नाsass! (कहानी) 'महिला युग'
*'नाssss!' (कहानी)*
✍🏻जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर
*इस* रिश्ते के लिए गरीमा की ना थी। अब ये शादी होना संभव नहीं था। यह खब़र लड़के वालों तक पहुंचाने में जरा भी देर नहीं की गयी। देखते ही देखते सबको पता चल गया। कुछ रिश्तेदारों का मानना था कि गरीमा के इंकार की वज़ह उसकी बड़ी बहन मोना थी। मगर गरीमा का कहना कुछ ओर ही था। उसे अभी शादी करना उचित नहीं लगा, बस इसलिए ना कह दी। मोना भी अभी शादी नहीं करना चाहती थी। उसे अभी ओर पढ़ाई करनी थी। जिस तरह मोना के इंकार को सम्मान मिला उतना ही गरीमा के इंकार को भी। लेकिन क्या ये सब इतना आसान था? मोना की मां आनन्दी बताती है कि उसने सबसे पहले 'ना' कब कहा! और कैसे उसे स्वीकार्यता मिली?
संतोष को आनन्दी और आनन्दी को संतोष भा गया। बालपन का प्रेम धीरे-धीरे आगे बढ़ता ही गया। पूरे गांव में इस बात की चर्चा थी। मगर आनन्दी के पिता इसके लिए तैयार न थे। लठ्ठदारों की फौज़ संतोष की अक्ल ठिकाने लगाने निकल पड़ी। आनन्दी को भनक लगी तो वह संतोष को बचाने के लिए दौड़ी। खुन-खराबा न हो इसलिए संतोष के घरवालों ने हार मान ली और संतोष ने भी हथियार डाल दिए। आनन्दी को बालों से खींचकर घर लाया गया और एक अधेड़ शराबी माणिक के पल्ले बाँधकर उसे गांव से देश निकाला दे दिया गया।
माणिक के अत्याचार सहती हुई आनन्दी ने शगुन को जन्म दिया। तंकहाली से भरे दुखी जीवन को देखकर आनन्दी ने निश्चय किया कि शगुन के बाद अब वह किसी बच्चें को जन्म नहीं देगी। उसकी कमर तोड़ मेहनत के बल पर घर चल रहा था। 'शगुन अब बड़ी हो गयी है' यह बात पड़ोसीयों के मुंह से आनन्दी के कानों तक भी पहूंची। शगुन की सुरक्षा आनन्दी की प्राथमिक जिम्मेदारी थी। वह शगुन को अपने सीने से चिपका कर रखती। फिर एक दिन वह हुआ जिसका आनन्दी को डर था। माणिक ने अपने एक अमीर दोस्त के साथ शगुन को ब्याहने की योजना बना डाली। ताराचन्द पचास साल के थे और उन्हें सोलह की शगुन से शादी करने में कोई ऐतराज न था। आनन्दी ने तब पहली बार ना कहा। उसकी ना में एक हुंकार थी। जिसे माणिक के विरूध्द विद्रोह भी कहे तो गलत नहीं होगा।
माणिक इतनी जल्दी हार मानने वाला नहीं था। उसने कोसों दूर एक दूसरे शहर ताराचन्द और शगुन की शादी करने का बन्दोबस्त कर दिया। आनन्दी को धोखा देकर उसने शगुन का अपहरण करवा दिया। शगुन के हाथ-पैर बांधकर उसे टेम्पो से दूसरे शहर ले जाया गया।
पुलिस के सामने माणिक ने भोला बनने की कोशिश की। मगर आनन्दी ने हार नहीं मानी। उसने माणिक के गले पर चाकू रखकर उससे सबकुछ उगलवा लिया। ताराचन्द को नाबालिक से शादी करने की कोशिश के अपराध में सज़ा हो गयी। माणिक के सपनों पर पानी फिर गया। उसकी आँखों में खून उतर आया था। पुलिस के हाथों से भागकर वह आनन्दी को मारने दौड़ा। शगुन बीच बचाव में आकर घायल हो गयी। आनन्दी के पास अब कोई रास्ता न था। माणिक लहू-लुहान जम़ीन पर गिर पड़ा। आनन्दी के हाथ खून से सने थे। मणिक की हत्या के अपराध में उसे को दस साल की सज़ा हुयी। शगुन भी उसके साथ जेल गयी।
जेल से बाहर आकर भी मां-बेटी की परेशानी कम नहीं हुई। यहां गिद्धों के झुण्ड हर समय उनके इर्द-गिर्द मंडराया करते। आनन्दी सावधान थी और जैसा भी बन पड़ता, बूरी नज़रों को शराफ़त का चश्मा पहनाना नहीं भूलती। बुराई का जवाब देने में वह अपनी सौ प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग करती। भली औरतों ने आनन्दी को फिर से शादी करने की सलाह दे डाली। शगुन के रहते भला वह शादी कैसे करती? मगर शगुन भी यही चाहती थी। उसने अपनी मां को बहुत समझाया।
अमन तलाकशुदा था। उसके भाई दीपक की भी शादी नहीं हो पा रही थी। इन दोनों के रिश्तें आनन्दी और शगुन के लिए आये। आखिरकार शगुन ने आनन्दी को मना लिया और दोनों मां-बेटी ससुराल में देवरानी-जेठानी बन गयी। आनन्दी ने अपना इतिहास खुलकर सबको बताया और उसने यह भी कहा की उसकी बेटी शगुन की मान मार्यदा के लिए वह एक खुन तो क्या, सौ खून करने से भी पीछे नहीं हटेगी।
आनन्दी की बेटी मोना और शगुन की गरीमा दोनों विरासत में मिली ना कहने की शक्ति को पाकर गर्वित थी। अब यह हथियार उनके सुनहरे भविष्य को गढ़ने में कितना उपयोगी सिद्ध होगा, यह तो भविष्य ही बतायेगा।
समाप्त
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जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर
मो.7746842533
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