तेरी दिवानी-कहानी

 


तेरी दिवानी- कहानी       ✍️जितेन्द्र शिवहरे 


           "यदि मैं तुम्हारा प्रपोजल एक्सेप्ट कर लेती, तब भी क्या अंदर नहीं आते?" दिव्या ने वैभव से कहा। वह बाइक पर सवार था।


वैभव कुछ पलों के लिए सोच में पड़ गया।


"अब तो काॅफी पीनी ही पड़ेगी।" वैभव बोला।


दोनों मुस्कुराते हुये फ्लैट में दाखिल हुये।


"वाओ! वैभव तुम! अंदर आओ!" दरवाजा खोलते ही तृप्ति आश्चर्य से बोली।


"तुने वैभव को मना कर के अच्छा नहीं किया दिव्या।" तृप्ति ने अपनी रूम मेट सहेली दिव्या से कहा।


वह और दिव्या दोनों इस फ्लैट में एक साथ रहती है।


"कहीं ऐसा तो नहीं इसकी वज़ह आप है?" वैभव ने मज़ाक किया।


"काश, मैं होती। लेकिन अनफाॅर्चूलिटी मुझे और दिव्या को लड़कीयों में कोई इन्ट्रैस नहीं है।" तृप्ति बोली।


"काॅफी तैयार है।" हाथ में काॅफी ट्रे लेकर आई दिव्या बोली।


"वैभव! आपके लिए ऑफर?" तृप्ति बोली। उसने कप को होठों से लगाया।


"क्या?" वैभव ने काॅफी का पहला घूंट लिया। 


"मैं तैयार हूं, अगर आप रेडी है तो हम दोनों शादी कर सकते है!" तृप्ति बोली।


"ये ऑफर है?" वैभव ने कप रखते हुये कहा।


दिव्या हंसने लगी।


"क्यों? क्या मैं किसी भी तरह दिव्या से कम हूं?" तृप्ति ने आगे कहा।


"ये कोई समझोता नहीं है जो कम या ज्यादा एक्सेप्ट करना पड़े।" वैभव ने समझाया।


"तो तुम कहना चाहते हो कि तुम दिव्या से बेहद प्यार करते हो?" तृप्ति ने पहले दिव्या को देखा और फिर वैभव को।


दिव्या और वैभव की नज़रों की यह टक्कर बहुत कुछ कह गयी।


वैभव उठकर खड़ा हो गया था। दिव्या भी सकपका गयी।


"रूको वैभव! वन मोर थिंक।" तृप्ति बोली। 


"मुझसे शादी करने के बाद तुम्हें पूरी फ्रीडम मिलेगी। कितने भी अफेयर करों मुझे कोई प्राॅबल्म नहीं होगी! लेकिन ये छूट तुम्हें मुझे भी देनी होगी!" तृप्ति ने आगे कहा।


"बस भी कर तृप्ति! इन्हें घर भी जाना है!" दिव्या ने बीच में टोका।


"ओके! सी यू!" वैभव ने बाहर जाने के लिए कदम बढ़ा दिए।


"सोच लो वैभव! शादी के पांच सालों तक फुल इंन्जायमेंट और उसके बाद कहोगे तो हर साल एक बच्चा तुम्हारे हाथ में रख दूंगी।" तृप्ति का बोलना जारी था।


"कब तक?" दिव्या ने फिर बीच में रोका। वह दिवार पर टंगी खड़ी देख रही थी।


"जब तक वैभव थक नहीं जाता दिव्या!" तृप्ति ने कहा। वह स्वयं मुस्कुरा दी।


वैभव भी मुस्कुराते हुये लोट गया।


दिव्या के चेहरे को पढ़ चूकी तृप्ति बोली, "इससे अच्छा लड़का तुझे कोई ओर नहीं मिल सकता दिव्या।" 


"यार वो बहुत शरीफ है और आई थिंग उसे मुझसे बेहतर लड़की मिल जायेगी! जैसे की तू!" दिव्या बोली।


"वेरी फनी! सच में यार! अगर वैभव हां कर दे तो मैं एक टांग पर राजी हूं उससे शादी करने के लिए!" उत्साहित तृप्ति बोली।


उस रात दिव्या के विचारों में सिर्फ वैभव था जिसे इंकार कर चूकी दिव्या काल्पनिक भविष्य में वैभव को अपना जीवन साथी मानकर गृहस्थ जीवन के आनन्दित पलों को जी रही थी।


ऑफिस में आज पहले की तरह चहल-पहल थी। कटस्टमर्स लाइन में खड़े थे। लोन सेक्शन डिपार्टमेंट में आज सन्नाटा पसरा था। वहां लोग अपने होम लोन्स के सेक्शन का इंतजार करते हुये थक चूके थे। दिव्या को उन्हें टेकल करने भेजा गया। उसका मूड सुबह से ही ऑफ था। क्योंकि वैभव ऑफिस नहीं आया था। सेक्शन डिपार्टमेन्ट वह हैंडल करता था। बैंक के चीफ मेनेजर ने वैभव को अहमदाबाद भेज दिया था जहां एक बहुत बड़े प्रोजेक्ट को 'वाह बैंक' फाइनेंस करने जा रहा था। वैभव के कनफर्मेशन देते ही यह प्रोजैक्ट शुरू किया जा सकता था। वैभव के साथ इन्जीनियर और लीगल वकिल और टेक्नीशियन की टीम भी अहमदाबाद गयी थी। वहां सप्ताह भर का समय लग सकता था। वैभव को ऑफिस में न पाकर दिव्या चिड़चिड़ी हो गयी थी। आज उसने किसी से भी ढंग से बात नहीं की। तृप्ति इसके पीछे का कारण जानती थी। उसने दिव्या को समझा-बुझाकर मना लिया।


वक्त  की रफ्तार इतनी तेज थी कि सभी ने वैभव को भुला दिया था। आज ऑफिस में अचानक वैभव को देखकर दिव्या के साथ-साथ समूचा स्टाॅफ चौंक गया। वह अपने पैरों पर खड़ा था जबकि उस रात के सड़क हादसे में वैभव की एक टांग के साथ उसकी नौकरी भी चली गयी थी। 


आज वैभव की न केवल नौकरी वापिस मिली थी बल्कि कृत्रिम पैर ने उसे फिर से पहले जैसा चलने-फिरने और दौड़ने लायक बना दिया था। लेकिन ये सब हुआ कैसे? ये प्रश्न सभी के दिमाग में भारी उथल-पुथल मचा रहा था।


आखिरकार सभी की नज़रें दिव्या पर आकर जम गयी। मगर दिव्या स्वयं सभी से नज़रे चुराती नज़र आई। कुछ लोग तृप्ति को खोज रहे थे मगर वह तो सपोर्टिंग लीड रोल में थी इसलिए उस पर किसी को शक़ तक नहीं हुआ। 


इसका खुलासा अब वैभव ही कर सकता था। वहां उपस्थित चेहरों की व्याकुलता वैभव से सही न गयी। वह बोला, " मुझे मेरे पैर और नौकरी वापिस दिलाने वाली कोई ओर नहीं तृप्ति है।" 


यह रहस्योद्घाटन चौंकाने वाला था। यकायक वहां तृप्ति आ पहूंची।


"तु! लेकिन वैभव के एक्सीडेंट में पैर गंवाने पर तु ही सबसे पहले पीछे हटी थी और तुने ही मुझे भी वैभव को भूल जाने के लिए मना लिया था।" दिव्या गुस्से में थी।


"मैंने कहाँ और तुने मान लिया! इसका मतलब वैभव के प्रति तेरा प्यार सिर्फ दिखावा था!" तृप्ति ने दलील दी।


दिव्या चुप हो गयी। 


"मैं वैभव से तब से प्यार करती हूं जब तु यहाँ आई भी नहीं थी। लेकिन जब मुझे पता चला की वैभव तुझे पसंद करता है तब मैं पीछे हट गयी।" तृप्ति बोली।


ऑफिस के एम्पलाई तृप्ति को ध्यान से सुन रहे थे।


"वैभव को मैं एक पल नहीं भूली। अहमदाबाद में हुये एक्सीडेंट के वक्त मैं उसके साथ थी। तब ही वैभव को भी प्यार का अहसास हुआ।" तृप्ति ने कहा।


"तृप्ति ने ही मेरा खोया हुआ आत्मविश्वास मुझे फिर से लौटाया जिसके बल बूते मैं अपने पैरों पर फिर से चल सका। और इतना ही नहीं, मैंने कोर्ट में जाकर अपनी गयी हुई नौकरी के लिए केस दर्ज कराया।" वैभव ने बताया।


"कोर्ट ने वैभव को उसकी नौकरी वापिस लौटाने के ऑर्डर कर दिए और ये सब एक अकेली मैंने नहीं किया। इसमें वैभव का स्ट्रांग वील पाॅवर,  कड़ी मेहनत और अपने लक्ष्य को पाने की अचूक लगन थी।" तृप्ति बोली।


तालियों का स्वर गूंज उठा। दिव्या भी खुद को तालियाँ बजाने से रोक नहीं पाई। चीफ मेनेजर ने स्वयं वहां आकर वैभव को उसकी असिस्टेंट मैनेजर की कुर्सी सौंपी। मिठाइयां बंटने लगी। वैभव और तृप्ति ने उसी दिन रिंग सेरेमनी कर अपने रिश्तें को ओर भी अधिक मजबूत कर लिया।



लेखक:-

जितेन्द्र शिवहरे इंदौर

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7746842533

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