आमंत्रण (कहानी)
आमंत्रण (कहानी)
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*शर्मा* जी को घर आता देख गुप्ता जी थोड़े सतर्क हो गये। आवभगत की औपचारिकता हो इससे पूर्व ही शर्मा जी बोले उठे, "बेटी की शादी की बहुत-बहुत बंधाई।"
मिसेस गुप्ता पीने का पानी ले आयी।
"पूरी काॅलोनी में इस शादी की चर्चा है। सुना है आपने बहुत तैयारियां की है?" शर्मा जी आगे बोले।
"अरे कहांsss? बेटी की शादी में जितना करना होता है उससे थोड़ा कम ही कर पाये है!" मिसेस गुप्ता सफाई देने लगी।
राशी की हाथों में चाय की ट्रे संज रही थी। आग्रह के बाद भी शर्मा जी ने चाय नहीं ली। किन्तु राशी के सिर पर हाथ रखकर ढेर सारा आशीर्वाद अवश्य दिया।
"मैं कर बद्ध आपसे क्षमा प्रार्थी हूं गुप्ता जी।" शर्मा जी बोले।
"अरे नहीं साहब! क्षमा तो हमें आपसे मांगनी चाहिए!" गुप्ता जी बोले।
मिसेस गुप्ता अब जाकर सहज हुई। आत्मग्लानी उनकी आंखों में साफ दिखाई देने लगी थी।
"आप हमारी भुल को क्षमा करें और परिवार सहित इस शादी का हिस्सा बनिए।" मिसेस गुप्ता बोली।
शर्मा जी मुस्कुरा रहे थे। वे बोले, "दरअसल मुझे धर्म पत्नी ने बताया की काॅलोनी में लगभग सभी को आमंत्रण है इस शादी का। और ये उसी का सुझाव था कि मैं आपसे आकर माफी माँगू।" शर्मा जी बोले।
राशि पीने का पानी ले आई। अब जाकर गुप्ता जी ने गला गीला किया।
"जाने- अनजाने मुझसे या मेरे परिवार के किसी सदस्य ने आपको कोई कष्ट पहूंचाया हो तो कृपया हमें क्षमा करें।" शर्मा जी की विनम्रता से सभी मंत्रमुग्ध थे।
हाथ जोड़े खड़े शर्मा जी को गुप्ता जी ने हृदय से लगा लिया।
परिवार के किसी एक सदस्य के व्यवहार से नाराज़गी की सज़ा पूरे परिवार को देना उचित नहीं। ये बात गुप्ता परिवार जान चूका था।
गुप्ता दंपति ने अपनी भूल सुधारी। वे दोनों तुरंत विवाह पत्रिका का आमंत्रण लेकर शर्मा जी के घर पहुंचे। शर्मा जी की बहू की तीखी बातों की परवाह अब किसी को नहीं थी।
समाप्त
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✍🏻जितेन्द्र शिवहरे इंदौर
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