एक कहानी रोज़--76 (29/06/2020)
*बांझ-लघुकहानी*
*कृपया शेयर करे*
*रजनी* को अपने किये पर कोई पछतावा नहीं था। क्योंकि उसने सबकुछ सोच-समझकर ही यह निर्णय लिया था। किन्तु सुनने वालों के लिए भरोसा करना कठिन था। रजनी ने स्वयं बिट्टो को अपनी सौतन चुना था। अमर दुसरे विवाह के विरोध में था किन्तु अपनी पहली पत्नी रजनी द्वारा विवश करने पर उसने बिट्टो से शादी कर ली। बिट्टो से शादी के एक वर्ष बाद ही सोनु का जन्म हो गया। रजनी खुशी के मारे फुली नहीं समा रही थी। सोनु को एक साथ दो-दो मांओं का प्यार मिल रहा था। बिट्टो रजनी के प्रति विनम्र थी। क्योंकि सोनु की परवरिश वह बहुत अच्छे से कर रही थी। घर का अधिकतर काम भी रजनी ही कर लेती। बिट्टो के तो ठाठ हो गये थे। न सोनु की देखभाल की चिंता और न ही घरेलु कामकाज की परवाह। यहां तक की रजनी ने प्रसन्न होकर अमर का सारा प्रेम बिट्टो के लिए न्यौछावर कर दिया था। बिट्टो अक्सर अमर के साथ घुमने-फिरने बाहर जाया करती। इस दौरान सोनु अपनी बड़ी मम्मी रजनी के पास ही रहता। सोनु का अधिकतर समय रजनी के साथ बीत रहा था। इसलिए वह रजनी को ही अपनी असली मां समझने लगा। रजनी का बांझत्व भी सोनु के आ जाने से जाता रहा।
कुछ समय उपरांत काना-फुसी की शिकार बिट्टो ने घर-गृहस्थी में मन रमाने की सोची। उसने सोनु को अपनी छाती से लगाना चाहा लेकिन वह रजनी के स्तनों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। सोनु पांच वर्ष का हो चूका था। बिना रजनी के वह एक पल नहीं रहता। बिट्टो यह देखकर जल-भून जाती। रजनी के प्रति धीरे-धीरे उसके भीतर विष जमा होता रहा। और फिर वह दिन भी जल्दी आ गया जब बिट्टो ने रजनी के प्रति खुलकर विद्रोह कर दिया। अमर जिस बात से डर रहा था वही हुआ। अब उसे रजनी और बिट्टो में से किसी एक का चुनाव करना था। इस धर्मसंकट में वह सूखकर कांटा हो गया। क्षय रोग ने ऐसा जकड़ा की मौत के मुहांना पर आ पहूंचा। पति की जान के आगे रजनी ने अपनी ममता का त्याग कर दिया। बिट्टो की दुत्कार से परेशान होकर रजनी ने अपने बीमार पति को खैराती अस्पताल में भर्ती कर दिया। स्वयं भी पति के साथ ही रही। बिट्टों ने बलात सोनु को रजनी और अमर से दूर कर दिया। उसने अस्पताल में संदेशा भिजवा दिया की अब उन दोनों के लिए बिट्टों के घर में कोई जगह नहीं है। अतः वे दौबारा लौट कर यहां न आये। रजनी इसे भी सह गयी। उसे अपने पति से मुल्यवान कुछ नहीं लगा। सरकारी अस्पताल के बेड पर लेटे हुए अमर की आंखों का पानी पोंछती रजनी न चाहते हुये भी प्रसन्नता का दिखावा करती। ताकी अमर हतोत्साहित न हो। रजनी का संबंल पाकर अमर धीरे-धीरे ठीक हो रहा था। इधर सोनु ने खाना-पीना त्याग दिया। डाॅक्टर्स उसके मर्ज का उपचार नहीं खोज पा रहे थे। बिट्टो घर-बार बेचकर भी सोनु को स्वस्थ देखना चाहती थी। किन्तु एक दर्जन से अधिक डाॅक्टर्स बदलने पर भी वे लोग सोनु के चेहरे पर मुस्कान नहीं ला सके। रजनी को जब सोनु के विषय में पता चला तब वह बिट्टों की नाराजगी की चिंता किये बगैर उसके घर जा पहूंची। अपनी बड़ी मां को सम्मुख देखकर सोनु की आंखों में चमक आ गयी। वह बिस्तर पर उठ बैठा। रजनी की छाती से चिपककर वह ज़ार-ज़ार रोया। रजनी भी अपने आसुं रोक न सकी। दोनों मां-बेटों का मिलन देखकर बिट्टों पश्चाताप के आसुं बहाने लगी। उसे भरोसा हो गया की सोनु को किसी उपचार की आवश्यकता नहीं थी। सोनु का उपचार रजनी ही है और सोनु रजनी के बिना नहीं रह सकता। बिट्टो ने रजनी और अमर से माफी मांगकर उन दोनों को पुनः गृह प्रेवश करवाया। सोनु अब रजनी और बिट्टो दोनों को मां कहकर पुकारने लगा।
समाप्त
--------------------------------------------
प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
मोबाइल नम्बर
7746842533
8770870151
Jshivhare2015@gmail.com Myshivhare2018@gmail.com
*बांझ-लघुकहानी*
*कृपया शेयर करे*
*रजनी* को अपने किये पर कोई पछतावा नहीं था। क्योंकि उसने सबकुछ सोच-समझकर ही यह निर्णय लिया था। किन्तु सुनने वालों के लिए भरोसा करना कठिन था। रजनी ने स्वयं बिट्टो को अपनी सौतन चुना था। अमर दुसरे विवाह के विरोध में था किन्तु अपनी पहली पत्नी रजनी द्वारा विवश करने पर उसने बिट्टो से शादी कर ली। बिट्टो से शादी के एक वर्ष बाद ही सोनु का जन्म हो गया। रजनी खुशी के मारे फुली नहीं समा रही थी। सोनु को एक साथ दो-दो मांओं का प्यार मिल रहा था। बिट्टो रजनी के प्रति विनम्र थी। क्योंकि सोनु की परवरिश वह बहुत अच्छे से कर रही थी। घर का अधिकतर काम भी रजनी ही कर लेती। बिट्टो के तो ठाठ हो गये थे। न सोनु की देखभाल की चिंता और न ही घरेलु कामकाज की परवाह। यहां तक की रजनी ने प्रसन्न होकर अमर का सारा प्रेम बिट्टो के लिए न्यौछावर कर दिया था। बिट्टो अक्सर अमर के साथ घुमने-फिरने बाहर जाया करती। इस दौरान सोनु अपनी बड़ी मम्मी रजनी के पास ही रहता। सोनु का अधिकतर समय रजनी के साथ बीत रहा था। इसलिए वह रजनी को ही अपनी असली मां समझने लगा। रजनी का बांझत्व भी सोनु के आ जाने से जाता रहा।
कुछ समय उपरांत काना-फुसी की शिकार बिट्टो ने घर-गृहस्थी में मन रमाने की सोची। उसने सोनु को अपनी छाती से लगाना चाहा लेकिन वह रजनी के स्तनों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। सोनु पांच वर्ष का हो चूका था। बिना रजनी के वह एक पल नहीं रहता। बिट्टो यह देखकर जल-भून जाती। रजनी के प्रति धीरे-धीरे उसके भीतर विष जमा होता रहा। और फिर वह दिन भी जल्दी आ गया जब बिट्टो ने रजनी के प्रति खुलकर विद्रोह कर दिया। अमर जिस बात से डर रहा था वही हुआ। अब उसे रजनी और बिट्टो में से किसी एक का चुनाव करना था। इस धर्मसंकट में वह सूखकर कांटा हो गया। क्षय रोग ने ऐसा जकड़ा की मौत के मुहांना पर आ पहूंचा। पति की जान के आगे रजनी ने अपनी ममता का त्याग कर दिया। बिट्टो की दुत्कार से परेशान होकर रजनी ने अपने बीमार पति को खैराती अस्पताल में भर्ती कर दिया। स्वयं भी पति के साथ ही रही। बिट्टों ने बलात सोनु को रजनी और अमर से दूर कर दिया। उसने अस्पताल में संदेशा भिजवा दिया की अब उन दोनों के लिए बिट्टों के घर में कोई जगह नहीं है। अतः वे दौबारा लौट कर यहां न आये। रजनी इसे भी सह गयी। उसे अपने पति से मुल्यवान कुछ नहीं लगा। सरकारी अस्पताल के बेड पर लेटे हुए अमर की आंखों का पानी पोंछती रजनी न चाहते हुये भी प्रसन्नता का दिखावा करती। ताकी अमर हतोत्साहित न हो। रजनी का संबंल पाकर अमर धीरे-धीरे ठीक हो रहा था। इधर सोनु ने खाना-पीना त्याग दिया। डाॅक्टर्स उसके मर्ज का उपचार नहीं खोज पा रहे थे। बिट्टो घर-बार बेचकर भी सोनु को स्वस्थ देखना चाहती थी। किन्तु एक दर्जन से अधिक डाॅक्टर्स बदलने पर भी वे लोग सोनु के चेहरे पर मुस्कान नहीं ला सके। रजनी को जब सोनु के विषय में पता चला तब वह बिट्टों की नाराजगी की चिंता किये बगैर उसके घर जा पहूंची। अपनी बड़ी मां को सम्मुख देखकर सोनु की आंखों में चमक आ गयी। वह बिस्तर पर उठ बैठा। रजनी की छाती से चिपककर वह ज़ार-ज़ार रोया। रजनी भी अपने आसुं रोक न सकी। दोनों मां-बेटों का मिलन देखकर बिट्टों पश्चाताप के आसुं बहाने लगी। उसे भरोसा हो गया की सोनु को किसी उपचार की आवश्यकता नहीं थी। सोनु का उपचार रजनी ही है और सोनु रजनी के बिना नहीं रह सकता। बिट्टो ने रजनी और अमर से माफी मांगकर उन दोनों को पुनः गृह प्रेवश करवाया। सोनु अब रजनी और बिट्टो दोनों को मां कहकर पुकारने लगा।
समाप्त
--------------------------------------------
प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
मोबाइल नम्बर
7746842533
8770870151
Jshivhare2015@gmail.com Myshivhare2018@gmail.com
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें