तन रंग लो...मन रंग लो..!

 तन रंग लो...मन रंग लो...! (कहानी)   ✍️जितेन्द्र शिवहरे

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                                      (होली विशेष)

"होली खेलने की बात तो ठीक थी, मगर विश्वास हमारी अंजू को अपने साथ शहर का रंगोत्सव दिखाना चाहता है।" कृति की बातों में अपनी जवान बेटी के लिए चिंता साफ झलक रही थी।

"मुझे भी यह अजीब तरह की मांग समझ में नहीं आई।" महेश महाजन भी अपनी पत्नि के साथ थे।

"न बाबा! शहर भर में गुंडे-बदमाश आज के दिन हुड़दंग मस्ती करते है। कुछ ऊंच-नीच हो गयी तो?" कृति हड़बड़ाहट में बोल गयी।

"लेकिन पापा! ड्राय डे पर लोगों को शराब कहाँ से मिल जाती है।" छोटी सुरभि बीच में कूद पड़ी।

"पीने वालों अपनी खुराक ढूंढ ही लेते है छुटकी!" महेश महाजन बोले।

"आप तो विश्वास को फोन कर के मना कर दीजिए। उनसे कहिए होली खेलना है तो यहाँ आकर अंजू को रंग लगा सकता है लेकिन हम अंजू को धुलेड़ी पर बाहर नहीं जाने देंगे।" कृति बोली।

"एक बार फिर सोच लो कृति। इस इंकार का असर कहीं होने वाले रिश्तें पर न पड़े? लड़का और परिवार दोनों ही बहुत अच्छे है। अंजू की होने वाली सास भी नौकरी में है। घर में सभी पढ़े-लिखे, समझदार और सभ्य है।" महेश महाजन ने समझाया।

अपने पति की बात सुनकर कृति सोच में डूब गयी।

"हे भगवान! ये कैसी उलझन में डाल दिया है हमें विश्वास कुमार ने।" कृति का विलाप जारी था।

"ओह मां! आप बे-फिजूल ही चिंता कर रही है। अगर आप लोग कहें तो मैं दीदी के साथ चली जाती हूं।" सुरभि फिर बीच में बोल उठी।

"नहीं सुरू! हमें कहीं नहीं जाना। जिस कारण मां और पिताजी दुविधा में पड़ जाएं, मुझे वह काम नहीं करना। पापा आप विश्वास जी को मना कर दीजिए।" बहूत देर के बाद अंजू ने अपनी राय बता दी।

"क्या मैं अंदर आ सकता हूं?" दरवाजे पर खड़ा विश्वास मुस्कुरा रहा था।

सभी के चेहरे पर हैरानी से भरे भाव उभर आये। अंजू हमेशा की तरह अंदर के कमरे की तरफ भाग जाना चाहती थी मगर आज उसने खुद को विश्वास का सामना करने के लिए मना लिया।

"आओ बेटा! आपको अंदर आने के लिए हमसे इजाजत लेने की कोई जरूरत नहीं है। इसे अपना ही घर समझो। आओ!" महेश महाजन ने विश्वास को डायटिंग हाॅल में बिठाया।

विश्वास वातावरण की इस उधेड़बुन को ताड़ गया। कुछ देर की चूप्पी के बाद वह बोला-

"क्या मैं अंजू को अपने साथ बाहर ले जा सकता हूं?" 


कृति और महेश महाजन के पास शब्दों का जैसे अकाल पड़ गया था। वे दोनों चाहते थे कि अब अंजू उनकी तरफ से बोले।


"विश्वास जी! मैं आपके साथ बाहर होली खेलने नहीं जाना चाहती!" अंजू बोली।


"क्या मैं इसका कारण जान सकता हूं।" विश्वास बोला।


"क्योंकि आज होली के दिन शराबी लोग शहर भर में घूम-घूम कर उत्पाद मचाते है। राह चलते लोगों को परेशान करते है।" सुरभि ने चाय की ट्रे रखते हुये कहा।


कुछ पलों की खामोशी और चाय की चुश्कियों के बाद विश्वास ने लम्बी सांस ली।


"देखीए। मैं आप सभी की चिंता समझ सकता हूं। लेकिन मैं आपको किसी परेशानी में नहीं डालूंगी इस बात का पूरा भरोसा दिलाता हूं।" विश्वास बोला।


यह दिलासा कृति और महेश महाजन के लिए पर्याप्त नहीं था।


"अंजू! आज होली का त्योहार है। सारा शहर खुशियों के रंगों में नहाया हुआ है। घर से निकलो और चलकर बाहर देखों, कितना रंग-बिरंगा संसार है। सभी तरह के रंग तुम्हारा इंतजार बड़ी बे-सब्री से कर रहे है।" विश्वास ने आगे कहा।


"नहीं, मुझे कुछ नहीं देखना। और रंग तो हर जगह एक जैसे ही होते है विश्वास जी! क्या घर के अंदर और क्या घर के बाहर?" अंजू ने तर्क दिये।


"मुझे पता है कि कुछ बुरे लोगों की बुरी भावनाएं तुम्हें परेशान किये हुये है। लेकिन अंजू, अच्छे और बुरे लोगों से तो दुनियां बनी है। हम इनसे बचकर या छुपकर कहीं नहीं जा सकते।"


"और तन रंगने के साथ मन को रंगना भी बहुत जरूरी है।" विश्वास आगे बोला।


"आपके कहने का मतलब मैं समझी नहीं।" अंजू ने पूंछा।


"अंजू! यह एक अकेली तूम्हारी बात नहीं है। तुम जैसी और भी न जाने कितनी ही अंजू आज भी बाहर की होली और अपने अंदर के रंगों से अनजान है।" विश्वास ने कहा।


किसी को कुछ समझ नहीं आया। सभी एक-दूसरे के चेहरे देख रहे थे।


"होली पर दुर्भावना के शिकार कुछेक लोगों ने होली को नशेड़ी और शराबियों का त्योहार मान लिया है और सदियों से वे लोग ऐसा ही दुष्प्रचार करते आ रहे है। लेकिन हजारों अच्छें और सभ्य लोग जो मिल जुलकर आपसी सौहार्द के साथ होली मनाते आ रहे है, हम उनकी विशेष होली कभी देख ही नहीं पाते।"


"शहर भर में अगल-अलग टोलियाँ अनेक रंगों से लथपथ गाते-बजाते नगर भ्रमण पर निकलती है। इनमें महिलाएँ भी उतने ही उत्साह से भाग लेती है जितने की पुरूष और बच्चें।"


"हां! अनेक बार कुछ बुरे लोग इन्हें परेशान करने की कोशिश करते है लेकिन इसके लिए हमारे पुलिस जवान हर सड़क और हर चौराहों पर मां-बहन की सुरक्षा के लिए तैनात खड़े मिलते है। और सबसे जरूरी बात! आज महिला दिवस भी है। होली पर महिलाओँ को घर में दुबके रहने के बजाएं बाहर निकलकर बूरी ताकतों की हिम्मत ध्वस्त करनी ही चाहिए।"


"एक जरूरी बात और! अब अंजू और मेरा संबंध जुड़ने वाला है। आज वह मेरे साथ होगी और मेरे रहते अंजू का कुछ भी अहित नहीं होगा इस बात की ग्यारंटी मैं आप सभी को देता हूं।" विश्वास ने आगे कहा।


विश्वास की बातें सुनकर अंजू अब निर्भीक थी। कृति और महेश महाजन के चेहरे पर निडरता के भाव लाने में भी विश्वास सफल रहा था।


अंजू को बाहर तक छोड़ने आई कृति ने विश्वास के मस्तष्क पर लाल गुलाल मल दिया। महेश महाजन पड़ोसीयों से होली खेलने आगे आये। उन्होंने द्वार-द्वार दस्तक दी और सभी को होली खेलने के लिए आमंत्रित किया। झिझकते हुये ही सही मगर पड़ोसी घर से बाहर निकले और जमीन से आसमान तक बिखरे हुए रंगों को उन्होनें एक बार फिर बहुत ही नजदीक से अनुभव किया। गाते-बजाते आ रही मस्ती में डूबी टोली में सभी सम्मिलित हो गये। सुरभि ने झूमते हुये दोनों मुट्ठियों में भरा रंग-गुलाल हवा में उछाल दिया। सभी के तन और मन दोनों रंग चूके थे।


समाप्त 

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जितेन्द्र शिवहरे इंदौर 

8770870151

7746842533

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