्दा था।

 

"आई एम साॅरी निरूपा।" राहुल ने आगे कहा।


"मैंने तुम्हें माफ कर दिया है राहुल। मुझे पता है तुम अपनी संतान के लिए तड़प रहे हो और कविता अपनी शारीरिक कमजोरी की वजह से मां नहीं बन सकती।" निरूपा सब जान चूकी थी।


"तुम भी तो अब तक मां नहीं बन सकी निरूपा! जबकी कमी मधूर में है तुम्हारे अंदर नहीं।" राहुल ने कहा।


"हां! मुझे पता है। मगर जैसे तुम सबकुछ जानते हुये भी सब सह रहे हो वैसे मैं भी।" निरूपा बोली।


"लेकिन मुझे अपने किये पापो का पश्चाताप करने का एक अवसर मिल सकता है अगर तुम चाहो तो!" राहुल बोला।


निरूपा, राहुल को थप्पड़ जड़ देती अगर उसने राहुल से कभी सच्चा प्रेम नहीं किया होता तो। राहुल द्वारा बताये गये सुझाव से उसका जीवन खुशियों से भर सकता था। मगर वह इस प्रस्ताव को मानने के लिए तैयार नहीं थी।


घर लौटी निरूपा के चेहरे पर चिंता के भाव देखकर मधूर ने इसकी वज़ह जाननी चाही। निडर निरूपा ने राहुल के प्रस्ताव की जानकारी अपने पति को देने में कोई कंजूसी नहीं की। राहुल के सुझाये गये मार्ग को सुनकर हमेशा शांत रहने वाला मधूर भी भड़क गया। वह मरने-मारने तक की बातें करने लगा। निरूपा ने उसे किसी तरह से समझा-बुझाकर शांत किया।


इधर कविता भी राहुल पर नाराज़ थी। क्योंकी राहुल ने उसे सबकुछ बता दिया थ। वह प्राकृतिक तरीके से निरूपा को गर्भवती करना चाहता था। ताकि निरूपा अपनी निजी संतान का सुख भोग सके।


वह रात चारों के लिए कत्ल की रात सरीखी थी। सभी  बिस्तर पर लेटे थे मगर उनकी आंखों से निंद गायब थी।


निरूपा जिन विचारों में खोई थी, मधूर भी वही सबकुछ सोच रहा था। राहुल और कविता भी इन्हीं सब विचारों में मग्न थे।


"एक रास्ता है जिस पर अमल करते ही हम चारों का दुख दूर हो सकता है।" कविता ने राहुल से कहा।


"कौनसा रास्ता?" राहुल ने पूंछा।


"वहीं जो कल रात तुमने मुझे बताया है। जिसमें तुम अपना अंश देकर निरूपा को मां बनाना चाहते हो।" कविता ने कहा।


"हां! लेकिन तुम्हारी मर्जी के बिना नहीं।" राहुल ने बताया।


"और मेरी मर्जी ये है कि तुम दोनों की पहली संतान मैं रखूंगी।" कविता बोली।


"ये क्या कह रही हो?" राहुल हैरत में पड़ गया।


"हां! निरूपा और तुम्हारा पहला बच्चा मेरे पास रहेगा। तुम दोनों का दूसरा बच्चा निरूपा अपने पास रख सकती है।" कविता ने स्पष्ट कह दिया।


मधूर के स्वर अब मीठे हो चूके थे। उसने निरूपा से राहुल की बात मान लेने की वकालत कर डाली। निरूपा इतनी जल्दी मानने वालों में से नहीं थी मगर अपने पति की सहमति मिलने के बाद वह तेजी से इस दिशा में सकारात्मक सोचने पर मजबूर हो गयी।


उस दिन कविता और राहुल, निरूपा के घर आएं। मधूर भी घर पर ही था। कविता ने बिना डरे अपने दिल की बात निरूपा और मधूर से कह डाली। कुछ देर की खामोशी के बाद निरूपा और मधूर अंदर कमरे में पर्सनल बातचीत करने चले गये।


कविता और राहुल यह जानकर प्रसन्न थे कि निरूपा और मधूर की आपसी सहमति बन गयी।


राहुल ऑफिस टाइम में निरूपा से नियमित मिलने उसके घर आने लगा जब मधूर स्वयं अपने ऑफिस में होता था।


कुछ ही समय में निरूपा ने उम्मीद की उल्टीयां करना शुरू कर दी।


कविता और मधूर यह जानकर प्रसन्न हो गये कि निरूपा गर्भवती है और वह जल्दी ही मां बनने वाली है।


निरूपा के साथ मधूर की ममता भी जाग चूकी थी। इस होने वाले बच्चें को वे अपने पास रखना चाहते थे जिसे शर्त के अनुसार उन्हें अपना पहला बच्चा कविता को देना है। जैसे-जैसे निरूपा की डिलेवरी डेट नजदीक आ रही थी दोनों पति-पत्नी का मोह बढ़ता ही जा रहा था। कविता भी अपने पति के अंश को पालने-पोषने की संपूर्ण तैयारी कर चूकी थी। 


निरूपा ने एक बार पुनः हिम्मत कर कविता से कहा कि पहला बच्चा उसके पास रहने दे। दूसरा बच्चा वह कविता को देगी। मगर कविता इसके लिए तैयार नहीं थी। वह कागजी एग्रीमेंट का हवाला देने से भी नहीं चूकी जिसमें मधूर और निरूपा ने अपना पहला बच्चा कविता को सौंप देने के लिए हस्ताक्षर किये थे।


पहले बच्चें को अपने पास रखने के लिए निरूपा और कविता दोनों हर संभव कोशिश कर रही थी किन्तु होनी को कुछ ओर ही मंजूर था।


सातवें माह का गर्भ धारण कर चूकी निरूपा अचानक गंभीर बीमार हो गयी। उसके गर्भ में पल रहा बच्चा कोई हलचल नहीं कर रहा था। अनुभवी बुजुर्गं का सानिध्य न होने के कारण निरूपा ने तीन दिन तक इसे एक सामान्य अस्वस्थता का लक्षण मानकर नज़रअंदाज किया। किन्तु जब उसने बिस्तर पकड़ लिया तब मधूर उसे हाॅस्पीटल लेकर भागा। डाॅक्टर्स ने निरूपा का उपचार आरंभ किया। बेसुध हो चूकी निरूपा को होश में लाना अति आवश्यक था। किन्तु उसकी चेतना नहीं लौट रही थी। एक के बाद एक डाॅक्टर उसकी तीमारदारी में लगे हुये थे। निरूपा के अजन्मे बच्चे ने उसके गर्भ में दम तोड़ दिया था। मृत शिशु विष बनकर निरूपा के शरीर में फैल रहा था। निरूपा के शारीरिक आतंरिक अंगों ने धीरे-धीरे काम करना बंद कर दिया। मधूर चिंता में था। निरूपा के बिना उसका कोई नहीं था। कविता और राहुल उसकी हिम्मत बंधाने हाॅस्पीटल में आ पहूंचे। डाॅक्टर्स की टीम ने हाथ खड़े कर दिये। निरूपा वैटिंलेटर पर जीवन की अंतिम सांस गिन रही थी। मृत शिशु को निरूपा के गर्भ से बाहर निकाल देने के बाद भी उसके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ।


पूरे तीन दिन वह वैटिंलेटर पर थी। मगर निरूपा के शरीर में युरीन बनना तक शुरू नहीं हो सका था।


कविता के आँसूं निकल पड़े। राहुल भी गमगीन था। चुपचाप बैठा मधूर न कुछ कहता न ही कुछ प्रतिक्रिया देता। 


जीवन मृत्यु का संघर्ष जारी था। सभी बच्चें को भूल चूके थे। निरूपा के प्राण बचाने की प्रार्थनाएं आखिरकार ईश्वर ने स्वीकार कर ली। आठ दिनों के बाद धीरे-धीरे कर निरूपा की चेतना लौटी।


होश में आते ही उसने सबसे पहले अपने बच्चे के विषय में पूंछा। किसी के पास कोई जवाब नहीं था। अब शायद चारों का आजीवन नि:संतान रहना ही भाग्य था। मगर निरूपा यह मानने के लिए तैयार नहीं थी। वह फिर से मां बनना चाहती थी। मधूर उसे समझाने में असफल था। डाॅक्टर्स नहीं चाहते थे कि स्वास्थ्य लाभ ले चूकी निरूपा पुनः मां बने। क्योँकी बहुत अधिक आंतरिक कमजोर हो चूकी निरूपा पुनः गर्भधारण की तकलीफें सह नहीं पायेगी। जिससे एक बार फिर उसका जीवन संकट में पड़ सकता है और यदि ऐसा हुआ तो निरूपा इस बार नहीं बचेगी।


कविता और राहुल भी नहीं चाहते थे कि निरूपा दौबारा यह रिस्क लें। मकर निरूपा के दृढ़ निश्चय के आगे सभी ने घुटने टेक दिये।


राहुल और निरूपा का मिलन पुनः आरंभ हुआ। जल्दी ही निरूपा ने गर्भवती होने की खुशखबरी सुना दी। अब पहले से अधिक सावधानी बरती जाने लगी। डाॅक्टर्स की देखरेख में निरूपा का ट्रीटमेंट जारी था। पहली सोनोग्राफी स्केन की रिपोर्ट जानकर निरूपा और मधूर के साथ राहुल और कविता भी खिल उठे। ईश्वर ने एक साथ दोनों के घर किलकारी गुंजाने का वरदान दे दिया था क्योंकी निरूपा के गर्भ में जुड़वा बच्चें पल रहे थे।


समाप्त

-------------------


प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


सर्वाधिकार सुरक्षित ©️®️

---------------------

जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड चौराहा

मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश

मोबाइल नम्बर-

8770870151

7756842633

Myshivhare2018@gmail.com

Jshivhare2015@gmail.com


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हरे कांच की चूड़ियां {कहानी} ✍️ जितेंद्र शिवहरे

लव मैरिज- कहानी

तुम, मैं और तुम (कहानी)