अक्षर के पांच रूपये
*अक्षर के पांच रूपये (व्यंग्य)*
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✏️ *जितेन्द्र शिवहरे*
*निवास* के समीप ही रहने वाले भवन निर्माण मिस्त्री मित्र से घर में कुछ रिपेयरिंग का काम करवाया। बदले में उसने एक हजार रूपये मांग लिए। मैं सन्न रह गया। खुद को संभालते हुये कहा- "घंटे-दो घंटे काम के एक हजार!"
वह बोला- "आपसे कम ही मांगे है, वर्ना बाजार भाव तो डबल है!" कुछ कम करने का आग्रह उसने ठुकरा दिया। वह बोला- "रिपेयरिंग काम बहुत मुश्किल था। मेहनत के साथ बड़ी सावधानी ही किया, तब जाकर हुआ!" दु:खी मन से भुगतान तो कर दिया किन्तु बंदे की हठधर्मीता से सीख आवश्य ली।
उसके चले जाने पर श्रीमती जी ने बताया की इनकी पत्नी ने भी कोई दिन घरेलू कपड़ों को दुरूस्त करने के मेहनताने के फलस्वरूप पांच सौ रूपये छीन लिए थे। इतना ही नहीं उसी का प्लम्बर बेटा नल की टोंटी चेंज करने के छ: सौ रूपये ले गया था।
कुछ दिन के बाद वही मिस्त्री मित्र घर आया। उसके हाथों में किसी सरकारी योजना का फार्म था। वह चाहता था कि मैं उसे ठीक-ठाक भर दूं। मैंने कहा-"इसके बदले कितने रूपये दोगे? वह चौंका- "क्या मज़ाक करते हो माट्साब!"
मैंने कहा- "इसमें हंसने वाली क्या बात हुई?"
तब वह बोला- "फारम भरने के रूपये कब से लगे लगे?"
"जब से एक घंटे वाले काम के लिए हजार रूपये मजदूरी हो गयी!" मैंने जवाब दिया।
उसके चेहरे पर वही भाव उभरे जो कभी मेरे चेहरे पर उभर आये थे।
"आप कितने रूपये लेंगे माट्साब?" उसने पूंछा।
मैंने कहा- "देखो भाई! काम बड़ी सावधानी का है। इसे बड़े ही ध्यान और लग्न से करना होगा! थोड़ा भी गलत-सलत हो गया तो तुम्हें योजना का लाभ नहीं मिलेगा!"
मेरे उद्बबोधन के आगे वह नतमस्तक था। मैंने आगे कहा-"इसलिए एक अक्षर लिखने के पांच रूपये लुंगा। फार्म दस पन्नों का है और हर पेज़ पर अंदाजन बीस-पच्चीस शब्द भरें जाना है...हर शब्द में औसतन पांच अक्षर है। इसलिए एक पेज़ के एक सौ पच्चीस रूपये हो जायेंगे!"
वह हिसाब करने लगा। फिर बोला-"कुल कितने रूपये हो जायेंगे?"
"दस पेज़ों के कुल बारह सौ पचास रूपये!" मैंने उसे कैल्कुलेटर की स्क्रीन दिखाते हुये कहा।
जिस ऊर्जा के साथ वह फार्म भरवाने मेरे पास आया था, अब वह उसमें दिखती नहीं थी। निराश होकर वह 'घरवालों से पूंछकर आता हूं' कहकर चलता बना।
लेखक-
जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर
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