हैप्पी दिवाली-कहानी
*हैप्पी दिवाली- कहानी*
*✍️जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर*
*दीपावली* के बीच घर छोड़कर बाहर गांव जाना किसी को ठीक नहीं लग रहा था। लेकिन बात रिद्धिमा के रिश्तें की थी सो सभी तैयारी करने लगे।
जब से आर्यन का रिश्ता रिध्दिमा के लिए आया था, वह खुश है। रिध्दिमा के चेहरे की लालिमा निखर आई थी। इस बात को घर में सभी ने गौर किया।
चार घंटे का सफर तय कर आनन्दपुर गांव पहूंचे। वहां जो हुआ उसे देखकर सभी के होश उड़ गये। आर्यन को रिध्दिमा के सामने ही गांव की एक ब्राह्मण कन्या को सौंप दिया गया।
"इस तरह हमें अपमानित करने का क्या औचित्य है?" रिद्धिमा के पिता बिफर उठे।
उनकी श्रीमती भी कहाँ चुप रहती। उसने भी खूब खरी खोटी सुनाई। रिध्दिमा के दोनों भाई तो हाथापाई पर ऊतारू थे।
रिध्दिमा चूप थी। यह उसका आत्म नियंत्रण ही था जो अंदर के आंसू उसने बाहर नहीं आने दिए।
आर्यन के पिता ने हालिया दिवंगत हुए ब्राह्मण कन्या के पिता को वचन दिया, जिसे निभाने के लिए उन्होंने यह निर्णय लिया।
आर्यन के पास अपने पिता के वचन को स्वीकारने के अलावा अन्य मार्ग नहीं था। क्योंकि किशोरावस्था की एक लाईलाज बिमारी को जड़ से खत्म कर ब्राह्मण वैद्य ने आर्यन को दूसरा जीवन दिया था।
बिन मां की समृध्दि का अपने पिता के सिवाय कोई नहीं था। सो समृध्दि को अपनाकर आर्यन ने अपने प्रसिद्ध पुश्तैनी मंदिर की व्यवस्था अपने हाथों में ले ली।
तब ही एक अन्य युवक को सम्मुख देखकर पुनः आश्चर्यजनक स्थिति निर्मित हो गयी। आर्यन के बाद सुमेर सिंह ने युवराज को धर्म पुत्र स्वीकार किया था। उनके लिए युवराज और आर्यन दोनों समान थे।
डाँक्टरी पढ़ रहे युवराज के लिए सुमेर सिंह ने रिध्दिमा का हाथ मांग लिया। इतना ही नहीं आने वाली एकादशी पर दोनों जोड़ों का विवाह करने का संकल्प भी दोहरा दिया।
लंबी चली चर्चा के बीच रिध्दिमा ने युवराज के लिए स्वीकृति देकर अनंतो-अनंत दुविधा को खत्म कर दिया।
पटाखों के फटने की ध्वनि गूंज उठी। हंसी खुशी दोनों शादियां निर्विघ्न संपन्न हुई। विवाहित जोड़ों को शादी की बंधाई के साथ 'हैप्पी दिवाली' की शुभकामनाएं भी दी जा रही थी।
समाप्त
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✍️जितेन्द्र शिवहरे इंदौर
मो.7746842533
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