आफ्टर ब्रेकअप- कहानी

 आफ्टर ब्रेकअप- कहानी

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   ✍️जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर 

        एक अच्छी डेट से लौटकर भी रेणू खुश नहीं थी। आज पुलकित ने उसे कार गिफ्ट की थी। लेकिन ड्राइव के दौरान घटी उस घटना ने रेणु का मुड ऑफ कर दिया। बहुत कोशिशों के बाद भी वह उबर नहीं पाई।  उसकी चूप्पी में अधुरापन था। जिस बेहतर की तलाश में वह यहाँ तक चलकर आई थी, उसे वह अब तक नहीं मिला। अखिलेश, साहिल और अब पुलकित। थोड़ा और की चाहत में वह सभी को छोड़ती चली गयी। आज अखिलेश से हुई मुलाकात ने उसे चिंता में डाल दिया। कल वह कुछ नहीं थी मगर आज बहुत कुछ था उसके पास। नहीं था तो अखिलेश और उसका निश्चछल प्रेम। 

अखिलेश के चेहरे पर मुस्कान थी। अपने पार्टनर के साथ अखिलेश का मस्ती मज़ाक वह कैसे भूल सकती थी। तब क्या रेणु से ब्रेकअप के बाद वह खुश था?  रेणु उधेड़बुन में थी। जबकी इस ब्रेकअप की पहल स्वयं अखिलेश ने की थी। रेणु के लिए यह ऑफर था। उसने भी ज्यादा नहीं सोचा और अलग हो गयी।

यह भी हो सकता है कि अखिलेश कोई रोल प्ले कर रहा हो? वर्ना जान्हवी के साथ कोई इतना खुश कैसे रह सकता है? रेणु के दिमाग़ में हजारों सवाल थे जिनका जवाब उसे नहीं मिल रहा था। 

अखिलेश और रेणु की मुलाकात ही सभी सवालों के जवाब दे सकती थी। रेणु तैयार थी। मगर अखिलेश को कैसे मनाये? इस उलझन से ऊबकर उसने एक कठिन निर्णय लिया। रेणु अब बिल्कुल भी टाइम बर्बाद नहीं करना चाहती थी। अगली सुबह वह जिम पहूंच गयी, जहां अखिलेश भी था। अखिलेष की नज़र रेणु पर जा टिकी।

वह रेणु से बोला, "इतनी परेशान क्यों हो?"

रेणु बोली, "क्या तुम नहीं हो?" 

अखिलेष टालमटोल करने लगा। दोनों के हाथ में एनर्जी ड्रिंग्स थी। कदमताल करते हुये दोनों सड़क पर आ पहूंचे। 

"रेणु! मैंने एक फैसला किया है?"

"क्या?" रेणु ने पूंछा।

"मैं तुम्हारी शादी में जरूर आऊंगा।" अखिलेश बोला।

"क्यों?" रेणु ने पूंछा।

"दूल्हे के बिना शादी कैसे होगी?" अखिलेश ने कहा।

"इस मज़ाक की वजह!" रेणु बोली। 

"तुम्हे ये मज़ाक लगा!" अखिलेश ने पूंछा।

"और नहीं तो क्या? पुलकित और मेरी शादी वाली है ऐसे में तुम मेरे दूल्हे? कैसे?" रेणु ने समझाया।

"क्या पुलकित तुम्हारी मंजिल है?" अखिलेश ने पूंछा।

"हां! जैसे जान्हवी तूम्हारी मंजिल है वैसे पुलकित मेरी!" रेणु नज़रे चुराते हुये बोली।

"क्या जान्हवी को तुम जानती नहीं?" अखिलेश ने पूंछा।

इस प्रश्न का उत्तर मौन था। रेणु स्तब्ध खड़ी अखिलेश को देखती रही। वह मुस्कुराते हुये आगे बढ़ गया।

इतना तो तय था की कुछ बहुत बड़ा होने वाला है। जिसकी भनक रेणु को लग चूकी थी। हमेशा की तरह आज भी कई प्रश्न निरूत्तर रह गये। लेकिन अखिलेश से बात कर रेणु खुश थी। बिल्कुल पहले की तरह। जिन्हें वह प्रश्न समझ रही थी असल में वे संदेह के बादल थे जो अखिलेश ने अपनी मुस्कुराहट से हटा दिये थे।

रेणु बार-बार फोन उठाकर रख देती। अखिलेश ही उसकी मंजिल है वह ये स्वीकार कर चूकी थी। अब बस सबको बताना था। जहां उसने असीम आत्म आनन्द अनुभव किया था वह अखिलेश के इर्द -गिर्द ही था।

फोन पर पुलकित था।

"मैं अखिलेश की शादी में जा रही हूं!" रेणु बोली।

"रूको! मैं भी साथ चलता हूं?" अगली आवाज़ पुलकित की थी।

"नहीं! दूल्हा तो एक ही होगा!" रेणु बोली।

"कौन?" पुलकित ने पूंछा।

"अखिलेश!" रेणु के शब्द आत्मविश्वास से लबरेज़ थे।

"क्या मतबल?" पुलकित ने पूंछा।

"मतबल की मैं अपनी शादी में जा रही हूं, अखिलेश की दुल्हन बनकर!" रेणु ने फोन रख दिया।

कार की चाबी टेबल पर रखकर रेणु अपनी असली मंजिल पाने के लिए घर से निकल पड़ी।

समाप्त

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✍️जितेन्द्र शिवहरे इंदौर

7746842533



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