दीवानी (कहानी) ✍️जितेंद्र शिवहरे
दीवानी (कहानी) ✍️जितेंद्र शिवहरे
--------------------------------------------
नौकरी की बंधाई के साथ लड़कों के बायोडाटा भी आने लगे। कृति के पास ना-नूकुर का अब कोई बहाना नहीं था। कितना अच्छा होता अगर विक्रम कुछ साल और रूक जाता। आज पूरे पांच साल हो गए। विदेश जाने के बाद से उसकी कोई ख़बर नहीं मिली। कृति चाहती थी एक बार विक्रम से बात हो जाती तो कोई अफसोस नहीं रहता।
उस दिन कितना नाराज़ हुआ था विक्रम? उसका गुस्सा देखकर एक बार तो कृति डर गई। समझाने पर भी नहीं माना। अगर मान जाता तो शायद आज दोनों साथ होते।
कुछ कपड़े पलंग पर पटकते हुए अनिता बोली "ले कृति! इनसे से कोई अच्छा-सा सूट पहन लें। लड़के वाले आते ही होंगे!"
कृति को यकीन था की अब उसके पास ज्यादा समय नहीं है। इस बीच अगर विक्रम मिल गया तो ठीक वरना यह अरेंज मैरिज करनी ही होगी।
विक्रम इंटरनेट पर भी नहीं मिला। उसका पता किसी को पता नहीं था। अब कृति करे भी तो क्या?
अतित से जुड़ी सभी यादों का ढेर लगा कर बैठ गई। कहीं कुछ सुराग मिले तो काम बन जाए। फोटोज़ देखते-देखते कब उसकी आंखें भीग गई पता नहीं चला। विक्रम के साथ उसका जीवन आनंद से भरा था। ऐसा कोई दिन नही था जब दोनों मिलते नहीं थे। किसी को कोई ऐतराज भी नहीं था। विक्रम की जल्दबाजी से कृति गुस्सा हो गई। कितने दिनों तक वह विक्रम से बोली भी नहीं। धीरे- धीरे कृति द्वारा दी गई मोहलत पर विक्रम न चाहते भी राज़ी हो गया।
फिर वह दिन भी आया जब दोनों हॉस्पिटल में आखिरी बार मिलें।
'अरे हां! विक्रम रेगुलर ब्लड डोनर है।' कृति को याद आया। उस दिन भी हॉस्पिटल में वह ब्लड डोनेट करने आया था। उम्मीद की इस किरण से कृति तरो-ताज़ा हो गई।
अगले दिन उसने शहर के ब्लड बैंक के चक्कर लगाने शुरू कर दिए। शायद कहीं से विक्रम का कोई पता ठिकाना मिल जाएं।
तीन दिन के बाद विक्रम महाजन का सुराग लगा। लेकिन जो पता रजिस्टर में अंकित था, वहां विक्रम नहीं था। उसका मोबाइल नंबर भी किसी अन्य को अलाट हो चुका था। विक्रम जिस ट्रस्ट का मेंबर था, कृति को पता चला की वह एनजीओ तो पांच साल पहले ही भंग हो चुका है। बस गेंगटॉक में एक स्कूल जरूर है, जो सरकारी मदद से अभी भी चल रहा है।
कृति गेंगटॉक के सफर पर अकेली ही निकल पड़ी। वहां पहुंचने पर विक्रम पढ़ाता हुआ मिला। कृति खुद को रोक न सकी। निश्छल प्रेम के आंसूओं से विक्रम भी भीग गया।
उसने कहा - "जब देखा अपनी मंजिल को पाने के लिए हर कोई दौड़ रहा है, सोचा कुछ को दौड़ने लायक बनाऊं।इसलिए यहां चला आया।"
कृति विक्रम का हाथ थामे हुए कहने लगी "अब मुझे भी अपनी मंजिल से मिला दो विक्रम!"
विक्रम हंसने लगा। वह बोला " कृति! हम कभी दूर थे ही नहीं।"
"मतलब!" कृति ने पूंछा!
"मतलब ये की दूरी तो नाम की है। कृति और विक्रम हमेशा साथ ही है।" विक्रम ने समझाया।
कृति डर गई। वह बोली " ऐसा न कहो। मुझे अपना लो।"
विक्रम बोला "प्रेम का वास्तविक लक्ष्य मत भूलों कृति। मैं हमेशा तुम्हारे साथ ही हूं।"
यह कहते हुए विक्रम बादलों की ओट में कहीं खो गया।
कृति अब घरवालों को क्या जवाब देगी? विक्रम को साथ लेकर लौटने वाली कृति खाली हाथ थी। किसी दूसरे को जीवन साथी स्वीकार करना उसके लिये संभव नहीं था। विक्रम एक दिन जरूर आयेगा। और वह उसे अपने साथ ब्याहकर ले जायेगा। इसी उम्मीद को लेकर वह सरस्वती ट्रस्ट को पुनर्जीवित करने की कोशिश में जुट गई। एक यही मार्ग था जो उसे विक्रम से दोबारा मिलवा सकता था।
The End
-------------
लेखक ~
जितेंद्र शिवहरे, इंदौर
Mo. 7746842533
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें