हर किसी को नहीं मिलता यहां...कहानी*

 *हर किसी को नहीं मिलता यहां...कहानी*


     *निशा* ने स्वयं को जब दौबारा प्रेम के मोह जाल फंसा पाया तो वह सहम उठी। शादी के इतने सालों बाद एक अनजना शख्स से उसे इतनी हमदर्दी क्यों हुई? क्यों वह उसकी चिकनी चूपड़ी बातों में आने लगी थी? जितेन्द्र भी शादीशुदा है और वह स्वयं भी।


निशा अतित में पन्नों में अपने अधूरे प्यार की कहानी को एक बार फिर से पढ़ने लगी। जतिन और निशा का प्यार स्कूल लाइफ से ही शुरू हो चुका था। उम्र का थोड़ा बहुत फासला होने के बावजुद दोनों एक-दुसरे से बहुत प्यार करने करते थे। निशा के जीवन में जतिन के सिवाये कुछ नहीं था और जतिन भी पागलों की तरह निशा से प्यार करता था। 

निशा के बड़े भाई ने जब यह सब अपनी आंखों से देखा तब स्वभाव वश आगबबूला हो उठे। किन्तु फिर त्वरित समझदारी दिखाते हुये दोनों को आमाने-सामने बिठाया और उनकी मनमर्जी पूंछी। निशा ने अपने प्राणों की परवाह किये बगैर जतिन को अपना सबकुछ बता दिया। जतिन ने भी निशा से शादी करने की बात कह डाली। दोनों के परस्पर अगाध प्रेम को देखकर प्रदीप भैया झुक गये। उन्हेंने शर्त रखी की सर्वप्रथम निशा और जतिन को अपनी पढ़ाई पूरी करनी होगी! तत्पश्चात वे स्वयं दोनों की शादी कर देंगे। जतिन और निशा ने अभिस्वीकृति दे दी। दोनों बहुत खुश थे। मात्र छ: महिने के प्रेम की ढेर सारी यादें लेकर निशा और जतिन दूर हो गये। जतिन अपने पैरों पर खड़े होने के लिए दिन-रात मेहनत करने लगा। निशा अपनी पढ़ाई पर ध्यान केन्द्रित करने लगी। दोनों का प्यार अब सिर्फ लेडलाइन फोन पर प्रकट होता था। समय बितता रहा। निशा अपने प्रियतम को प्रतिदिन फोन करती। जतिन भी निशा से बात करने का बहाना ढूंढ निकालता। दोनों के प्रेम के किस्से शहर भर में फैल चूके थे।

जतिन अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ा था और निशा अपने भाई-बहनों में सबसे छोटी। निशा स्वयं चाहती थी कि जतिन कोई अच्छी जाॅब ढूंढ ले ताकि उन दोनों का गृहस्थ जीवन सरलता से आगे बढ़ सके। निशा के प्यार, प्रोत्साहन और समर्पण के फलस्वरूप जतिन सरकारी शिक्षक बन गया। जब निशा को यह पता चला तब उसके पैर जमीन पर नहीं टीक रहे थे। उससे भी अधिक प्रसन्नता वाली बात निशा के लिए यह थी कि आज जतिन उससे अपनी शादी की बात करने निशा के घर आने वाला था। 

फोन पर निशा की सांसे तेज़-तेज़ चल रही थी।

"निशा! निम्मो की शादी तक रूक जाओ। हम उसके बाद शादी कर लेंगे।" जतिन ने फोन पर निशा को समझाया।

बड़ी मुश्किलों से निशा ने अपने मन को समझाया। जतिन ने अपनी बहन निम्मों की शादी बड़ी ही धूम धाम से की। समय के साथ धन का भी बहुत व्यय किया। निम्मों की शादी के बाद मंझला अंगद भी बेसब्री से अपनी शादी की बांट जोह रहा था। जतिन ने इस बार भी निशा से कहा कि अंगद की शादी के बाद वे दोनों पक्का शादी कर लेंगे।

निशा व्याकुल हुये जा रही थी। उसे जतिन के बिना कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। कई बार तो उसने घर से भागने की योजना तक बना डाली। मगर जतिन अपनी पारिवारिक समस्याओं में इस तरह उलझ चूका था कि वह न चाहते हुये भी निशा की उपेक्षा करने पर विवश था।


निशा ने फोन पर जतिन से कहा कि अब उन्हें घर आकर निशा का हाथ मांगना चाहिए। जतिन इस बार भी पारिवारिक समस्याओं का हवाला देकर बात को टाल गया। निशा ने फिर कहा की जतिन घर आये। जतिन जब कुछ फ्री हुआ तो उसने निशा से शादी करने की बात कही। निशा प्रसन्न थी लेकिन घर में सबसे छोटी होने के कारण वह पहले शादी कैसे कर सकती थी? उसकी बड़ी बहन सीता अभी कुंवारी थी। अतः निशा ने अपनी बहन सीता की शादी के बाद अपनी शादी करना निश्चित किया। जतिन और निशा एक बार फिर फोन के सहारे अपने प्यार को जीवित रखने का प्रयास करने लगे।


जतिन की शादी का कार्ड देखकर निशा सदमे में चली गयी। वह रोना चाहती थी मगर आसूं थे की आंखों से बाहर आने को तैयार न थे। सुधबुध खोई निशा की दयनीय हालत देखकर परिवार के लोग डर गये। उन्हें इस बात का कतई पता नहीं था कि निशा इस हद तक जतिन से प्रेम करती है। लेकिन जतिन ने ऐसा क्यों किया यह प्रश्न सभी के मन में था, जिसका उत्तर किसी के पास नहीं था।


जतिन की शादी के बाद निशा टूट चूकी थी। उसे अपने जीवन से मोह खत्म हो चुका था। भाईयों ने बहुत दिलासा दिया किन्तु निशा के उदास चेहरे पर हंसी नहीं आई। बहुत विचार करने के बाद निशा के लिए हेमंत को चुना गया। निशा नहीं चाहती थी की वह हेमंत से शादी करें किन्तु माता-पिता और भाईयों के दबाव में उसने यह शादी स्वीकार कर ली।


स्वप्न टूटा तो निशा ने स्वयं को आईने के सम्मुख खड़ा पाया। वह अब भी उतनी ही सुन्दर है जितनी शादी के पहले हुआ करती थी। जितेन्द्र ऐसे ही उस पर श़ायरी नहीं कहता। लेकिन अब इस मोड़ पर आकर प्यार की तलाश कहां तक सही है? निशा बाल बना रही थी। उसके दिलों दिमाग पर जितेन्द्र हावी था। वह चाहकर भी उसकी उपेक्षा नहीं कर पा रही थी।


निशा का मन नहीं लग रहा था। वह जितेन्द्र से मिलना चाहती थी। लेकिन कैसे? क्या वह स्वयं प्रेम का प्रस्ताव लेकर जाएं? या जितेन्द्र के प्रस्ताव की प्रतिक्षा करें? निशा को इतना अवश्य पता था कि जितेन्द्र अपने शादी शुदा जीवन से खुश नहीं है। शायद इसीलिए उसका झुकाव निशा के प्रति कुछ ज्यादा ही है। निशा ने तय किया की वह जितेन्द्र के मन की बात जान कर रहेगी और इसके लिए दोनों को एक बार बाहर कहीं मिलना होगा।


निशा यह सब सोच ही रही थी कि उसे एक फोन आया। फोन पर कोई लड़की थी। यह जितेन्द्र की बीवी अदिति का फोन था। वह निशा से मिलना चाहती थी। निशा समझ पाती इससे पुर्व ही अदिती ने निशा को शाम की काॅफी पर मिलने के लिए मना लिया।


"निशा! क्या कर सकती हो तुम जितेन्द्र के लिए?" अदिति ने पूछा। उसके हाथों में काॅफी का कप था।

निशा के चेहरे पर हवाईय्यां उड़ रही थी। अदिति सबकुछ जानती थी अतः निशा उससे कुछ भी छिपाने के मूड में नहीं थी।


"जितेन्द्र के लिए मैं अपनी जान दे सकती हूं।" निशा ने कहा।


"और मैं जान ले सकती हूं।" अदिति ने कहा।


निशा मौन थी। यह अपने पति के लिए बीवी का प्यार था।


यह सब कितना अजीब था? अदिति, जितेन्द्र से प्यार करती थी लेकिन जितेन्द्र, अदिति से प्यार नहीं करता था। दोनों के मन एक-दूसरे दूर थे। 

निशा स्वयं हेमंत से प्यार नहीं करती थी जबकी हेमंत, निशा से प्रेम करता था। निशा को जतिन नहीं मिला और हेमंत को निशा मिलकर भी नहीं मिली। जितेन्द्र और निशा के दिल जरूर एक-दूसरे से मिलते थे लेकिन वे परस्पर नहीं मिल सकते है। शायद यह प्रेम का वह रूप है जहां कहा जाता है कि हर किसी को नहीं मिलता यहां प्यार जिन्दगी में...!


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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