साली--लघुकहानी
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*साली--लघुकहानी*
*एक कहानी रोज़--75*
28/06/2020
*सुमन* घर आ रही है, यह सोचकर मृदुल फूलां नहीं समा रहा था। सुमन एक लौती साली थी मृदुल की। सीमा के कहने से पुर्व ही मृदुल बाजार से पनीर ले आया। सुमन को पालक-पनीर की सब्जी प्रिय थी। सुमन की प्रत्येक पसंद और नापसंद का पुरा ध्यान रखते थे उसके जीजू मृदुल।
साली साहिबा को बस स्टाॅप पर लेने के जाने के लिए मृदुल घर से निकला था कि वह स्वयं दरवाजे पर आ खड़ी हुई। सीमा को आश्चर्य हुआ कि जब उसने सुमन से कह दिया था कि उसके जीजू उसे बस स्टाॅप पर लेने आ जायेंगे। फिर सुमन अकेली क्यों आ गयी?
सुमन का चेहरा भी उतरा हुआ था। दो दिन बाद उसकी एक्जाम थी। वही देने यहां आई थी। सुमन मृदुल से नज़र बचाने का प्रयास कर रही थी। जबकी मृदुल चाहता था कि सुमन उससे ढेर सारी बातें करे, हंसी-मज़ाक करे। लेकिन सुमन उसे बिल्कुल भी भाव नहीं दे रही थी।
"क्या हुआ सुमन! तु अपने जीजू से ठीक से बात क्यों नहीं कर रही?" सीमा ने किचन में खाना बनाते हुये पुछा। खाना बनाने में सुमन अपनी दीदी की मदद कर रही थी।
"दीदी! मैं बहुत दिनों से आपको एक बात बताना चाहती थी। लेकिन हिम्मत नहीं हुई!" सुमन ने कहा।
"बात क्या है सुमन?" सीमा ने अधीर होकर पुछा।
"दीदी! मैं नहीं चाहती की आपकी नज़रों में जीजू का मान-सम्मान कम हो।" सुमन ने कहा।
"पहेली बुझाना बंद कर! सीधे-सीधे बता! आखिर बात क्या है?" सीमा ने सुमन को कंधों से कसकर पकड़ कर पुछा।
"दीदी! जिस तरह से बेड टच और गुड टच में अंतर होता है, उसी तरह अच्छी और बुरी नज़र में भी फर्क होता है।" सुमन ने कहा।
सीमा के तन बदन में आग लग गयी। वह अब समझी की सुमन बस स्टाॅप से अकेली घर क्यों आ गयी।
सुमन ने सीमा को बताया की मृदुल किस हद तक उसके साथ छेड़छाड़ करते थे। पिछली बार मृदुल के साथ की बाइक राइडिंग वह अब तक भुली नहीं थी। मृदुल जानबूझकर बाइक के ब्रेक लगा रहा था ताकि सुमन उसके उपर आ गिरे। और वो अनचाहे स्पर्श सुमन भला कैसे भुल सकती थी? कितना रोयी थी वह उस दिन। बस उसने तब ही से निर्णय ले लिया था कि अब वह यह सब सहन नहीं करेगी। सीमा का चेहरा क्रोध से लाल हुआ जा रहा था। उसने मृदुल से सच जानना चाहा।
"सुमन मुझ पर आरोप लगा रही है!" मृदुल चीखा।
"शुक्र कीजिए की थप्पड़ नहीं लगा रही हूं जीजू! अभी सिर्फ आरोप लगाया है।" सुमन की आवाज़ में सच्चाई की धाक थी।
मृदुल की नज़रे नीचे हो गयी। सुमन संभवतः पहली युवती थी जिसने अपने सगे जीजा का खुलकर विरोध किया था। बिना ये सोचे की उसके इस कदम से उसकी बहन की गृहस्थी प्रभावित हो सकती थी। किन्तु सीमा ने भी अपनी बहन का साथ दिया और अपने पति को अंतिम चेतावनी जारी कर दी।
सुमन ने उस दकियांनुसी विचार का भी खंडन किया जिसमें यह कहा गया है कि 'साली आधी घरवाली होती है।' सुमन ने उदाहरण प्रस्तुत किया कि साली सिर्फ साली होती है और उसके तन-मन पर उसके होने वाले पति का अधिकार होता है और किसी का नहीं।
समाप्त
--------------------------------------------
प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
मोबाइल नम्बर
7746842533
8770870151
Jshivhare2015@gmail.com Myshivhare2018@gmail.com
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*एक कहानी रोज़--75*
28/06/2020
*सुमन* घर आ रही है, यह सोचकर मृदुल फूलां नहीं समा रहा था। सुमन एक लौती साली थी मृदुल की। सीमा के कहने से पुर्व ही मृदुल बाजार से पनीर ले आया। सुमन को पालक-पनीर की सब्जी प्रिय थी। सुमन की प्रत्येक पसंद और नापसंद का पुरा ध्यान रखते थे उसके जीजू मृदुल।
साली साहिबा को बस स्टाॅप पर लेने के जाने के लिए मृदुल घर से निकला था कि वह स्वयं दरवाजे पर आ खड़ी हुई। सीमा को आश्चर्य हुआ कि जब उसने सुमन से कह दिया था कि उसके जीजू उसे बस स्टाॅप पर लेने आ जायेंगे। फिर सुमन अकेली क्यों आ गयी?
सुमन का चेहरा भी उतरा हुआ था। दो दिन बाद उसकी एक्जाम थी। वही देने यहां आई थी। सुमन मृदुल से नज़र बचाने का प्रयास कर रही थी। जबकी मृदुल चाहता था कि सुमन उससे ढेर सारी बातें करे, हंसी-मज़ाक करे। लेकिन सुमन उसे बिल्कुल भी भाव नहीं दे रही थी।
"क्या हुआ सुमन! तु अपने जीजू से ठीक से बात क्यों नहीं कर रही?" सीमा ने किचन में खाना बनाते हुये पुछा। खाना बनाने में सुमन अपनी दीदी की मदद कर रही थी।
"दीदी! मैं बहुत दिनों से आपको एक बात बताना चाहती थी। लेकिन हिम्मत नहीं हुई!" सुमन ने कहा।
"बात क्या है सुमन?" सीमा ने अधीर होकर पुछा।
"दीदी! मैं नहीं चाहती की आपकी नज़रों में जीजू का मान-सम्मान कम हो।" सुमन ने कहा।
"पहेली बुझाना बंद कर! सीधे-सीधे बता! आखिर बात क्या है?" सीमा ने सुमन को कंधों से कसकर पकड़ कर पुछा।
"दीदी! जिस तरह से बेड टच और गुड टच में अंतर होता है, उसी तरह अच्छी और बुरी नज़र में भी फर्क होता है।" सुमन ने कहा।
सीमा के तन बदन में आग लग गयी। वह अब समझी की सुमन बस स्टाॅप से अकेली घर क्यों आ गयी।
सुमन ने सीमा को बताया की मृदुल किस हद तक उसके साथ छेड़छाड़ करते थे। पिछली बार मृदुल के साथ की बाइक राइडिंग वह अब तक भुली नहीं थी। मृदुल जानबूझकर बाइक के ब्रेक लगा रहा था ताकि सुमन उसके उपर आ गिरे। और वो अनचाहे स्पर्श सुमन भला कैसे भुल सकती थी? कितना रोयी थी वह उस दिन। बस उसने तब ही से निर्णय ले लिया था कि अब वह यह सब सहन नहीं करेगी। सीमा का चेहरा क्रोध से लाल हुआ जा रहा था। उसने मृदुल से सच जानना चाहा।
"सुमन मुझ पर आरोप लगा रही है!" मृदुल चीखा।
"शुक्र कीजिए की थप्पड़ नहीं लगा रही हूं जीजू! अभी सिर्फ आरोप लगाया है।" सुमन की आवाज़ में सच्चाई की धाक थी।
मृदुल की नज़रे नीचे हो गयी। सुमन संभवतः पहली युवती थी जिसने अपने सगे जीजा का खुलकर विरोध किया था। बिना ये सोचे की उसके इस कदम से उसकी बहन की गृहस्थी प्रभावित हो सकती थी। किन्तु सीमा ने भी अपनी बहन का साथ दिया और अपने पति को अंतिम चेतावनी जारी कर दी।
सुमन ने उस दकियांनुसी विचार का भी खंडन किया जिसमें यह कहा गया है कि 'साली आधी घरवाली होती है।' सुमन ने उदाहरण प्रस्तुत किया कि साली सिर्फ साली होती है और उसके तन-मन पर उसके होने वाले पति का अधिकार होता है और किसी का नहीं।
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जितेन्द्र शिवहरे
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