ममास् ब्वाॅय (कहानी)

 ममास् ब्वाॅय (कहानी)            ✍️जितेन्द्र शिवहरे

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"शादी के बाद के आप मुझे मां से अलग रहने को तो नहीं कहेंगी?" अरविंद ने झिझकते हुए पूंछा।

"ये कैसा सवाल है?" विद्या ने पूंछा।


दोनों की शादी से पहले की यह पहली मुलाकात थी।


"सवाल सीधा है।" अरविंद बोला।

"लेकिन इस मौके पर आप ये सब क्या पूंछ रहे है?" विद्या अचरज में थी।


"मैं अपनी मां से बहुत प्यार करता हूं विद्या।" 

"वो तो मैं भी अपनी माॅम से करती हूं।"


"फर्क है।" अरविंद बोला।

"कैसा फर्क?" विद्या ने पूंछा।


"आप अपनी माॅम से प्यार करती है और मैं अपनी मां से प्यार करता हूं।" अरविंद ने बताया।


"क्या बकवास है। दोनों एक ही बात है।"


"समझने की कोशिश करें।" 


"इसमें नासमझने वाली कौनसी बात है?" विद्या बोली।


"मैं आपको समझा सकता हूं।" अरविंद बोला।


"लेकिन आपको ऐसा क्यों लगता है कि मैं आपको आपकी मां से दूर कर दूंगी?" विद्या ने पूंछा।


"क्योंकि यही होता है। बीवीयां शादी के बाद अपने सास-ससुर के पास रहना नहीं चाहती।" अरविंद ने बताया।


"इसमें सारी गलती एक अकेली बहू की तो नहीं होती।" विद्या ने कहा।


"तो आप मानती है कि बहू की गलती होती है?" अरविंद ने कहा।


"नहीं मैंने ऐसा नहीं कहा।"


"लेकिन इसका एक मतलब तो यहीं है न!" 


"मुझे ये समझ नही आ रहा है कि आप शादी से इतना डरते क्यों है?" 


"आपका कहने का क्या मतलब है?" 


"मतलब ये कि मैंने आपके बारे में थोड़ा-बहुत पता किया है। आप हर लड़की ये यही सवाल करते है और इसी बहस में लड़कीयां आपको रिजेक्ट कर देती है।" विद्या ने बताया।


"तब आप भी वही सोचती है तो जो बाकी की लड़कीयां सोचती है?" अरविंद ने पूंछा।


"डेफिनेटली! साॅरी टू से! बट आप वही है, ममास् ब्वाॅय।" विद्या ने बिना डरे कह दिया।


"आई लव दीस वर्ड। ममास् ब्वाॅय।" अरविंद ने हंसते हुये कहा।


"लेकिन इसे बेवकूफी कहते है अरविंद।"


"आखिर आप कब तब अपनी मां के पल्लू से बंधे रहेंगे। मर्द बनिये। अपने निर्णय खुद लीजीए।" विद्या तेस में आ गयी थी।


"आपने पूंछा था न! माॅम और मां में क्या फर्क है?" अरविंद ने पूंछा।


"हां! बताईये।" विद्या बोली।


"विद्या! हम चार भाई-बहन है। तीन बहनों के बीच बहुद ही लाड-प्यार में पला बढ़ा मैं एक अकेला भाई अरविंद। हर छोटी-छोटी चीज के लिए आसमान सिर पर उठा लेना वाला।" अरविंद ने बता रहा था।


"बहनोईयों का समर्थन पाकर जब मेरी तीनों बहनें जायदाद के लिए अपना हक जमाने आई तो मैंने बगावत कर दी। मां-बाबूजी कुछ न बोले। फिर एक दिन वह हुआ जिसने सबकुछ बदल कर रख दिया!" अरविंद ने आगे कहा।


"ऐसा क्या हुआ था?" विद्या ने पूंछा।


"एक दिन घर और जमीन के कागजात ढूंढते हुये मुझे अपना अडाॅप्शन सर्टीफिकेट मिल गया।" अरविंद बोला।


"क्या?" विद्या का मुंह फटा की फटा रह गया।


"हां विद्या! मां ने मुझे अडाॅप्ट किया था। तीन बेटियों के बाद बेटे की जिज्ञासु मां मुझे अपने घर ले आयी। उसने कोई कसर नहीं छोड़ी मेरे लालन-पालन में।" अरविंद का गला भर आया था।


"अनाथालय जाकर पूंछा तो वहां से पता चला कि मुझे वे लोग किसी कचरे के ढेर से उठाकर लाये थे। लीलावती देवी ने अनाथालय से अरविंद को गोद ले लिया जबकि मेरे पिता शिव प्रसाद इसके लिए तैयार नहीं थे।" अरविंद ने बताया।


विद्या कुछ पल के लिए चुप हो गयी।


"विद्या! तुम्हे जिसने जन्म दिया वह तुम्हारे लिए तुम्हारी माॅम है और जिसने मुझे पाल-पौसकर अपने सगे बच्चें से बढ़कर प्यार किया वह मेरी मां है।" अरविंद ने बताया।


विद्या के पास शब्द नहीं थे। वह सोच के भंवर में फंस चूकी थी। खुद को संभालते हुये आखिरकार उसने वही कहा जो बाकी की लड़कीयां अरविंद से कहती आई थी।


विद्या के इंकार से अरविंद को कोई खास फर्क नहीं पढ़ा। हां! लेकिन वह विद्या के इंकार की वजह जानना चाहता था।


"अरविंद। शादी के बाद भी तुम्हारा नज़रिया वहीं रहेगा जो अभी है। और ये पति-पत्नि के रिश्तें के लिए बहुत ही खतरनाक है। अपनी मां के आगे तुम्हें कुछ नहीं दिखता। ऐसे में तुम्हारी बीवी की आवाज़ कौन सुनेगा?" विद्या बोलकर जा चुकी थी।


अरविंद बनावटी मुस्कुराहट लिए घर लौट गया।


(कुछ दिनों बाद)


लीलादेवी को अपने घर आया हुआ देखकर विद्या चौंक गयी। अरविंद भी उसके साथ था।


"विद्या! अरविंद से मैंने बात की है और उसे इस बात पर राजी कर लिया है कि जब तक वह समस्या की जड़ तक नहीं पहुंचेगा, तब तक उसकी नज़रों में हम दोनों ही निर्दोष रहेंगे।"


"परिवार में सभी की समान रूप से सुनवाई होगी और कोई भी फैसला एक पक्षीय नहीं होगा।" लीलावती देवी बोली।


विचार मग्न विद्या के चेहरे पर हल्की मुस्कान बिखर गयी। यह उसकी और अरविंद की शादी की मौन अभिस्वीकृति थी।


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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