धोखा (कहानी)
धोखा (कहानी)
✍️जितेन्द्र शिवहरे
राॅबर्ट कल रात के सपने के बारे में बता रहा था। उसने कहा कि सभी एक हो गये थे। कोई फंसाद नहीं, कोई तनाव नहीं था। लोग मंदिर और मस्जिद का सम्मान करना सीख गये थे। धार्मिक स्थलों पर कुछ भी फेंका या तोड़ा जाता तो भी आक्रोशित लोग ढूंढें से नहीं मिल रहे थे। जैसे उन लोगों को राजनीति की असली पहचान हो चूकी थी। यहां तक की वे अपनी संतान को झंडा और डंडा छुडवाकार जबरन पढ़ाई-लिखाई में ढगेल रहे थे।
विक्की भी हैरत में था। अगर राॅबर्ट का ये सपना सच हो गया तो उन जैसे हजारों बेरोजगारों का क्या होगा?
राबर्ट ने कहा, "पर तुझे किस बात की चिंता? तु तो करोड़पति का इकलौता जवाई बनने वाला है!"
दोनों हंस दिए।
"लेकिन राॅबर्ट! तु भी चिंता मत कर। जब तक लोग बेवकूफों की तरह बिना जांच-पड़ताल किये अफवाहों पर यकिन करते रहेंगे तब तक तेरा ये सपना कभी सच नहीं होगा।" विक्की ने कहा।
"सच कहता है दोस्त! यहाँ बेवकूफों की कमी नहीं है एक ढूंढो, हजार मिलेंगे और जब तक ये बेवकूफ लोग जिंदा है हम जैसे होशियार लोग पलते रहेंगे।" राॅबर्ट ने कहा।
दोंनो सिगरेट फूंकने में व्यस्त हो गये।
विक्की आगे बोला, "एक बार जान्हवी के पिता हां कर दे बस! फिर ये सब काम छोड़कर अपनी जान्हवी के साथ शादी कर के चैन कि जिन्दगी जिऊंगा।"
राबर्ट के मुंह से निकल रहा सिगरेट का धुंआ अब विक्की के मुंह से निकल रहा था। तब ही एक कार वहां आकर रूकी। उसमें जान्हवी संवार थी। उसने विक्की को देख लिया। हड़बड़ाहट में विक्की ने सिगरेट पैरों के नीचे फेककर कुचल दी। वह दौडकर कार के पास जा पहूंचा। राॅबर्ट को बाय करता हुआ विक्की कार में बैठ गया।
उस रात रमन मल्होत्रा अपनी बेटी जान्हवी को समझा रहे थे। वे चाहते थे कि जान्हवी विक्की से दूर रहे। मगर जान्हवी पर प्यार का भूत संवार था। इतनी जल्दी वो कहाँ मानने वाली थी।
रमन मल्होत्रा भी कच्चे खिलाडी नहीं थे। उनके पास हजारों पैंतरे थे जिनका इस्तेमाल करना अभी बाकी था। साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने के कारण विक्की पकड़ा गया। उस पर ढेरों जार्जेस लगाये गये। इस बार जान्हवी भी उसे बचा नहीं सकी। कुछ ही दिनों में विक्की को जेल भेज दिया गया। अपने प्यार के गम में डूबी जान्हवी के जीवन में तब ही सिध्दार्ध की एंट्री हुई। यह सब रमन मल्होत्रा के इशारों पर हो रहा था। सिद्धार्थ बिजनेस मेन था और उसे रमन मल्होत्रा के सपोर्ट की बहुत जरूरत थी सो एक सड़क छाप लफंगे के प्यार में बदनाम हो चूकी जान्हवी को उसने स्वीकार कर लिया।
सिद्धार्थ की बे- हिसाब देखभाल देखकर जान्हवी पिघल गयी और उसने सिद्धार्थ से शादी करने का मन बना लिया। मगर रमन मल्होत्रा अपनी बेटी को एक ओर आखिरी सीख देना चाहते थे।
उन्होंने जान्हवी से कहा, "बेटी! छोटे लोग हम जैसे रहीस लोगों के बहूत बड़े सपोर्टर होते है इसलिए इन्हें कभी हर्ट मत करना।"
जान्हवी को कुछ समझ नहीं आया। वह बोली, "फिर आपने विक्की का दिल क्यों दुखाया?"
रमन मल्होत्रा बोले, "क्योंकि विक्की अपनी औकात भूल गया था।"
धीरे-धीरे जान्हवी को अपने पिता की योजना समझ में आने लगी। रमन मल्होत्रा ने समझाया कि विक्की जैसे सैकडों-हजारों जरूरत मंद लोग उन जैसे असंख्य अमीर लोगों के यहाँ काम करते है। बंगले और ऑफिस की सुरक्षा, साफ सफाई और हर तरह की देखभाल करते है। इन्हें ज्यादा कुछ नहीं चाहिये होता, बस समय पर तनख्वाह देते रहो, और कभी कभार जरूरत पड़ने पर एडवांस रूपये देकर मदद कर दो। इस तरह की मदद ये लोग कभी नहीं भूलते और जीवन भर अपने मालिक के वफादार बनकर रहते है।
बस रहीसों को इनकी भावनाओं का खयाल रखना होता है ताकि ये लोग कभी हर्ट न हो। क्योंकि अगर ये लोग हर्ट हुये तो इन्हें छोटे से बड़ा बनने के लिए कोई रोक नहीं सकता। और अगर ये भी अमीर बन गये तो पहले से पुश्तैनी अमीरों की चाकरी कौन करेगा?
"और सबसे जरूरी बात।" मि. रमन मल्होत्रा आगे बोले, "अगर ये लोग आपके सिर पर बैठने की कोशिश करें तो ऐसा सबक सिखाएं जिससे की सांप भी भर जाएं और लाठी भी न टूटे।"
जान्हवी को सारी बात समझ में आ गयी। अब उसे विक्की को धोखा देने में कोई गुरेज नहीं था। वह खुशी-खुशी विक्की को धोखा देकर सिध्दार्थ की हो गयी।
समाप्त
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जितेन्द्र शिवहरे इंदौर
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