हैप्पी दीवाली

 हैप्पी दिवाली


(तीन जवान और शादीशुदा बेटों की मां सगुन और पिता हनुमान यादव की बातचीत)

  

सगुन- आप ही अपने बेटों के लिए पढ़ी-लिखी बहूएं चाहते थे न। अब देख रहे है इन पढ़ी-लिखी लडकियों का हाॅल। इन्होंने हमें अपने ही बेटों से कितना दूर कर दिया है...! (उदास होकर)


हनुमान यादव- क्यों क्या हुआ? शंकर की मां?


सगुन- दिवाली का त्यौहार सर पर है मगर बेटे-बहूओं के सिर पर जू तक नहीं रेंगी रही। सभी को अपनी-अपनी पड़ी है। 


हनुमान यादव- मुझे लगता है तुम ठीक थी शंकर की मां। शंकर, विष्णु, और छोटा माधव आज तीनों भाई अपनी जोरू के गुलाम बन बैठे है। तीनो अपनी-अपनी औरतों के कहने पर चलते है। हम दोनों की तो जैसे घर में कोई कीमत ही नहीं रह गयी अब।


(दोनों उदास होते है।)


सगून- क्यों न हम बच्चों की बात मान लें? 


हनुमान यादव- तुम्हारा मतलब बंटवारा! 


(हनुमान यादव चौंक कर बोले।)


सगुन- हां! जी। अब लगता है तीनों भाइयों के बीच घर और जमीन-जायदात का बंटवारा कर ही देना चाहिये।


शंकर- मां तुमने सही फैसला किया। रोज रोज की कीट पीट से अच्छा है की अब हम भाईयों के बीच बंटवारा हो ही जाएं।


(शंकर अपनी पत्नी काजल के साथ वहां प्रवेश करते हुये बोला।)


हनुमान यादव- क्या बंटवारे करने से तुम तीनो भाईयों के बीच सबकुछ वैसा हो जायेगा जैसा पहले था।


(मंझला विवेक अपनी पत्नी रजनी और छोटा माधव अपनी पत्नी शीला के साथ प्रवेश करते है।)


(हनुमान यादव की बात सुनकर सभी ओर शांती पसर गयी।) 


विवेक- लेकिन पापा ये सब आज नहीं तो कल होना ही है।


काजल- बंटवारा किसके यहाँ नहीं होता।


रजनी- हां! दीदी! आप सच कह रही है। बंटवारा तो आजकल हर घर की रीत है।


माधव- हां पापा! अब बंटवारा हो ही जाना चाहिए। ताकि हम सभी शांति से जी सके।


शीला- लो सरपंच जी भी आ गये। आईये, आईये सरपंच जी।


(सरपंच दीलिप सेन घर में प्रवेश करते है। हनुमान यादव अगवानी करते है। दोनों बैठते है।)


सरपंच साहब- हनुमान जी! आपने बुलाया था। कहिये क्या बात है?


सगुन - बात वही है सरपंच जी। घर-घर कि कहानी। बंटवारा।


(सरपंच दीलिप सेन तीनों बहू-बेटों की तरफ देखते है।)


सरपंच साहब- सही कहा भाभी जी आपने। लेकिन दिवाली सिर पर है। बारह महिने का त्यौहार है। कम से कम ये दिवाली तो आप सब एक साथ मनाओ। उसके बाद कर लेंगे बंटवारा।


हनुमान यादव चूप थे। 


शंकर- नहीं सरपंच साहब। बंटवारा तो अब दिवाली के पहले ही होगा। रोज-रोज की लड़ाई से हम सब अब तंग आ चूके है।


(सभी बेटे-बहूएं एक साथ)- हां हां। बंटवारा तो अभी होगा। दिवाली के पहले ही होगा।


सरपंच साहब- लेकिन अपने बूढ़े माता-मां को अपने साथ कौन रखेगा? उनका कुछ सोचा है तुम लोगों ने?


काजल- इसमें सोचना क्या है। जब जमीन जायदाद का बंटवारा बराबर होगा तो सास-ससूर का भी बंटवारा कर लेंगे।


(सरपंच चौंके। हनुमान यादव और उनकी पत्नी यह सुनकर सन्न रह गयी।)


शीला- हमने सोच लिया है। साल के चार महिने मां-बाबूजी हमारे साथ रहेंगे।


रजनी- और अगले चार महिने ये लोग हमारे साथ रहेंगे।


काजल- और बाकी के चार महिने अम्मा-बाबूजी हमारे साथ रह लेंगे।


सरपंच साहब (आश्चर्य से)- और तुम तीनों बेटों का क्या  कहना है?


शंकर- हम भी यही चाहते है।


(विष्णु और माधव एक साथ)- हां ! हां ! हमारी भी यही राय है।


सरपंच साहब- इससे अच्छा है कि तुम लोग इन दोनों बुढ्ढे बढ़िया को किसी वृद्धाश्राम में छोड़ आओ। चार-चार महिने की सेवा से भी बच जाओगे।


(सरपंच ने ताना मारते हुये कहा।)


रजनी- सरपंच साहब! आपको जिस काम के लिए बुलाया है आप वहीं कीजिए। आप हमारे घर के निजी मामले में दखल नहीं देंगे तो ही अच्छा होगा।


हनुमान यादव ने रजनी को आंखें दिखाई लेकिन सरपंच साहब ने रोक दिया।


शंकर- पापा-मम्मी! आप दोनों को हमारे यहां रहने में कोई दिक्कत नहीं आयेगी इस बात का मैं आपको भरोसा दिलाता हूं।


विष्णु- और चार- चार महिने आपको हम तीनों भाईयों के साथ रहने का आनन्द मिलेगा। आपकी तो जिन्दगी बड़े मज़े में कटेगी। (मुस्कुराने का ढोंग करते हुये)


माधव- हां! पापा! मेरे दोनों भाई सच कह रह रहे है। आपको हमारे साथ रहने में कोई परेशानी नहीं होगी।


हनुमान यादव- अच्छा! तो ये बताओ कि सबसे पहले तुम तीनो में से चार महिने हम दोनों को कौन रखेगा? (नाटकीय अंदाज)


(सब कूप होकर एक-दूसरे का मूंह ताकतें है)


विष्णु- बड़े भैया का पहला हक बनता है। मम्मी-पापा! आप दोनों पहले बड़े भैया के यहाँ रहेंगे।


(काजल ने अपने अपनी पति को इशारे करते हुये कोहनी मारी।)


शंकर- अरे नहीं विष्णु। मैंने तुझे बताया था न कि बच्चों की परीक्षाएं चल रही है। अभी बच्चों को एकांत और शांती की बहुत जरूरत है। पापा-मम्मी के वहां आने से बच्चो की पढ़ाई डिस्टर्ब होगी। और मम्मी पापा भी ठीक से वहां नहीं रह पायेंगे। 


विष्णु- तो माधव शुरू के चार के महिने मम्मी पापा को अपने यहां रख लेगा। चार महिने की ही तो बात है।


माधव- भैया! मैं पापा-मम्मी को अपने यहां रख लेता लेकिन अभी हमारे नये मकान का काम चल रहा है। अभी चार-पांच महिने लगेंगे मकान बनने में। तब तक आप क्यों नहीं रख लेते मम्मी-पापा को अपने यहां? मकान बनते ही मै पापा-मम्मी को अपने यहां बुला लुंगा।


(सभी को अब माधव के उत्तर की प्रतिक्षा थी।) 


माधव-(चिढ़ते हुये) पापा-मम्मी। आप उसकी चिंता न करे। बंटवारे के बाद कोई न आपको रख ही लेगा।

आप तो पहले बंटवारे के कागजात बनवाईये।


(हनुमान यादव सरपंच साहब से) - देख रहे है सरपंच साहब। ये लोग बंटवारे के बाद हमें बाकी की जिन्दगी अपने साथ रखने वाले थे जो अभी ये तय नहीँ कर पा रहे है कि शुरू के चार महिने हमें अपने पास रखेंगा कौन?


शीला- पापा जी। आप ज्यादा भावुक न बनिए। हम कोई आपके दुश्मन नहीं है। सगे बेटे-बहूंए है।


रजनी- और बंटवारे के बाद हम आप दोनों को सड़कों पर नहीं छोड़ देंगे? कुछ ना कुछ इंतजाम कर ही लेंगे। आप तो जल्द से जल्द बंटवारा करवाईये।


काजल- हां पापाजी! अब बंटवारे में ही हम सबका फायदा है।


सरपंच जी- फायदा भले ही किसी का भी हो काजल बेटी! मगर नुकसान में तो मेरा दोस्त हनुमान और सगुन भाभी रहेंगी।


(हनुमान यादव के कंधे पर हाथ रखकर सरपंच जी उदास होते है।)


हनुमान यादव धम्म से कुर्सी पर बैठ गये। जैसे कोई बड़ा प्रोफेशनल खिलाड़ी अपने जीवन का सबसे जरूरी खेल हार जाता गया हो।


सगुन- कोई बंटवारा नहीं होगा। (सगुन गुस्से में चिखी)


शंकर- मां ये तुम क्या कह रही हो? 


काजल- मत भूलिए। अपना हक हासिल करने के लिए हम अदालत में भी जा सकते है।


सगुन- तो जाओ! अदालत में जाकर अपना हक मांगो। मगर यहाँ से तुम तीनो को एक फूटी कोढ़ी नहीं मिलेगी।


हनुमान यादव- शांत हो जा! शंकर की मां वर्ना तेरी तबीयत बिगड़ जायेगी।


(हनुमान यादव उठकर सगुन को संभालते है।)


सरपंज जी- हां भाभी! आप शांत रहो। कितने दिनों बाद तो बिस्तर से उठी हो। लगता है बेटे-बहू तुम्हारे ठीक होने का ही इंतजार कर रहे थे।


सगुन- सरपंच साहब। अब यहाँ कोई बंटवारा नहीं होगा। 

ये घर और जमीन जायदाद मेरे पति की है और मरते दम  रहेगी। 


'अरे! मेरे नालायक बेटों! तुम क्या चार-चार महिने हम दोनों को अपने पास रखेंगे। मैं कहती हूं अगर मरने के बाद तुम्हें हमारी धन-दौलत चाहिये तो तीनों को साल के चार-चार महिने हमारे पास आकर रहना होगा और हमारी सेवा करनी होगी वर्ना अपनी संपत्ति में से एक फूटी कोड़ी नहीं दूंगी।'


(सगुन का कालका अवतार सभी के लिए आश्चर्य से भरा था।)


हनुमान यादव- सुन लिया तुम तीनों ने, तुम्हारी मां ने जो कहा। अभी के अभी यहाँ से निकल जाओ। और जिन्हें शुरू के चार महिने पहले हमारे यहाँ रहना हो वह कल से अपने परिवार के साथ (रहने) यहाँ आ सकता है।


सगुन- सरपंच साहब। आपका बहुत धन्यवाद। इस पूरे घर में सीसीटीवी कैमरा लगवा कर आपने हम दोनों को जो ताकद दी है, आज उसी के बदौलत हमने अपने बेटों-बहुओं का सामना पूरे आत्मविश्वास के साथ किया।


(सभी नज़रें ऊपर कर के सीसीटीवी कैमरों की ओर देखते है।)


हनुमान यादव- सरपंच साहब! इन कैमरों में कैद रिकार्डिंग हमारे बहुत काम आयेगी। अब हम बुड़े-बढ़िया की भी सुनी जायेगी और न बेटा और न बहू कोई भी हम पर झूठे इल्जाम नहीं लगा सकेगा। बल्कि हम इन लोगों की सच्चाई सारी दुनियां को दिखा सकेंगे।


सरपंच दीलिप सेन (बेटे-बहुओं से) - अभी भी वक्त है अपने मां-बाप के चरण पकड़ लो और माफी मांग लो इनसे। ये लोग अब भी तुम्हारी सब गलतियों को माफ कर देंगे। मां-बाप के मरने के सबकुछ तुम लोगों का ही तो है। ये दिवाली और आने वाली कुछ दिवाली अपने मां-बाप के संग में मनाओ।


सभी बेटे बहूएं एक दूसरे की तरफ देखते है। फिर अगले ही पल सभी हनुमान यादव और सगुन के पैरों में गिर जाते है। दिलों के मेल धूल गये और सभी एक हो जाते है।


(दिवाली के पटाखे फूटते है। सभी पात्र हाथों मे फुलझडीयां जलाते है।)


लेखक-

जितेन्द्र शिवहरे मुसाखेड़ी इंदौर

8770870151, 7746842533

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