True Love


True Love     (कहानी)
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✍️जितेन्द्र शिवहरे
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         अलका के बेबाक अंदाज का पता तो तब ही चल गया था जब उसने अठारह की होती ही अपने से कई गुना अमीर बजाज घराने के युवराज रूद्र को शादी का प्रपोजल पूरे काॅलेज के सामने दे दिया था। उसका मानना था कि जिस काम को करने से आपका दिल खुश हो उसे जरूर करना चाहिये। मगर रूद्र इतनी जल्दी कहाँ मानने वाला था। उसे तो अलका भी बाकी लड़कीयों की तरह ही लगी थी। जिसे जल्द से जल्द भोग कर वह अन्य दूसरी लड़कीयों की तरफ बढ़ना चाहता था। लेकिन अलका को जब रूद्र के इरादों का पता चला तो वह गुस्से से आग बबूला हो उठी। उस दिन रुद्र की बहुत पिटाई हुई। जवाबी हमले रूद्र ने भी किये मगर अलका का कालीका अवतार रूद्र पर भारी था। अलका ने उसे तब तक लात-घूसों से पीटा जब तक की वहां उपस्थित भीड़ ने अलका को रोक नहीं लिया।

इस कांड के बाद यकायक अलका तो बहुत प्रसिद्ध हो गयी लेकिन रूद्र की बदनामी अखबारों की मुख्य सुर्खियां बनी। यह देखकर रूद्र ने अपना नाम काॅलेज से कटवा लिया।

रूद्र को दुखी देखकर अलका का मन भी द्रवित था। वह उससे मिलना चाहती थी मगर रूद्र के घरवालों ने उसे रूद्र से मिलने नहीं दिया। 

इधर अपनी मां को बचपन में गंवा चूकी अलका के पिता दशरथ मांझी पर 'स्वीट होम' ट्रस्ट में गबन और धोखाधड़ी का केस चल पड़ा। अलका को पढ़ाई बीच में रोककर पिता के पास जाना पड़ा। उसने सभी आवश्यक तथ्यों का गहराई से अध्ययन शुरू कर दिया।जांच-पड़ताल में उसे पता चला कि ट्रस्ट की आड़ में कुछ लालची लोग स्वीट होम ट्रस्ट का नाजायज़ फायदा उठा रहे थे। पब्लिक डोनेशन और गवर्मेंट से प्राप्त फंड का उपयोग ये लोग स्वयं के उद्धार हेतु करने लगे थे। इस बेजा फर्जीवाड़े का विरोध दशरथ मांझी को महंगा पड़ा। परिणाम स्वरूप उन लोगों ने स्व घोटालों का ठीकरा दशरथ मांझी पर फोड़ दिया। झूठे गबन और धोखाधड़ी के आरोप में उन्हें जेल भेज दिया गया। 

अपने पिता को बचाने के लिए अलका बदमाशों से भिड़ गयी। बमुश्किल उसका कोमार्य बच सका। अलका ने अपनी जान पर खेलकर उन बदमाशों पर स्टिंग ऑपरेशन किया। गुनाहागारों का पर्दाफाश हुआ और अलका ने अपने पिता को जेल की सलाखों से बा-ईज्जद बरी कराने में सफलता हासिल कर ली। 

रूद्र अब भी अलका को भुला नहीं सका था। कभी अलका को बर्दाद करने की सौगंध खा चूका रुद्र आज अलका का दीवाना हो चूका था। अपने पिता के मान- सम्मान और ट्रस्ट के लिए बड़े और नामी लोगों से अकेली लड़ने वाली अलका ने रूद्र के दिल में अपना स्थाई घर बना लिया। रूद्र ने अलका को अपनाने के लिए हाथ बढ़ाया लेकिन अलका अब सोशल वर्क में इतने आगे निकल चूकी थी, जहां उसके स्वयं के लिए कहीं कुछ नहीं था।

पिता दशरथ मांझी के स्वर्ग सिधारते ही अलका एक दम से अकेली हो गयी। पहली बार उसे किसी अपने के सहारे की जरूरत महसूस  हुई। उसने रूद्र का बहुत इंतजार किया मगर बजाज घराने द्वारा निर्मित परिस्थितियों ने रूद्र को अलका तक पहूंचने ही नहीं दिया।

बेबस और मासूम बच्चों के बीच अलका ने जैसे-तैसे खुद को संभाला। एक बार फिर से उसे अपनी जिन्दगी का उद्देश्य मिल चूका था। ट्रस्ट का रख-रखाव पूरी तरह से उसके हाथों में था। जिसमें धीरे-धीरे उसे आनन्द आने लगा। प्यार और शादी के लिए अलका के जीवन में अब कोई जगह नहीं थी। मगर रूद्र की तस्वीर अब भी उसके सीने में लाॅकेट के रुप हमेशा चिपकी रहती थी।

स्वीट होम की पढ़ी लिखी तान्या अब टीचर बन चूकी थी। उसके सामने अभी पूरा जीवन पड़ा था। मगर किडनीयों ने उसका साथ जल्दी ही छोड़ दिया। डायलिसिस पर जिन्दा तान्या को नया जीवन देने का मन बना चूकी अलका के फैसले पर रूद्र को आपत्ति थी। अलका अपनी एक किडनी तान्या को देना चाहती थी ताकि तान्या का भविष्य संवर सके। रूद्र ने बहुत समझाया लेकिन अलका नहीं मानी।

डाॅक्टर्स की टीम ने निर्धारित तिथि पर किडनी ट्रांसप्लांट कर तान्या को नया जीवन दिया मगर अलका की रिकवरी में बहुत वक्त लग गया। अलका के कहने पर रूद्र ने ट्रस्ट को संभाला। उसका सारा वक्त अलका और ट्रस्ट के रख-रखाव पर व्यय हो रहा था। आश्रम के बच्चें और बुजुर्गं पहले-पहल रूद्र को पसंद नहीं करते थे। उन्हें हमेशा लगता था कि कहीं अलका शादी कर रूद्र के पास चली गयी तो उन लोगों का क्या होगा? उनका खयाल कौन रखेगा? लेकिन रूद्र को जानने-पहचाने के बाद उनकी चिंता जाती रही। अलका और रूद्र दोनों एक सरीखें के थे। ये दोनों आश्रम और आश्रम के लोगों को छोड़कर कहीं नहीं जायेंगे। इस बात की तसल्ली उनके चेहरों पर साफ झलकने लगी थी।

रूद्र ने विधवा महिलाओं में आत्मविश्वास जगाने के लिए उन्हें छोटे-मोटे कार्य सौंपे। इनके बदले कुछ निश्चित रकम भी दी। महिलाओं के हर तरह पुश्तैनी और परम्परागत हुनर को फिर से तराशने में रूद्र ने महती भूमिका निभाई। आश्रम की महिलाओं द्वारा निर्मित वस्तुओं को बड़े शहरों में विक्रय किया जाने लगा। बागवानी की उपज को अच्छा प्रतिसाद मिल रहा था। उत्तम किस्म के मसालों के विक्रय से आश्रम को अच्छी आमदनी होने लगी। धीरे-धीरे महिलायों ने आश्रम की व्यवस्था अपने हाथ में ले ली। समस्त तरह के संचालन आश्रम में हुये चुनाव से चयनित महिलाओं की टीम ने संभाल लिये।

आश्रम के द्वार पर रूद्र और अलका को विदाई दे रही बहूत- सी आँखें नम थी। रूद्र को पाकर अलका खुश थी, मगर उसे यहाँ तक आकर भी रूकना मंजूर नहीं था। एक दूसरा शहर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था जहां स्वीट होम जैसी सुविधा शुरू करने की नितांत आवश्यकता थी। अलका का मनोबल सातवें आसमान पर था क्योंकि हर हाल में रूद्र उसके साथ खड़ा था। रूद्र ने उससे वादा किया था कि वे दोनों कभी शादी नहीं करेंगे जिससे इस समाजसेवा में उनका निजि स्वार्थ कभी आड़े नहीं आयेगा। दोनों एक-दूसरे का हाथ थामे धीरे-धीरे कदमों से चल रहे थे। आश्रमवासियों को 'टाटा' करते हुये दोनों आश्रम के गेट से बाहर निकलकर आंखों से ओझल हो गये।


लेखक-
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जितेन्द्र शिवहरे इंदौर 
7746842533
8770870151

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