एटीएम- कहानी

 एटीएम


सुधा के लिए उसका ससुराल आज पहले पहल वाली अनुभूति दे रहा था। जब वह शादी के बाद पहली बार अपने ससुराल आई थी। यहां उसे सिर्फ साड़ी पहनना होती थी। घर का कामकाज निपटाने के बाद ही वह अपने ऑफिस जा सकती थी। लौटने पर भी उसे मजदूर की तरह घरेलू कामों में आधी रात होने तक भीड़ना पड़ता था। सभी की जरूरते पूरी करने के बाद यदि समय बचता तब ही वह स्वयं के लिए सोच सकती थी।


फिर वह पल भी आया जब सुधा ने अनिरूद्ध को अपना एटीएम कार्ड सौंप दिया। घर के घरेलु और बाहरी खर्चों के लिए सुधा की यह मदद ससुराल वालों को बहुत पसंद आई। सास हेमा ने सुधा को बहू से कब बेटी मान लिया पता ही नहीं चला। ससूर सुखदेव ने सुधा को सब्जी भाजी और अन्य किराना सामान लाने के भार से जैसे मुक्त ही कर दिया था। अनिरूद्ध अपने टीफीन के साथ सुधा का भी टीफीन पैक कर दिया करता। दोनों बच्चों के जन्मों के बाद भी सुधा घर में किसी महारानी से कम नहीं थी। ऑफिस से लौटते ही गरमा गर्म चाय और पकोड़े का नाश्ता सुधा के लिए अनिवार्य था। यह हेमा की मीठी जिद थी जिसे सुधा को स्वीकारने के आलावा कोई अन्य रास्ता नहीं होता था। अनिरूद्ध की स्वयं के लिए परवाह देखकर सुधा गदगद थी। अपने ऑफिस के बाद भी वह सुधा को उसके ऑफिस छोड़ना और वहां से घर लाना कभी नहीं भूलता था।


बिती यादों को याद करते हुये आज सुधा की आंखें भर आई। आज फिर वह बस के धक्के खाते हुए ऑफिस से घर आई थी और आते ही किचन में जा घूसी। अब से शाम की चाय और पकोड़े उसे ही स्वयं बनाने थे। ये ही नहीं सब्जी भाजी और किराना खरीदने से लेकर उन्हें पकाने से परोसने तक का काम सुधा की एकमात्र जिम्मेदारी थी। बर्तन और कपड़ों में उसे फिर से रात की एक बजने लगी।


'क्या इन सबके पीछे ये एटीएम है?' सुधा स्वंय में बड़-बड़ा रही थी। उसके हाथ में सिर ऊंचा किये वह एटीएम कार्ड मुस्कुरा रहा था। उस निर्जीव वस्तु की ऐंठन सुधा को आज बहुत चूभ रही थी। इतने सालों की सैलेरी का हिसाब उसने कभी नहीं पूँछा था और अब जब उसने अपने मायके वालों की मदद के लिए अपना एटीएम वापिस मांगा तो मानो जैसे उसके जीवन में वह अजीब-सा खालीपन फिर से लौट आया था। क्या संबंधों की चौखट पर एटीएम रूपी दिया उसे फिर से जलाना पड़ेगा? सुधा सोच में डूबी थी। समपर्ण और त्याग तो जैसे औरत जीवन का अभिन्न अंग बन गया था। तब सुधा इससे अछुति कैसे रह सकती थी? रिश्तों में मधुरता के लिए सुधा के लिए यह त्याग एक आवश्यक कदम था जिसे उठाते ही सुधा का मान-सम्मान उसके ससुराल में एक बार फिर लौट आया था।



लेखक-

जितेन्द्र शिवहरे

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