ओहह! माय डैड (पर्दे के पीछे) - कहानी
ओहह! माय डैड (पर्दे के पीछे) - कहानी
"आप कैसे पिता है श्रीमान! अपने बेटे के विषय में ऐसी ओछी सोच और इतनी कड़वी बातें? छीं! छीं! छीं!" मिश्रा जी नाक मुंह सिकुड़ते हुये बोले।
"मैं आपकी बेटी की भलाई की बात कर रहा हूं मिश्रा जी!" सच्चिदानन्द दिवान हमेशा की तरह निर्भीक थे।
यह काजल के लिए एक बेहतरीन रिश्ता था। कहीं टूट न जाएं इस डर से सावित्री बीच बचाव में कूद पड़ी-
"लेकिन आप अपने बेटे स्वयम् को आवारा, निर्लज्ज और नाकारा सिध्द करने पर क्यों तुले है दिवान साहब? आप जैसे प्रसिध्द व्यक्ति को यह कतई शौभा नहीं देता!"
"भाभी जी! आप जिसे गुड़ समझ कर खाने की कोशिश कर रही है असल में वह गोबर है।" सच्चिदानन्द दीवान अपनी बात पर अडिग थे।
कोई अपने सगे बेटे की इस कदर बुराई क्यों करेगा? सगी बेटी है। आंखों देखे मक्खी निगले भी तो भला कैसे! परन्तु स्वयम् की मां के विचार एक दम अलग थे। हर मां की तरह स्वयम् उनका राजकुमार था। और उसमें ऐसी कोई कमियाँ नहीं थी जो उसके पिता ने गिनाई थी।
इन सबके बावजूद काजल का अगाध झुकाव स्वयम् के प्रति सबने नोट किया था। स्वयम् तो बूरी तरह काजल पर लट्टू था। वह जल्द से जल्द काजल को हासिल करना चाहता था। और काजल भी सब कुछ जानते हुये स्वयम् को स्वीकारने पर राजी हो गयी।
इसके पिछे वर्षों से दबी उसकी एक्ट्रैस बनने की ख़्वाहिश भी हो सकती थी। क्योंकि स्वयम् के पिता सच्चिदानन्द दिवान बाॅलीवुड के जाने-माने फिल्म निर्देशक थे। ये वही निर्देशक थे जिन्होंने किसी समय ऑडिशन में आई काजल को बूरी तरह फटकार लगाते हुये बेरंग लौटा दिया था। उन्होंने काजल को और अधिक मेहनत करने और अपनी ऐक्टिंग स्कील डेव्हलप्ड करने के लिए उन्हीं की ट्रेनिंग को स्कूल ज्वाइन करने की सलाह दी थी। लेकिन काजल के पास इतने पैसे नहीं थे की वह उस महंगे ट्रेनिंग स्कूल में अभिनय के गुर सीखें। यहां-वहां भटकते हुये काजल छोटी-मोटी एड फिल्म कर गुजारा करने लगी। एक फिल्मी पार्टी के दौरान स्वयं की नज़र काजल पर पड़ी। बस फिर क्या था! स्वयं ने काजल से दोस्ती की और आतदन काजल को झूठे प्यार का प्रस्ताव दे डाला।
काजल के लिए यह एक अच्छा अवसर था मगर दो धारी तलवार भी। उसने बहुत सोचा। अंततः अपने फिल्मी कॅरियर को आगे बढ़ाने के लिए काजल ने आत्मसम्मान का त्याग करना ही उचित समझा।
सच्चिदानन्द दिवान भांप चूके थे कि काजल किसी तरह अपना करियर बनाना चाहती है और इसके लिए वह स्वयम् के कदमों में बिछने के लिए भी तैयार है। जबकी आज नहीं तो कल उनका बेटा स्वयम् काजल का उपभोग करके उसे बीच रास्ते पर छोड़ देगा।
काजल को समझाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने स्वयम् को भी डांटा। हर बार की तरह इस बार भी पिता-पुत्र में तीखी बहस हुई। लेकिन दोनों खुद को सही सिद्ध करने पर अड़े रहे और बिना कोई निर्णय के यह वाक युद्ध आगे बढ़ गया।
स्वयम् को तब तगड़ा झटका लगा जब उसके पिता ने आने वाली बहु प्रतिक्षित फिल्म में उसे लांच करने से मना कर दिया। यह स्वयम् का ड्रीम प्रोजेक्ट था और इसके लिए उसने बहुत मेहनत की थी। काजल फिल्म में लीड रोल कर रही थी। हीरो के लिए विनित कुमार को साइन कर लिया गया। स्वयम् ने अपना आपा खो दिया।घर आकर वह अपने पिता पर खूब बरसा।
सच्चिदानंद दिवान इस बार एकदम शांत थे और आश्वत भी। उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। फिर वही हुआ जिसका सभी को अंदाजा था। स्वयम् ने घर छोड़ दिया। खुद को सिध्द करने के लिए उसने पिता के नाम का सहारा नहीं लेने का बर्षों पुराना नुस्खा उसने आजमाया।
कुछ ही दिनों में स्वयम् ने वह सब देखा जो अब तक कभी नहीं देखा था। जितना मौसम नहीं बदलता उससे ज्यादा लोग बदल रहे थे। जेब में पैसे खत्म होने के बाद स्वयम् के दोस्त भी स्वयम् से कतराने लगे थे। उसके लिए खाने-पीने और ठहरने तक की मुसीबत हो गयी थी। कुछ ही दिनों में वह समझ गया की इंडस्ट्री में उस अकेले की कोई वेल्यू नहीं है। लेकिन इस बार उसने हार नहीं मानी। वह उठा और छोटा-मोटा काम शुरू किया। स्वयम् किसी तरह अपना गुजारा चलाने की कोशिश करने लगा। इसके साथ ही वह अभिनय के क्षेत्र में भी हाथ पैर मार रहा था।
काजल ने स्वयम् का साथ नहीं छोड़ा। स्वयम् की दुकारना के बाद भी वह उससे मिलती रही। उसने स्वयम् की आर्थिक मदद भी की। यह स्वयम् के संघर्ष के दिन थे और स्वयम् काजल को चाहकर भी उपेक्षित नहीं कर पा रहा था।
एक के बाद एक ऑडिसन से स्वयम् को निकाला जाने लगा। जबकी स्वयंम् कहीं- कहीं तो एकदम परफेक्ट था। इसके पीछे उसके पिता सच्चिदानन्द दिवान का हाथ है, वह यह जान चूका था। लेकिन किसको पता था की यह षडयंत्र स्वयम् के लिए टाॅनिक का काम करेगा? स्वयम् के अभिनय में दिन-ब-दिन निखार आ रहा था। उसके हुनर को अब अनदेखा करना किसी निर्माता-निर्देशक के लिए आसान नहीं था।
यहां तक की कुछ निर्माता तो सच्चिदानंदन के विरोध में खड़े हो गये। उन्होंने गोपनीय तरीके से एक मेगा बजट फिल्म में स्वयम् को लांच करने की पूरी तैयारी कर ली।
स्वयम् खुश था। वह काजल को यह सब बताने निकला ही था की उसने ऐसा कुछ देखा, जिसकी उसने कभी कल्पना नहीं की थी। स्वयम् के अतीत के कुछ ऐसे पन्ने सोशल मीडीया पर चटखारे लेकर पढ़े जा रहे थे जो उसकी छवि धूमिल करने के लिए पर्याप्त थे। एक अय्याश और बिगड़ैल नौवजवान एक्टर की सभी काली करतूतों के किस्से पहले इंटरनेट पर और फिर विषय वार प्रमाणित अखबारों और न्यूज चैनल्स पर प्रसारित होने लगे।
इसके परिणाम स्वयम् के लिए अच्छे नहीं थे। जो गलतियाँ उसने अतीत में की थी उस पर सिवाए पछतावे के वह कुछ कर भी नहीं सकता था। जिन लडकियों ने स्वयम् पर यौन प्रताड़ना का आरोप लगाकर अदालत में केस दायर किया था उन्हीं की शिकायत पर स्वयंम् को जेल जाना पड़ा। उसे मेगा बजट फिल्म से भी निकाल दिया गया। स्वयम् फिर एक बार खाली हाथ था। अब फिर से लड़ने-भिड़ने की ऊर्जा वह कहाँ से लाए? इसी उधेड़बुन में उसकी आँखो के सामने काजल आती हुई दिखाई दी।
इतना सब होने के बाद भी काजल स्वयम् से जेल में मिलने आई। उसने स्वयम् की जमानत के लिए जी-जान लड़ा दी। स्वयम् से नजदीकी के कारण उसे भी बदनामी झेलनी पड़ी। लेकिन प्रेम के आगे वह भी विवश थी।
एक टीवी रियलीटी शो में स्वयम् की वाइल्ड कार्ड एन्ट्री ने सभी को चौंका दिया। स्वयम् के निजी जीवन को चटखारे लेकर पढ़ा, सुना और देखा जा रहा था। बदनाम होकर भी स्वयम् का नाम प्रसिद्धी के उच्च शिखर पर था। युवाओं में स्वयम् ट्रेडिंग में आ गया। उसकी चाल, ढाल और हेयर स्टाइल, सबकुछ काॅपी किया जा रहा था। देखते ही देखते वह शो का खिताब भी जीत गया। एक करोड़ की राशी जीतने के बाद भी स्वयम् को आश्चर्य नहीं हुआ। क्योंकी ये तो महज एक शुरूआत थी। अब उसके पास फिल्मों की एक लंबी लाइन थी। स्वयम् अपनी शर्तों पर फिल्म साइन करता। उसकी पहली शर्त थी कि संबंधित निर्माता की अगली फिल्म में काजल लीड हिरोइन होगी।
काजल और स्वयम् की जोड़ी हिट थी। क्योंकी काजल ने एक समय स्वयम् से वादा किया था की अगर वह फिल्म में काम करेगी तो सिर्फ स्वयम् के साथ, वर्ना नहीं।
सच्चिदानन्द दिवान अपने बेटे को बेस्ट एक्टर का अवार्ड देने आमंत्रित थे। स्वयम् लौटना चाहता था मगर काजल के आग्रह पर वह स्टेज पर चढ़ गया। पिता-पुत्र के मिलन को लाखों आँखे देख रही थी। स्वयम् ने पिता के पैर छुएं तो सच्चिदानंदन ने स्वयम् को गले से लगा लिया।
जिस सच्चिदानन्द दिवान को दुनियां निर्दयी पिता और खड़ूस निर्देशक के रूप में जानती थी आज वह एक आम पिता की भांति अपने बेटे की कामयाबी पर खुशी के आंसू बहा रहा था। सच्चिदानन्द दीवान का यह वात्सलय से भरा रूप स्वयम् के लिए भी आश्चर्यजनक किन्तु सत्य था। उसे पहली बार अपने पिता के हृदय से लगकर गर्व हुआ। स्वयम् भी अपने आँसू रोक न सका।
वह जान चूका था कि उसके पिता ने मात्र फिल्में ही नहीं बल्कि पर्दे के पीछे रहकर उसके फिल्मी कॅरियर को भी निर्देशित किया है।
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जितेन्द्र शिवहरे इंदौर
मो.7746842533
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