तुम, मैं और तुम (कहानी)
तुम, मैं और तुम (कहानी)
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✍️जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर
घर का नौकर रूचि का जीवन साथी बनेगा, किसी से सोचा नहीं था। यह रूचि के पिता का निर्णय था। सभी जगह इसकी घोर निंदा हुई। लोगों ने उन्हें एक क्रूर पिता तक कह डाला। किन्तु लोकमान्य के निर्णय को बदला नहीं जा सका। पहले ही दो बार रूचि को ललित से दूर रहने के लिए समझाया जा चूका था, किन्तु तीसरी बार पुनः दोनों की चोरी-छिपे मुलाकात स्वयं लोकमान्य ने अपनी आँखो से देखी थी। अबकी बार उन्होंने दोनों की शादी करके ही दम लिया। रूचि अपने प्रेम की जीत पर खुश थी। मायके से इस जीत के एवज में आशीर्वाद के अलावा उसे कुछ नहीं मिला। खाली हाथ ससूराल आई रूचि से प्रेम का पुजारी ललित छ: महिने में ही ऊब गया। उसका हृदय विशाल था। जिसमें उमड़ता अथाह प्रेम वह कुछ अन्य जगह पर बांटने लगा। रूचि को इसकी भनक जा लगी।
उसने आपा खो दिया। उस दिन ललित के प्राण जाते-जाते बचे। ललित और रूचि को ससुराल से देश निकाला दे दिया गया। ललित के लिए यह कड़वा अनुभव था। रूचि के आगे उसने हथियार डाल दिए।
इससे भी अधिक रूचि ने स्वयं को बहुत बड़ा दंड दिया। उसने तय किया वह आजीवन ललित के साथ ही रहेगी ताकी उसे अपनी गलती का अहसास जीवन पर्यंत होता रहे।
नैना के साथ दो बार विश्वास घात हुआ था। एक तो समय से पुर्व ही महामारी ने पति को छीन लिया, दूसरा ललित के छलावे में आकर वह अपना सबकुछ खो चूकी थी। स्व क्रोधित नैना आत्महत्या के लिए उत्प्रेरित होकर रेल की पटरी पर जा पहूंची। रूचि की नज़र नैना पर जम गयी। ललित के मोबाइल गैलेरी में एक बार नैना उसे दिखी थी। नैना को हाथों से खींचकर प्लेटफार्म पर लाने में रूचि को बहुत मश्शक्त करनी पड़ी।
नैना की आप बीती असहनीय थी। इस कहानी का विलेन ललित ही था। रूचि की नफ़रत ललित के प्रति बढ़ती ही गयी। पुलिस के पास जाने के बजाए वह नैना को घर ले आई। रूचि की योजना पर पहले पहल नैना नहीं मानी। बहुत मनाने पर वह मान गयी।
ललित के पैरों तले जम़ीन खिसक चूकी थी। पुलिस की धमकी से हार मानकर उसने नैना को दूसरी पत्नी स्वीकार कर लिया। रूचि की अवहेलना सह रहा ललित अब नैना के हाथों भी प्रताड़ित होने लगा। जेल की हवा खाने से कहीं अधिक बूरी परिस्थितियों से वह गुजर रहा था। दो खूंखार पत्नियों की जिम्मेदारी लेकर अपने पापों पर पश्चाताप करने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था।
समाप्त
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जितेन्द्र शिवहरे इंदौर
7746842533
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