ड्रीम ब्वाॅय-कहानी (हैप्पी दीवाली)
ड्रीम ब्वाॅय-कहानी (हैप्पी दीवाली)
अनुष्का की आँखे अनुराग को देखकर फटी की फटी रही गयी। आज इतने सालों बाद अपने पूर्व प्रेमी को यूं अचानक अपने सामने पाकर अनुष्का झुंझला उठी। उसकी आंखों में प्रतिशोध के ज्वाला मूखी धधक रहे थे। अनुष्का का मन किया कि अभी जाएं और अनुराग पर लात-घूसों की बारिश कर दें। मगर भरे बाजार में एक रेपूटेटेड कम्पनी की एम्लाई को यह शोभा नहीं देता, यह सोचकर अनुष्का ने जैसे तैसे खुद को संभाला। अनुराग सड़क के उस पार खड़ा था। वह अब भी अनुष्का को देखकर मुस्कुरा रहा था। मानो उसे अपनी गलती पर कोई पछतावा नहीं था। वह अपुष्का के पास आना चाहता था मगर जल-भून का लाल हो पड़ी अनुष्का के पास जाने की उसमे हिम्मत नहीं हुई।
"क्या हुआ अनु! चल!"
माॅल के बाहर आई महक ने सलोनी से कहा।
दोनों दिवाली की शाॅपिग करने आई थीं। आज बाॅस ने ऑफिस कर्मचारियों को दिवाली की खरीददारी के लिए हाॅफ डे का अवकाश दिया था।
"क्या ये वही है?" महक ने अनुराग को देखकर कहा। जिस क्रोध से अनुष्का, अनुराग को देख रही थी, वह ऐसे अपने सबसे बड़े दुश्मन को ही देख सकती थी।
अनुष्का कुछ न बोली। महक भी गुस्से में आ गयी। वह लपककर अनुराग के पास जा पहूंची।
तड़ाकsss!
थप्पड़ की गूंज ने दिवाली की खरीददारी करने आये लोगों को आकर्षित किया। देखते ही देखते अनुराग और महक के पास भीड़ जमा होने लगी।
"काश! ये थप्पड़ अनुष्का ने मारा होता।" अनुराग बोला। महक का हाथ पकड़ अनुष्का उसे दूर खींच लाई।
"चल यहाँ से! ये हमारी नफरत के लायक भी नहीं है।" अनुष्का बोली।
भीड़ छंटने लगी थी।
अनुराग अब भी वहीं खड़ा था।
अनुराग की इतनी हिम्मत कैसी हुई। इतना सब हो जाने के बाद भी वह अनुष्का के सामने आ खड़ा हुआ। ऑफिस में अगले दिन चर्चा का यही मुख्य मुद्दा था।
अनुराग ने ऐसा क्यों किया? अभी तक इस प्रश्न का उत्तर अनुष्का को नहीं मिला था और आज अचानक यूं निर्भीक होकर उसके सामने आकर अनुराग ने कुछ और नये प्रश्नों को जन्म दे दिया था। अब न चाहते हुये भी अनुष्का इन सभी प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए मजबूर थी।
अगले दिन अनुराग फिर उसी पर मोड़ पर खड़ा था जहां से अनुष्का का ऑफिस आने- जाने का रास्ता था।
"कोई इतना बेशर्म कैसे हो सकता है।" महक बोली। वह अनुष्का के साथ ऑफिस जा रही थी। उसने अनुराग को देख लिया था जो एक टक बस अनुष्का को ही निहारे जा रहा था।
अनुष्का कुछ न वोली। अनुराग को देखना भी उसे गंवारा न था। वह अपनी चाल से चलते हुये ऑफिस के मेन गेट प्रवेश कर गयी।
शाम को सभी कर्मचारी प्रसन्नचित मुड में ऑफिस से बाहर निकल रहे थे। बोनस और दिवाली का गिफ्ट मिलने की खुशी सभी के चेहरे पर दिखाई दे रही थी। मगर अनुष्का शांत थी। उसकी नज़रें किसी को ढूंढ रही थी। ये महक जानती थी। अनुराग वही खड़ा था। पहले की तरह। अपनी बाइक के साथ।
"क्यों न हम इसकी पुलिस कम्लेन कर दें।" आनंदी बोली।
"मैं तो कब से यही होल रही हूं मगर ये अनु सुने अब न!" महक चिढ़ते हुये बोली।
"महक! ये प्राॅबल्म मेरी है और इसे में साल्व करूंगी। मुझे जब लगेगा की पुलिस की जरूरत है तब मैं वहां भी कम्लेन करूंगी। यूं बाॅथ आर डोन्ट वरी।" अनुष्का ने कहा।
"अच्छा ठीक है। मगर तुने पृथ्वी सर के बारे में क्या सोचा है?" महक ने पूँछा।
"हां यार। सच अ वेरी गुड एण्ड हेन्डम पर्सन। तुझे फौरन हां कर देना चाहिए।" आनन्दी बोली।
"हेन्डम और गुड तो अनुराग भी था आनन्दी।" अनुष्का ने कहा।
"समझ गयी अनु। पहले इस अनुराग का चैप्टर क्लोज करना पड़ेगा, तु तब ही किसी दूसरे के बारे में सोच पायेगी।" महक ने आगे कहा।
कुछ दिनों की लुकाछिपी के बाद अनुराग जैसे कहीं गायब हो गया। उसका कहीं अता-पता नहीं था। अनुष्का की सहेलियों को विश्वास हो चला था कि धेखेबाज अनुराग का इलाज अनुष्का कर चूकी है। वह शायद इसीलिए अब अनुष्का के सामने नहीं आ रहा है।
दिवाली की रौनक चरम पर थी। संजी-धंजी अनुष्का द्वार पर रंगोली बनाने बैठी थी। तब ही कोई जुते अनुष्का के पास आकर ठहर गये। ये कदम अनुष्का पहचानती थी। ये अनुराग था जो आज अचानक अनुष्का के घर आ पहूंचा था।
"आखिर तुम चाहते क्या हो अनुराग? क्यों मेरा पीछा कर रहे हो?" अनुष्का खिन्न थी। उसने रांगोली बनाना छोड़ दी और खड़ी होकर अनुराग पर बरस पड़ी।
"मैं तो तुम्हे ही चाहता हूं अनु!" अनुराग बोला।
"ओहहह! प्लीज! ये फालतू की डाॅयलाॅग बाजी रहने दो।" अनुष्का ने कहा।
"यही सच है अनु।" अनुराग ने कहा।
"ये चाहत तब कहाँ गयी थी जब किसी दूसरी औरत को अपनी दुल्हन बनाकर तुम मेरे सामने ले आये थे! अब हुआ? क्या उससे मन भर गया जो अब मुझे अपनी चाहत के जाल में फिर से फंसाने चले आये?" अनुष्का तेश में आ गयी थी।
"हम-तुम दोनों अपनी-अपनी जगह तब भी सही थे और आज भी है।" अनुराग ने कहा।
"मैं नहीं मानती!" अनुष्का पलटककर घर के अंदर जाने लगी।
अनुष्का के पीछे-पीछे अनुराग भी घर के अंदर दाखिल हो गया।
"यदि हम दोनों खुश नहीं है इसका मतलब या तो हम दोनों गलत है या फिर दोनों सही है।" अनुराग बोला।
"मैं कुछ सुनना नहीं चाहती। चले जाओ मेरे घर से।" अनुष्का ने अनुराग को दरवाजे की ओर इशारा करते हुये कहा।
तब ही एक परछाई दबे पांव अंदर चली आई। ये कोई ओर नहीं अनुराग की बीवी जयश्री थी जो हाथों में एक शिशु को थामे थी।
ये अनुराग के लिए भी आश्चर्य से कम न था। आखिर जयश्री को अनुष्का के विषय में कैसे पता चला? वह यहां तक कैसे आई?
आनंदी और महक की एन्ट्री ने एक बात तो साफ कर दी थी कि जयश्री को वे दोनों ही यहां लेकर आयीं है।
"अनुराग जी! यह जयश्री है न? आपकी पत्नी" महक ने पूँछा।
"और यह आपका बेटा है न? सुमित?" आनंदी ने आगे पूँछा।
अनुराग चूप था। वह झटपटा रहा था।
"जब आपकी लाइफ में जयश्री और सुमित पहले से ही है तब मेरे पीछे क्यों पड़े है?" अनुष्का ने आगे पूंछा।
निरूत्तर अनुराग कुछ न बोला। सिर झुकाएं वह अपनी गलती स्वीकार कर चूका था।
"आप लोग अनुराग जी को ज्यादा परेशान मत कीजिए। वो सबसे बेस्ट है। माए ड्रीम ब्वाॅय।" शरीर से बड़ी और दिमाग से छोटी जयश्री बोली। लड़खड़ाती आवाज़ में उसका भोलापन साफ झलक रहा था।
जयश्री के हाथों में खेल रहा सुमित अपने पिता के पास जाने के लिए मचल उठा। सुमित को अनुराग की बाहों में आकर ही चैन मिला। ये घटनाक्रम साक्ष्य था एक पिता-पुत्र के असीम आपसी प्रेम और ममत्व का।
तीनों सहेलियां सबकुछ शांत मन से देख रही थी।
उन्हें अनुराग के उद्बोधन की प्रतिक्षा थी।
"अनु! ये सच है। जयश्री मेरी पत्नी है और सुमित मेरा बेटा है।" अनुराग बोला।
"इसके बाद भी तुम अनुष्का से प्रेम करते है?" आनन्दी ने आगे पूछा।
"ये भी सच है आनन्दी। मैं अनुष्का से प्रेम करता हूं और हमेशा करता रहूंगा।" अनुराग निर्भिक था।
"इस तरह से तो आप अनु और जयश्री दोनों के साथ अन्याय कर रहे है।" महक बोली।
"और खुद के साथ भी।" आनन्दी ने आगे कहा।
"अनुराग किसी के साथ कोई अन्याय नहीं कर रहे महक! उन्होंने जो किया वो दूसरा कोई ओर नहीं कर सकता।" अनुष्का ने बीच में कहा।
अनुराग का अनुष्का द्वारा समर्थन एक नये आश्चर्य को जन्म दे गया।
महक और आनन्दी की आंखें आपस में बात कर रही थी। जिसमें अनुष्का भी शामिल हो गयी।
सड़क पर बदहवास हालत में मानसिक रूप से कमजोर जयश्री चले जा रही थी। प्रसव पीड़ा से तड़पती जयश्री को मदद की जरूरत थी मगर एक पागल की मदद करें भी तो कौन?
ये अनुराग ही था जिसने बीच सड़क पर अपनी कार रोकी। दुनियां दारी की परवाह नहीं करते हुये उसने जयश्री को हाथों से उठाकर कार में बैठाया।
जयश्री को हाॅस्पीटल में एडमिट करने के बाद अनुराग कुछ समय वही रूक गया। कुछ घंटों की सर्जरी के बाद अनुराग को पिता बनने की बंधाई देने नर्स आ पहूंची। यह एक बेटा था जो अब अनुराग के हाथों में था।
अनुराग अनायास ही उस शिशु का कागजी पिता बन चूका था जो जयश्री की तुरंत डिलेवरी के लिए तात्कालिक आवश्यक कदम था।
अखबार में जयश्री के साथ हुये अन्याय को न केवल अनुष्का ने संज्ञान में लिया बल्कि महक और आनन्दी को भी बताया। सेठ जसवंत प्रसाद के यहाँ काम करने वाली जयश्री की मां दमयंती अक्सर जयश्री को सेठ साहब के बंगले पर ले जाया करती थी।
सेठ साहब के बिगड़ेल साहबजादे विक्की की नज़र जयश्री पर क्या पड़ी, जयश्री का जीवन ही बदल गया।
भौतिक सूख सुविधाओं के प्रलोभन में जयश्री अपना सबकुछ विक्की को सौंपती गयी। जब तक किसी को कुछ पता चलता तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दमयंती के विरोध को सेठ साहब ने धन-धान्य से दबा तो दिया लेकिन जयश्री के पेट के बच्चें को वो चाहकर भी मार न सके।
सेठ साहब की कैद से भागी जयश्री को अनुराग ने न केवल पनाह दी बल्कि जयश्री के हक में अपनी आवाज़ भी बुलंद की। अखबारों में मानसिक रूप कमजोर जयश्री के यौन शौषण की खबरों ने सेठ साहब को बहूत लज्जित किया। मजबूरन उन्हें स्वयं विक्की को गिरफ्तार करवाना पड़ा।
अनुराग ने जयश्री और दमयंती का साथ नहीं छोड़ा। वह जच्चा और बच्चा का सच्चा हमदर्द बनकर उनकी देखभाल करता रहा।
राजनीति दबाव के चलते सेठ साहब ने जयश्री को बहू के रूप में स्वीकार ने की पहल कर डाली मगर जयश्री के इंकार ने सभी को चौंका दिया। इतना ही नहीं स्वयं जयश्री ने अनुराग से कहा कि वह अनुष्का को अपना जीवनसाथी बना लें। वह अपने बच्चें की परवरिश अकेले ही करने में सक्षम है।
जयश्री के अविकसित छोटे दिमाग में इतनी बड़ी बातें आना महान आश्चर्य की बात थी।
दमयंती को अपनी बेटी पर गर्व था। जयश्री और दमयंती दोनों एक-दूसरे का सहारा बनकर जीवन की लड़ाई अकेले ही लड़ने का मन बना चूकी थीं।
अनुष्का सब जान चूकी थी। महक और आनन्दी अपनी सहेली के लिए बहूत प्रसन्न थी।
महक के मन मंदिर में जो राजकुमार बैठा था वह अनुराग से कमतर ही था। आनंदी ने भी ईश्वर से यही प्रार्थना की कि उसका होने वाला ड्रीम ब्वाय अनुराग की तरह ही हो।
दिवाली के पटाखे फूटने शुरू हो चूका थे। असंख्य दीपों के प्रकाश की चकाचौंध ने ग़लतफहमी के अंधियारें को समाप्त कर दिया था।
अनुष्का ने अनुराग के साथ दिवाली पूजन किया।
अनुष्का और अनुराग दोनों एक हो गये। उनके सभी कष्टों का अंत हो चूका था।
लेखक-
जितेन्द्र शिवहरे मुसाखेड़ी इंदौर
8770870151
7746842533
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