सुचिता भाग गयी (व्यंग्य)
सुचिता भाग गयी (व्यंग्य)
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✍️जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर
आखिरकार विश्वनाथ जी की बेटी घर से भाग गयी। पूरे नगर में हल्ला हो गया। ढोंगी शुभ चिंतक जल-भून गये। बेटी के भाग जाने के अभिलाषियों ने छाती पीट ली। विश्वनाथ की विश्वसनीयता पर संदेह अवश्य था किन्तु उनका जुझारूपन भी विख्यात था। उनकी
गोपनीय योजना ने सफलता के झंडे गाड़ दिए। हर कोई उन्हें बेटी के भाग जाने की बंधाई देना चाहता था। सुबह से फोन घन घना रहे थे। मिलने वाले कतार में थे। अब विश्वनाथ जी समाज के विशिष्ट नागरीक बन चूके थे। निज निवास पर उत्सव सरीखा माहौल था। सभी जानना चाहते थे कि सुचिता के घर से भाग जाने के पीछे क्या कारण है? घनघोर असभ्यता के दौर में ऐसी सभ्य घटना की सफलता सुचिता ने कैसे प्राप्त की? इन्हीं टीप्स को वे अपनी लाडो पर अप्लाई करने के आकांक्षी थे।
विश्वनाथ जी ने बोलना शुरू किया।
"मैंने ज्यादा कुछ नहीं किया। बस, सबसे पहले अपनी बेटी को टीवी के सामने बैठा दिया। रिमोट कन्ट्रोल पर उसके एकाधिकार की घोषणा कर दी। प्रेम कहानियों पर बनी फिल्मे देखना उसके लिए अनिवार्य था। सिनेमा भी उसे खूब दिखाया।"
"उसकी संस्कारित सहेलियों से पीछा छुड़ाने में हमें बहुत मशक्कत करनी पड़ी।"
विश्वनाथ जी थोड़ा रूक कर बोले, "लेकिन इस सफलता के पीछे सबसे बड़ा योगदान मोबाइल फोन का है।"
(जेब से मोबाइल निकालकर प्रणाम करते है।)
"जबसे सुचिता को मोबाइल लाकर दिया उसके स्वभाव में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया। अब वह हमसे झूठ बोलने लगी थी। वह चूपके-चूपके मोबाइल पर किसी से बातें करती और देर तक चेंटिग भी।"
"पहले वह पढ़ाकू थी लेकिन मोबाइल हाथ में आ जाने के बाद उसने पढ़ाई तो जैसे एक दम छोड़ दी। ये हमारी सबसे बड़ी जीत थी। लेकिन दिल्ली अब भी बहुत दूर थी।"
"फिर आपने क्या किया?" पड़ोसी गुप्ता जी ने पूँछा।
"मैंने और मेरी धर्मपत्नी ने मिलकर सुचिता के लिए टाइम टेबल बनाया। उसे सुबह के दो घंटे और शाम के दो घंटे बालकनी और घर की छत पर बिताने की जरूरी सलाह दी ताकी हर आने-वालों के साथ वह खूब नैन-मट्टका कर सकें। सुचिता खुशी-खुशी मान गयी। और हां, हमने हर दूसरे- तीसरे दिन उसे बाज़ार अकेले भेजना भी शुरू कर दिया।"
"उसके सौन्दर्य पर हमने थोड़ा-बहुत खर्च किया। छोटे-छोटे रंग-बिरंगे कपड़े खरीदे और उसे मेकअप किट लाकर दी। यूं तो हमारी बेटी के दीवाने कम न थे परन्तु हम चाहते थे कि वह किसी आवारा, मतकमाऊ और गुंडे के साथ भागे।"
"लेकिन ऐसे लड़के आसानी से कहाँ मिलते है? उसके लिए हमें बहुत पापड़ बेलने पड़े। शहर के नुकक्ड़ और चौराहों की खाक छानी। शहर भर के आवारा लड़कों की सूची बनाई और कुछ को शार्ट लिस्ट किया। सुचिता को इनके सम्मुख कुछ समय बिताना आवश्यक था।"
"इसके अलावा दोस्तों के साथ बाहर सैर सपाटा, बर्थडे, डिस्को, काॅलेज टूर, पिकनिक, शादियों में नाचना-गाना इन सभी गतिविधियों में सम्मिलित होने से हमने सुचिता को कभी रोका-टोका नहीं।"
"सोशल मीडीया पर सुचिता की पाॅपूलेट्री देखकर गुंडे-बदमाश आपस में भिड़ गये। उन्हें सुचिता हर हाल में चाहिये थी। एक-दो के हाथ-पांव भी टूटे। तब कहीं जाकर सुचिता को अपने लिए बेस्ट लफंगा मिला, जिसके साथ वह बाग गयी।"
चाय पार्टी के साथ लोगों की आवा-चाही अब भी जारी थी। विश्वनाथ जी के भाग्य पर दाद देने वाले आते-जाते कहते जाते- विश्वनाथ जी के दिन बदलने में अब समय नहीं लगेगा। रूके काम शुरू होंगे। सारी उधारी लोट आयेगी। डराने वाले, अब डरेंगे। योजनाओं का लाभ सर्वप्रथम मिलेगा। देश-विदेश भी घूमना होगा। आखिर भगौड़े दामाद का रौब और खौफ़ कब काम आयेगा?
The End
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✍️जितेन्द्र शिवहरे,इंदौर
मो. 7746842533
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