वचन (कहानी) ✍️जितेन्द्र शिवहरे

 *वचन  (कहानी)  ✍️जितेन्द्र शिवहरे*


      *तीन* दिन शहर में रुकने के बाद प्रदीप अपने गांव बेरंग ही लौटने वाला था। पल्लवी का सीआईडी छोड़कर कहीं ओर जाने का कोई विचार नहीं था और ये कठोर व्यवहार उसके जॉब का हिस्सा था। उसे अपने दादाजी के वचन का कभी पता नहीं चलता, अगर प्रदीप उसे नहीं बताता। 

           प्रदीप अपना बोरिया बिस्तर समेट चुका था।

वह बस आखिरी बार पल्लवी को अलविदा कहने आया था। अपने दादाजी के वचन को पूरा करने की उसकी ये कोशिश नाकामयाब हुई। इसके बावजूद उसका यह प्रयास प्रशंसा के योग्य था। पल्लवी के फ्रेंड्स प्रदीप से मिलकर खुश थे। उन्हें प्रदीप में कोई खोट दिखाई नहीं दी। मगर पल्लवी के निर्णय को प्रदीप के साथ-साथ सभी ने स्वीकार कर लिया।

               "वह अभी शादी नहीं करना चाहती। पल्लवी को भूलना ही बेहतर है।" जूही बोली। वह एकांत में प्रदीप को पल्लवी का इरादा दोहरा रही थी।


प्रदीप के चेहरे पर हल्की मुस्कान देखकर कहना मुश्किल था। क्या वह हताश था या फिर खुश? सीआईडी से लोटते हुये उसके कदमों की आहट पल्लवी के कानों में अब तक गूंज रही थी। क्या प्रदीप को मना कर के उसने सही किया? क्या पल्लवी, प्रदीप से इसलिए शादी नहीं कर सकती क्योंकि उन दोनों के दादाजी यहीं चाहते थे। या फिर उसे डर था की प्रदीप उसे यह जॉब छोड़ने को कहेगा?

          प्रदीप उसके सपनों का राजकुमार है या नहीं, ये पल्लवी ने कभी किसी को नहीं बताया। हां, मगर प्रदीप ने यहां आकर उसके जीवन में खलबली जरूर मचा दी थी। 

अगले दिन सुबह पल्लवी ऑफिस जाने की तैयारी करने लगी। पिता के चेहरे पर अप्रसन्नता देखकर उसे पहली बार अच्छा नहीं लगा। वह अपने पिता से बोली - "पापा! उसे कोई अच्छी लड़की मिल जायेगी?"

आदित्य रॉय बोले- "लड़का तो तुम्हें भी मिल ही जायेगा बेटी! मगर प्रदीप नहीं!"


मां की सांत्वना जरूर पल्लवी के साथ थी।


अपनी बेटी का समर्थन करते हुए निरूपा बोली- "प्रदीप! प्रदीप! प्रदीप! ऐसा क्या है उस लड़के में? क्या मर चुके लोगों के वचन की खातिर अपनी बेटी को एक देहाती से ब्याह दोगे?"


पल्लवी ने अपनी मां को इतने गुस्से में पहले कभी नहीं देखा था। आदित्य रॉय भी समझदारी दिखाते हुए मौन हो गए। घर में भी ऑफिस की तरह उधल-पुथल की स्थिति बन चुकी थी। प्रदीप तो अपने घर पहुंच चुका था। मगर वह अब भी पल्लवी के इर्द गिर्द ही था।


पल्लवी की जान-पहचान की हर जगह पर प्रदीप का कब्ज़ा था। वह चाहती थी की सबकुछ पहले जैसा हो जाए ताकि किसी भी तरह ये संताप खत्म हो। मगर कैसे?


वह प्रदीप से नाराज़ थी। क्यों आया वह उसके जीवन में? वह उसे भला बुरा कहना चाहती थी। हिम्मत जुटाकर वह आगे बड़ी।


पल्लवी ने प्रदीप को फोन मिला दिया। वह प्रदीप से बोली- "एक लड़की के इंकार को इतना बड़ा इशू क्यों बनाया जा रहा है? तुम्हें ये सब ठीक करना ही होगा!"


प्रदीप शांत मन से बोला- "सब ठीक ही है। आपके पिताजी से मेरी बात हो चुकी है। डोंट वरी!"


पल्लवी को भरोसा करना मुश्किल हो रहा था। मगर आदित्य रॉय अब सामान्य थे। आज फिर से उन्होंने घर में हमेशा की तरह सबके के लिए चाय बनाई। निरूपा भी खुश थी। मां और पिताजी के प्रसन्न चेहरों ने पल्लवी के शरीर में एक नई ऊर्जा फूंक दी।


सीआईडी में बिल्कुल पहले जैसा माहौल था। पल्लवी का मन अब हल्का हो चुका था। प्रदीप को थैंक्स कहने में अब उसे कोई परेशानी नहीं थी।


आखिर ऐसा क्या किया उस जादूगर प्रदीप ने? अब कोई उससे नाराज़ नहीं है। क्यों? पल्लवी की मां निरूपा ने नाश्ते की टेबल पर आज पहली बार प्रदीप की तारीफ की थी। सीआईडी में भी प्रदीप को लेकर कुछ खुसुर-फुसूर हो रही है। ये सब पल्लवी ने अपनी आंखों से देखा था।


ऑफिस पहुंचकर पल्लवी अपनी चेयर पर बैठ गई। वह अख़बार खंगालने लगी। पहले ही पेज पर उसकी नज़रें जम गई। पल्लवी को समझते देर न लगी। परिस्थितियों के नॉर्मल होने की मुख्य वजह यहीं थी। पल्लवी के चेहरे की मुस्कान बता रही थी की जल्दी ही वह प्रदीप से मिलकर सभी को चौंका देगी।


युवा कृषि वैज्ञानिक प्रदीप शर्मा महा माहिम राष्ट्रपति जी के हाथों सम्मानित होकर गांव के देसी देहाती की मिथक छवि तोड़ चुके थे। पूर्वजों से विरासत में मिली शुद्ध प्राकृतिक जैविक कृषि की उन्नत तकनीक विकसित करने वाले प्रदीप ने देश वासियों को बताया कि हमारी परंपरागत कृषि हर हाल में जीवित रहना चाहिए। आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति के सहयोग से हमें विरासत में मिली देशी तकनीक को जिंदा रखने की हर संभव कोशिश करना चाहिए। प्रदीप का बयान का था- " पूर्वजों के आशीर्वाद से आज खेती-किसानी ने वो दिन दिखाएं है जो एक किसान कभी सपनों में नहीं सोच सकता था। उनकी विरासत, उनके आदर्श और उनके वचन हमें अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय होने चाहिए।"


The End 


लेखक ~

जितेंद्र जुगनू "ठहाका"

Mo. 7746842533

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