रावण - (वन एक्ट प्ले)

 रावण - (वन एक्ट प्ले)


रावण (30-35 वर्ष) दोपहर के वक्त अपने घर के ड्राईंग रूम में अपने पालतू बिच्छूओं के पास खड़ा था जो कांच के शोकेज में बंद है। रावण ने कांच का द्वार कुछ खींसका दिया और अपना एक हाथ उस कांच के शोकेज के अंदर डाला। बिच्छू ने रावण के हाथ की उंगली पर डंक मारा, दर्द के मारे रावण की आंखें जरूर बंद हुई किन्तु उसका ये दुस्साहस कम नहीं हुआ क्योंकी ऐसा करना उसका हर दिन का काम था। अपने हाथ में एक बिच्छू को उठाकर रावण उससे खेल रहा था। स्वभाव वश बिच्छू डंक मारते जाता और रावण बिच्छू के जहर को आदतन सहता जाता। कुछ पलों के इस खेल के बाद उसने बिच्छू को शोकेज में पुनः बंद कर दिया। वह अब भी बिच्छूओं को खड़ा देख रहा है।


(तब ही वहां उसका दोस्त संजीव आता है।)


संजीव (30-35 वर्ष)- बिच्छू पालने का ये अजीब शौक तेरा अब भी बदला नहीं राव!


रावण के दोस्त संजीव ने घर में प्रवेश करते ही रावण से कहा।


रावण- जो बदल जाएं वो शौक़ कैसा संजीव? अब तू खुद को ही देख ले! तु अब भी मेरा पूरा नाम लेकर नहीं बुलाता! 


संजीव- तुझे पता है राव, मुझे रावण नाम पसंद नहीं है। पता नहीं तेरे मां-बाप ने तेरा नाम रावण कैसे रख दिया?


(तब ही रावण की संजी-धंजी पत्नी नम्रता मुख पर स्वाभाविक गुस्सा लिए तेज़ कदमों से चलती हुई ड्रांईंग रूम से होकर घर से बाहर चली गयी।)


संजीव- नमस्ते भाभी जी!


नम्रता- हूंअं! (कहते हुये नम्रता अपने पति रावण और उसके दोस्त संजीव की उपेक्षा कर बाहर खड़ी कार में बैठकर अपनी पुर्व नियोजित किटी पार्टी में चली गयी।)


रावण- रावण नाम किसी को पसंद नहीं संजीव! (रावण का इशारा अपनी पत्नी नम्रता की तरफ था।) लेकिन जो किसी को पसंद नहीं वह रावण को पसंद है।


संजीव- यार राव! नम्रता भाभी अभी भी वैसी कि वैसी ही है? तुम दोनों एक दम नहीं बदलें।


रावण- लेकिन तु हमें बदलने पर क्यों तुला है। आ बैठ!


(दोनों सोफे पर बैठ गये। रावण शराब के पैक बनाने लगा। उसने संजीव को शराब ऑफर की लेकिन संजीव शराब नहीं बीयर की मांग करने लगा। रावण ने उसे बीयर लाकर दे दी।)


संजीव- यार! आखिर ऐसा कब तक चलता रहेगा? आठ साल हो गये तुम दोनों की शादी को, लेकिन अब भी दोनों एक-दूसरे के जानी-दुश्मन की तरह इस घर में रह रहे हो।


रावण- मैं नम्रता को अपना दुश्मन नहीं मानता संजीव! रावण की दुश्मन एक औरत कभी नहीं हो सकती।


संजीव- राव! तु खुद को नम्रता के लिए बदल क्यों नहीं लेता। 


रावण- संजीव तुझे पता है मुझे बिच्छु क्यों पसंद है?


संजीव- क्योंकि तुझमें जहर भरा पड़ा है और जहरीले आदमी को जहर तो पसंद आयेगा ही।


रावण- हां! हां! हां! (हंसता है) नहीं मेरे यार! मुझे बिच्छु इसलिए पसंद है क्योंकि वह जैसा अंदर है वैसा बाहर भी है। बिच्छू किसी के लिए कभी खुद को नहीं बदलता।


संजीव- तेरा कहने के मतलब क्या है?


रावण- मतलब ये कि तु अपना ही उदाहरण ले लें। कहने को तू प्योर वैजिटेरियन है। शुध्द शाकाहारी! मगर अंडे खाता है। मीट नहीं खाता मगर मीट का सूप पी लेता है। शराब को संजीव छूता तक नहीं मगर बीयर को शान से पीता है। सिगरेट इसलिए नहीं पीता क्योंकि उससे मुंह से बदबू आती है लेकिन बार में हुक्का गड़गड़ाना संजीव का रहीसी शौक़ है। 


अपनी सच्चाई रावण के मुख से सुनकर संजीव शाॅक्ड खड़ा था।


रावण- और सुन! मेरी पत्नी नम्रता। कहने को सुहागन स्त्री है मगर मेरे नाम का सिंदूर अपनी मांग में भरना या मंगलसुत्र पहनना उसने कभी अपनी मन मर्जी से नहीं किया। वह सिर्फ दिखावे के लिए यह सब करती है। उसने व्रत उपवास करना अपनी सहेलियों की देखा- देखी शुरू किये है और नम्रता व्रत-उपवास में भी पेट भर के फलाहारी भोजन करती है। इतना ही नहीं भक्ति भाव के समय भी वह मुझे कौसना या गालियाँ देना बंद नही करती।


संजीव- ओहहह! तेरा ये एटीट्यूड? मुझे पता है तु बुरा आदमी नहीं है। रावण सभी तरह के नशे करता है लेकिन किसी भी नशे का रावण गुलाम नहीं है। तुने कभी किसी नशे की आदत नहीं पाली। जब बन किया शराब पी, सिगरेट! जब मन किया शराब नहीं पी, सिगरेट नहीं पी।


रावण- हर आदमी का अपना एटीट्यूड होता है संजीव। जिसे निभाना ही चाहिए। जिसे नैचर ने जैसा बनाया है उसे वैसा ही बने रहना चाहिये। हर बदलाव अच्छे नहीं होते। दिखावा सिर्फ एक छलावा मात्र होता है जो जल्दी ही सभी के सामने आ जाता है।


संजवी- तु इतना ही संतुष्ट है अपने आप से तो फिर नम्रता को क्यों नहीं जीत पाया अब तक? बाहर तो बड़ा दबंग बना फिरता है लेकिन नम्रता भाभी तेरे काबु में नहीं  है।


रावण- रावण ने कभी किसी औरत पर हाथ नहीं उठाया संजीव! और न ही किसी लड़की से साथ कोई जबरदस्ती की है। रावण के पास जो भी लड़की आई वह अपनी इच्छा, अपनी मर्जी से आई है। और बदले में रावण ने उन लड़कीयों को इतना कुछ दिया है जितना उन्होंने कभी अपने सपने में भी नहीं सोचा होगा।


संजीव- जानता हूं! तु कईयों का गाॅडफादर है जिसमें कई लड़कीयों भी है। तुने कितनो की जिन्दगी बनाई है। अब यार अपनी खुद की जिन्दगीं भी बसा दें। तुम दोनों जल्दी से एक हो जाओ।


रावण- तु मुझे कोई गुंडा या बदमाश समझता है क्या है? जो मैं नम्रता पर जुल्मो सितम ढा रहा हूं। नम्रता अपनी जिन्दगी जी रही और मैं अपनी। और इसमें हम दोनों खुश है।


संजीव- अच्छा! यदि ऐसा कुछ नहीं है तो फिर तुने नम्रता से शादी क्यों की? क्यों नहीं जाने दिया उसे रघुवीर के पास। कितना प्यार करती थी नम्रता, रघुवीर से! 


रावण- तो अब चली जाएं वह रघुवीर के पास! मुझे कोई आब्जेक्शन नहीं है।


संजीव- इट्स नाॅट पाॅसीबल राव! ऐसा कैसे हो सकता है। रघुवीर और नम्रता अब दोनों शादी शुदा है।


रावण- इशू ये नहीं की रघूवीर और नम्रता दोनों शादीशुदा है इशू ये है कि क्या रघुवीर अब भी वैसा ही है जैसा शादी के पहले था या नम्रता अब भी रघुवीर को उतना ही प्यार करती है जितनी शादी के पहले करती थी।


संजीव की नज़रें झुक गयी।


रावण- मैंने ऐसा कभी नहीं कहा कि रघुवीर एक अच्छा  आदमी है। मैं तो शुरू से ही कहता आया हूं कि वह बुरा था और मरते दम तक बूरा ही रहेगा। क्योंकि बूराई उसका नैचर है। नम्रता को पाने के लिए उसने खुद को बदला था जो कि सिर्फ ढोंग था और आज हम देखते है कि रघुवीर न अंदर से अच्छा है और न ही बाहर से।


(कुछ पल की खामोशी के बाद)


रावण- अब देखो न! अपने ही किसी रिश्तेदार की नाबालिक लड़की के साथ रेप करने की कोशिश में रघुवीर जेल की हवा खा रहा है।


संजीव- ये सब बीती बातें है राव! मगर आज का क्या? आखिर नम्रता के प्रति तुम्हारी कुछ तो जवाबदारी बनती है!


रावण- जवाबदारी हा!हा!हा! (फिर हंसता है) अगर मैं जवाबदार नहीं होता तो नम्रता आज किसी कोठे में पड़ी-पड़ी अपनी जिस़्म की नुमाईश कर रही होती।


(तब ही नम्रता वापिस घर में दाखिल होती है। उसे देखने से लगता है मानो वह कोई चीज़ ले जाना भूल गयी थी, जिसे लेने लौट आई है।)


नम्रता (रावण से)- तो मुझे छोड़ क्यों नहीं देते तुम! कितनी ही बार कह चूकी हूं तुमसे। मुझे अपने हाल पर छोड़ दो।


रावण- मैं तुम्हें जीत के लाया हूं नम्रता। तुम मेरी नाक हो। मुझे पता है तुम मुझे अपने लायक नहीं समझती। यदि तुम किसी को अपने लायक समझतीं हो तो बेहिचक बुला लो उसे यहां। यदि तुम्हारी नज़र में है कोई राम! जो तुम्हारे लायक हो! तो वह आये और अपनी नम्रता को मुझसे जीत कर ले जाएँ। मैं राम से हार कर ही तुम्हें उसके के हवाले कर सकता हूं।


नम्रता- इसका मतलब तुम मुझे जिन्दगी भर अपनी बंदनी बना के रखोगे?


रावण- मतलब तुम मानती हो कि कोई राम तुम्हारे लिए नहीं आयेगा क्योकि तुम खुद सीता नहीं हो!


संजीव- मैं जानता हूं राव! तुने नम्रता को जिस्मफरोशी के धंधे से बाल-बाल बचाया है। और नम्रता इसके लिए तेरी शुक्रगुजार भी है मगर मेरा सवाल भी वही है! क्या तुम दोनों एक आम पति-पत्नि की तरह नहीं रह सकते?


रावण- यूं नो संजीव! हम सभी राम बनना तो चाहते है लेकिन असल जिन्दगी में रावण तक नहीं बन पाते।


नम्रता- दुनियां के हर रावण का अंहकार टूटता है! रावण!


रावण- हां! हा! हा! (हंसते हुयें) हां! मुझे अंहकार है। आई एम ऐरोगेन्ट! मुझे उस दिन बेहद खुशी होगी जब कोई मेरा अहंकार तोड़ देगा। मुझे सच बोलने का घमण्ड  है। मैं जो अंदर हूं वही बाहर हूं। मैं किसी से नहीं डरता क्योंकि मेरी कोई कमजोरी नहीं है और शायद इसीलिए मुझे खतरों से खेलना पसंद है।


हां! मैं जुआं और सट्टें का काम करता हूं। मगर ये मैंने कभी किसी से नहीं छिपाया। अपना हर एक काम पूरी ईमानदारी से करता हूं। जिन्दगी भी तो एक जुंआ ही है। मेरा मानना है हर इंसान को अपना भाग्य आजमाना चाहिये, क्या पता कब वारे-नारे हो जाएं? वर्ना जिन्दगी तो धीरे-धीरे खत्म हो ही रही है।


संजीव- मगर संजीव सट्टा एक धोखा है। इसमें कितने ही घर बर्बाद हो गये है?


रावण- मगर कितने ही घर संवर भी गये है। और फिर संजीव अक्ल का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिये। जो चीज़ आदत बन वह कभी न कभी तकलीफ तो देती ही है।


रावण- अच्छा संजीव! तु क्यों नहीं अपना लेता नम्रता को? तु भी तो कभी नम्रता से प्यार करता था? या शायद अब भी करता है?


संजीव झेंप गया। वह रावण से नज़र नहीं मिला पा रहा था। नम्रता के तेवर भी ढीले पढ़ चूके थे। वह भी सकपका गयी थी।


रावण- मुझे पता है संजीव! तू वही पहला शक्ख है जिसने नम्रता को सबसे पहले प्यार में धोखा दिया था। अपने उस कदम से शायद अब तू दुखी है और शायद नम्रता को फिर से पाना चाहता है क्योंकि तुझे पता है नम्रता और मेरी बनती नहीं है! क्यों? सच कहा न मैंने?



संजीव- अssss! राव तु ये क्या कह रहा है? 



रावण- एक सच और बताता हूं। नम्रता कुछ भूली नहीं थी वह तुझसे मिलने दौबारा यहां आई है। क्योंकी तुम दोनों का प्लान यहां इस घर से एक साथ कहीं भाग जाने का है। क्यों नम्रता! सच कहा न मैंने?


नम्रता- राव! ये तुम क्या कह रहे हो? तुम अपनी पत्नी पर इल्जाम लगा रहे हो?


रावण- इल्जाम लगाने का काम मेरा नहीं है नम्रता! रावण! को सजा देना आता है। लेकिन तुम दोनों मेरे अपने हो इसलिए मैं एक चांस तुम दोनों को देता हूं। मुझसे जितना दूर भागना चाहो भाग सकते हो। मैं तुम दोनों को अपना घर बसाने की छूट देता हूं।


लेकिन मेरी सिर्फ एक छोटी सी शर्त है?


नम्रता- क्या है वह शर्त!


संजीव- मैं पूरी कोशिश करूंगा तुम्हारी शर्त पूरी करने की।


रावण- मेरी सिर्फ एक छोटी सी शर्त है। संजीव और नम्रता! तुम दोनों की जितनी भी जिन्दगी बची है, उतने समय तक संजीव तुम भगवान राम के आदर्शों पर चलने का प्रयास करोगे और नम्रता तुम्हें राम की पत्नी सीता के पद्य चिन्हों पर चलने की! बोलो! मंजूर है मेरी यह शर्त तुम दोनों को?


घूप सन्नाटा पसर गया।


रावण पुनः जोरदार अट्टाहस।


रावण- हा! हा! हा!


संजीव के हाथ में नम्रता का हाथ था। दोनों रावण के पीछे खड़े थे। दोनों के आगे पीठ किये खड़ा रावण अब भी हंस रहा था।


संजीव- नम्रता! हम पुरूष जिन्दगी भर राम बनने की कोशिश करते है लेकिन इसकी तरह रावण भी नहीं बन पाते।


नम्रता- सच कहा संजीव! हम औरतें भी ऊपर से सीता बनी फिरती है लेकिन असल जिन्दगी में न सीता बन पाती है और न रावण की पत्नी मंदोदरी।


पर्दा गिरता है।


समाप्त।


जितेन्द्र शिवहरे 

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