जीत -- कहानी
मौलिक कहानी
जीत -- कहानी
"ये तुम क्या कह रही हो नुपूर की मां। कहीं तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया। इतनी गन्दी और औछी बात तुम सोच भी कैसे सकती हो? छीं छीं छीं आज तुम्हारा मेरी पत्नी होने पर मेरा सिर मारे शर्म के पाताल में झूके जा रहा है। लोगों को कहीं तुम्हारी इस घृणित षड्यंत्र का पता चलेगा न तो हो सकता वो तुम्हारे साथ साथ हम सभी परिवार सदस्यों का दाना पानी बन्द कर देंगे ?" प्रकाश वर्मा अपनी पत्नी पर नाराज होकर डांटते बोल रहे थे।
नुपूर की मां संगीता ने गहरी सांस लेते हुये अपने पति को कुछ समझाने का प्रयास किया-
"देखिये जी! मैं जो कह रही हूं वो बहुत सोच समझ के कह रही हूं। आपकी तलाकशुदा कुंवारी बेटी नुपूर जब किसी के साथ कुकर्म करते हुये रंगे हाथ पकड़ी जायेगी न तब यही दुनिया वाले हमे वैसे भी जीने नहीं देगें। नुपूर अभी जवान है। आठ साल हो गये है उसका तलाक हुये। क्या मैं नहीं जानती उसकी मनोदशा? उसके पहले शराबी जुवारी पति के कामों से परेशान उसने और हमने क्या क्या नहीं सहा? बमुश्किल तलाक हो पाया है। और हमारी बेटी अपनी पहली शादी से इतनी खौफजदा हो गयी की आज तक दूसरी शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं है। क्या आप उसे हंसते मुस्कुराते नहीं देखना चाहते?"
"तुम्हारी ये बात सही है लेकिन नुपूर की मां तुम जो दुसरी बात समस्या के हल के लिए सुझा रही हो वो सरासर गलत है। न्यायसंगत नहीं है। समाज विरोधी बात मैं कैसे स्वीकार करू?" प्रकाश वर्मा ने अपनी मजबूरी जाहिर की।
"फिर वही समाज? देखिये समाज सिर्फ हमारी बुराईयों को देखता है और वह भी तब जब वह बुरायी दिखाई दे। राजी मर्जी के अपराध, अपराध की श्रेणी में नहीं गिने जाते। क्योंकि के वे जगजाहिर नहीं होते है। और वैसे भी नुपूर हमारी बेटी है समाज की नहीं। उसकी खुशी के लिए हम वो सब करेगें जो हमे करना चाहिए।" संगीता बोली।
"लेकिन हमारा किरायेदार जीवन और हमारी नुपुर का सम्बन्ध? प्रकाश वर्मा ने आश्चर्य व्यक्त किया।
"हां नुपूर के पापा! क्या हमें नहीं दिखता की नुपूर का खिंचाव जीवन की तरफ कुछ ज्यादा ही है। और फिर जीवन भले ही एक नेक इंसान है पर आखिर है तो वह भी एक आम आदमी ही न। आज नहीं तो कल वह भी बहक सकता है। हो सकता है वो दोनो गुपचुप मिलना जुलना शुरू कर दे। और ये भी संभव है की वो दोनों हमारी जानकारी के बीना ही घर से चले जाये, भाग जाये? संगीता ने समझाया।
"लेकिन नुपूर की मां, जीवन शादीशुदा है और उसकी एक बेटी है और अभी उसकी पत्नी पेट से है। उसका दूसरा बच्चा होने वाला है।"
प्रकाश वर्मा ने कहा।
"हां मुझे सब पता है। देखो अगर वो दोनों हमारी जानकारी में रह कर आपसी सम्बन्ध बनाते है तो इसमें कहीं कुछ गलत नहीं होगा। वो कुछ भी करे, रहेगें तो हमारे सामने ही। तलाकशुदा कुंवारी मां की मैं मां कहलाऊं और लोग धूं-धूं करे इससे अच्छा है की वो दोनो हमारी सहमती से शारीरिक संबंध बनाकर अपनी-अपनी भोग वासना को शान्त कर ले। आप, मैं हम सभी जानते है कि घर से भागकर शादी करने वाले प्रेमी जोड़े कितने सफल होते है। उनमें से कितनों की लाशें मिलती है, क्योंकि प्रेम में असफल होकर या तो वो खुदकुशी कर लेते है या फिर बदनामी के डर से असहनीय दुःख को झेलते हुये गुमनामी में खो जाते है।"
संगीता वर्मा ने दृढ़ता से जवाब दिया।
"तुम ये क्या कह रही हो ? क्यों कह रही हो? और ये सब इतना आसान नहीं है। जीवन की पत्नी क्या राजी होगी इन सब के लिए ?" प्रकाश वर्मा ने अगला प्रश्न दागा।
"जरूर राजी होगी। अगर उसे अपना परिवार बचाना है और अगर वह चाहती है कि उसका पति उसके पास उसकी नज़र के सामने रहे तो उसे भी मेरी बात माननी होगी। उसे मैं समझाऊंगी की दिन भर परिन्दा कहीं भी उड़े शाम को घर आता ही है। कुछ दिनों के साथ के बाद नुपूर और जीवन का एक-दूसरे के प्रति आकर्षण भी खत्म हो जायेगा। इसी बीच हम नुपूर के लिए कोई अच्छा सा रिश्ता देखकर उसकी शादी कर देगें।"
संगीता पहली जंग जीत चुकी थी। प्रकाश वर्मा का घूप मौन उनकी स्वीकृति थी।
नुपूर अपने यौवनावस्था के चरम पर थी। उसके सौन्दर्य में दिन दुनी रात चौगुनी वृद्धि होती जा रही थी। जीवन भी यदा-कदा नजर बचाकर नुपूर को निहार ही लेता था। अपने कमरे में जाते-जाते नुपूर और उसकी आंखे चार हो ही जाती थी। दोनों कि निगाहें प्रेमालाप की ऊंची उड़ान भरने लगती। अवसर की अभिलाषा में दोनों ही युगल कुछ-कुछ सफल भी हो जाते। किन्तु अवसर की प्राप्ति घणी दो घणी भर की ही होती। इस अल्पावधि में दोनों की कामनाएं तृप्ति को प्राप्त करने में बहुत ही कम साबित होती। क्योंकि इन्हें नजर बचाकर जमाने से बचना भी तो होना था।
जीवन की पत्नी रश्मि के सामने जब संगीता वर्मा ने अपनी ये अजीब सी मांग रखी तो वह तिलमिला उठी।
"ये क्या बकवास कर रही है जीजी आप? आप होश में तो है। आप अपनी जवान बेटी को••• छींछींछीं••। आप ऐसा सोच भी कैसी सकती है?
"सोच सकती हूं, जब उसकी तलाश शुदा जवान बेटी रात-रात भर सोती ने हो। उसकी सिसकियां मुझे परेशान करती है। सोने नहीं देती। ये तुम जानती हो की वो दूसरी शादी करने के लिए तैयार नहीं है। लेकिन उसकी वासना की आग की लपटे आकाश को छूं रही है। ये भी तुमसे छिपा नहीं है। और तुम्हें ये भी पता ही होगा की नुपूर और जीवन कहीं ने कहीं एक दूसरे पर लट्टू है। वो तो हम दोनो है जो उन्हें अवसर नहीं दे रहे है वर्ना वो दोनो कभी के एक हो जाते। और याद रखो रश्मि ! आज नहीं तो कल वो दो जिस्म एक जान हो ही जायेगें। तब न तुमसे कुछ होगा न हम कुछ कर पायेगें। सोचो अगर ये दोनो घर छोड़कर भाग गये तब क्या तुम अपना और अपनी इस बेटी को कैसे पालोगी? और ये जो अभी तुम्हारे पेट में पल रहा बच्चा बाहर आकर तुमसे अपने पापा के विषय में पूछेगा तब तुम क्या जवाब दोगी? अच्छा होगा की हम सब राजी मर्जी से खुशी-खुशी बिना किसी को बताए दोनों को एक हो जाने दे। कुछ ही दिनों में दोनों का एक-दूसरे से मन भर जायेगा। इसी बीच हम नुपूर को समझा बुझा कर मनाकर कहीं न कहीं उसकी शादी करवा देगें। तब सब ठीक हो जायेगा। लेकिन इन सब कामों को करने लिए मूझे वक्त चाहिए। और इन दोनों को अपनी आंखों के सामने भी रखना है। इसलिए मैंने ये रास्ता चुना है। बात घर की घर में रहेगी और हम दोनों का परिवार टूटने से बच जायेगा।"
संगीता वर्मा ने समझाया।
"लेकिन•••!" इसके आगे रश्मि कुछ न बोल सकी।
संगीता वर्मा की ये दूरी जीत थी।
संगीता ने जीवन को और अपनी बेटी को भी ये कृत्य करने हेतू मना लिया। हां उसे इन दोनों को मनाने में ज्यादा समय नहीं लगा।
बड़ी ही अजीब किश्म की थी ये सुहागरात। फूलों की सेज महक रही थी। नुपूर किसी अनछुयी कोमलांगी सी बंद कमरे में जीवन का इन्तजार कर रही थी। उसका मन हिलोरे मार रहा था। शरीर के अन्दर कोतूहल मचा हुया था। जाने मन में क्या- क्या विचार आ रहे थे? कुछ अच्छे कुछ कड़वे ख्यालों ने उसके मन-मस्तिष्क में ऊथल पुथल मचा रखी थी।
यकायक उसे अपने पहले असफल विवाह के किस्सें एक-एक कर याद आने लगे। माणिक से उसका विवाह नुपूर के लिए एक त्रासदी से कम नहीं था। शारीरिक मारपीट के चिन्ह आज भी उसके शरीर में सिरहन पैदा कर जाते है। भयान्तक का वातावरण जो उसने जीया वो किसी जेल में बिताये भंयकर पलों से कमतर नहीं था। पुलिस कोर्ट-कचहरी, बयान, सुनवायी, तलाक और भारी भरकम किश्तों में मिल रही शर्मिंदगी। क्या कुछ नहीं सहा उसने? इन सब में अगर किसी ने उसका साथ दिया तो वो उसकी मां और बाबूजी ने।
"कितना कुछ बलिदान दिया है उन्होंने मेरे लिए। कोर्ट-कचहरी के कितने ही चक्कर लगाये है इन्होने मेरे वास्तें। भूखे प्यासे पराये देश में जहां सिर्फ मणिक का ही वर्चस्व था वहां भी उस गुण्डे से डरे नहीं और डटे रहे। खुद भी हिम्मत रखी और मुझे भी ढाढस बंधाते रहे। जान की बाजी तक लगा दी, कितने चोटे खायी मगर मुझे उस दरिन्दें के चुंगल से छुड़ा कर ले ही आये। मम्मी-पापा नहीं होते तब क्या मैं जीवित रह पाती? कभी नहीं। और आज मेरी खुशी के लिए वो मुझे किसी ओर के साथ हमबिस्तर भी होने की भी परमिशन दे रहे है। क्या वो जो कर रहे है वह सही है या मैं जो कर रही हूं वह सही है?
नहीं , वो अपनी संतान प्रेम में डूब कर ऐसा कर रहे लेकिन मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो गयी? अभी मेरी छोटी बहन निर्मला का विवाह होना शेष है। कहीं उसे मेरे इस कुकर्म के बारे में पता चला तब उसके मन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? भविष्य में तदि उसके भी पांव बहक गये तब हम उसे क्या कहकर रोकेगें? मेरा ये अनैतिक कदम उसके लिए तो प्रमाणित मार्ग हो जायेगा। जहां चलकर वो भी हमारे परिवार की ख्याति धूमिल कर दे तो इसमें कोई नयी बात नहीं होगी।
नहीं मैं यह कदम नहीं उठाऊगीं। चाहे कुछ भी हो जाये, इस परिवार को अब मेरी ओर से कोई परेशानी नहीं आयेगी। मैं जीवन को साफ-साफ शब्दों में स्पष्ट मना कर दूगीं। और अब अपने परिवार पर कोई बोझ नहीं बनूगीं। मां बाबूजी के कहे अनुसार मैं अब दूसरी शादी करूगीं।"
नुपूर के कमरे पर दस्तक देकर जीवन अन्दर दाखिल हो चुका था। नुपूर इससे पहले कुछ कह पाती, जीवन ने ही कहना शुरू कर दिया--
"नुपूर ! मैं यह नहीं कर सकता। मैं अपनी पत्नी को धोखा नहीं दे सकता। हां ये जरूर था मैं तुम्हारे प्रति आकर्षित था। लेकिन अपने परिवार के लगाव के आगे तुम्हारा लगाव कम पड़ गया। तुम्हें पता है नुपूर, अभी कल ही मुझे आफिस में बेस्ट एम्प्लॉयी का अवार्ड मिला है। हजारों कर्मचारीयों की तालियों के बीच मेरा सिर और सीना मारे गर्व के आकाश को छुये जा रहा था। आज आफिस में हर कोई मेरे जैसा बनने की चाह रख रहा है। अब यदि उन्हें मेरे इस अनैतिक कर्म की खबर लग जाये तो मेरी मान मर्यादा पल भर धूमिल हो जायेगी। उन्हें न भी पता चले तो भी क्या मैं आन्तरिक मन से ये सम्मान सहन कर पाऊगां। आज पुरे मोहल्ले में मेरे अच्छे आचरण के किस्से सुनाये जाते है। मेरी पत्नी भी बेटी को मेरे जैसा बनने का तरीका अपनाने को सिखाती है। मेरे सास-ससुर मेरी तारीफ करते नहीं थकते। मम्मी-पापा तो मुझे पाकर गौरवान्वित महसुस करते है। इन सबका विश्वास महज वासना के वशीभूत आकर में तार-तार कर तोड़ दूं? ये मुझसे न हो पायेगा। मैं तुमसे हाथ जोड़कर माफी मांगता हुं अब तक जो हुया उसके लिए। तुम्हारे मम्मी पापा से मैं सुबह माफी मांग लुगां। कल से हम आपके यहां से कमरा भी खाली रह रहे है।"
कहते-कहते उसका गला रून्ध आया।
जीवन की बातें नुपूर ध्यान लगाकर सुन रही थी। और उधर कान लगाकर संगीता भी। प्रकाश और जीवन की पत्नी ने भी दोनों की बातें सुन ली। सभी का मन हल्का हो चुका था। और साफ भी।
संगीता अपनी जंग जीत चुकी थी।
उसके चेहरे पर विजयी मुस्कान तैर रही थी।
लेखक
जितेंद्र शिवहरे
452001
मध्य प्रदेश
मोबाइल
8779879151
शानदार कहानी हैं।
जवाब देंहटाएंनए जमाने की नई सोच की सच्ची कहानी हैं।
समाज नई करवट ले रहा हैं।
धन्यवाद सर
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