इतिहास (लघुकथा)
*इतिहास (लघुकथा)*
*ड* री सहमी करूणा कोचिंग क्लास में दाखिल हुई। सभी स्टूडेंट्स की नज़रें उसी पर जमी थी। हाल ही में करूणा के पिता का लंबी बिमारी के बाद निधन हो गया था। करूणा की मां दर्जी थी और उसका छोटा भाई अरूण प्राथमिक कक्षा में पढ़ रहा था। बोर्ड परिक्षाएं नजदीक थी अतः करूणा की माली हालत देखकर मास्टर जी ने करूणा की ट्यूशन फीस माफ करने का निश्चिय किया था।
"सर! ये लिजीए आपकी ट्यूशन फीस।" करूणा रूपये मास्टर जी को देते हुये बोली।
"नहीं बेटी! अब से तुम यहां नि:शुल्क पढ़ोगी।" मास्टर जी बोलें।
"ये मेरी खुद की कमाई के पैसे है सर!" करूणा बोली।
मास्टर जी कुछ बोल पाते इससे पहले ही करूणा ने आगे कहा।
"नि:शुल्क चीजों का हम मूल्य नहीं समझ पाते। मुझे फ्री में पढ़ाई नहीं करनी।" करूणा ने रूपये मास्टर जी के हाथ में थमा दिये और वह अपनी सीट पर जाकर बैठ गयी।
"ऐसे स्टूडेंट ही इतिहास लिखा करते है।" बरबस ही मास्टर जी के मुंह निकला।
रूपये जेब में रखकर मास्टर जी अध्यापन में व्यस्त हो गये।
समाप्त
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जितेन्द्र शिवहरे मुसाखेड़ी इंदौर
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सकारात्मक सन्देश
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