एक कहानी रोज़--79 (02/07/2020)
*पुनर्विवाह-लघुकथा* (शेयर करे)
*कुमार* और राधा पिछले चौदह वर्षों से अलग-अलग रहे थे। बच्चें अनु और प्रिया दोनों के मध्य बंट चुके थे। प्रिया राधा के पास थी और अनु कुमार के पास। छोटी-छोटी घरेलु बातों पर उपजा तनाव तलाक की वज़ह कब बना! दोनों समझ ही नहीं सके। राधा सरकारी स्कूल में शिक्षिका थी तो वहीं कुमार पुर्व की भांति मार्केटिंग का व्यापार कर रहा था।
"पापा! आप मार्केटिंग लाइन में न जाने कितने ग्राहकों को कनवेंस कर देते है लेकिन मम्मी को समझाने में अब तक असफल है! ऐसा क्यों?" प्रिया अपने पापा को फोन पर कह रही थी।
निश्चित रूप से ये प्रश्न कुमार को विचलित करने के लिए पर्याप्त था। अपने कॅरियर में उसने हजारों ग्राहकों को उनकी नापसंद के बावजूद जीचें जबरन विक्रय की थी, वो भी उन्हे प्रसन्न कर! फिर वह अपनी पत्नी को प्रसन्न क्यों नहीं कर सका? आज प्रिया ने उसके बीस साल के मार्केटिंग कॅरियर पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया था। यह बात उसे चिंतित करने के लिए पर्याप्त थी।
अनु अलग रहकर भी अक्सर अपनी मां से फोन पर बातें कर लिया करती।
"ममा! शिक्षक अपने व्यावसायिक जीवन में आने वाली बहुत सी चुनौतियों का न केवल सामना करते हैं अपितु विजय भी प्राप्त करते हैं। शिक्षक के भरोसे सरकार कितने ही महत्वपूर्ण कार्य संपादित करती है। क्या वह शिक्षक अपने निजी जीवन की छोटी-मोटी समस्या हल नहीं कर सकते?" अनु ने फोन पर अपनी मां से कहा।
राधा को विश्वास हो गया की अनु आयु में भले ही छोटी हो किन्तु उसके विचार अब बड़े हो गये थे। राधा को सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का राज्यपाल सम्मान पिछले वर्ष ही प्राप्त हुआ था। एक शिक्षक के रूप में वह सफल थी किन्तु निजी जीवन में असफल! क्या शिक्षक का उत्तरदायित्व स्कूल और स्कूल के बच्चों के कल्याणार्थ ही होता है। वह अपने निजी संबंधों को सुचारू रूप से गतिमान रखने में असफल क्यों हुई थी?
बाहरी चकाचौंध से नेत्र क्षणिक भर के लिए अवश्य बंद हो जाते है किन्तु ये ताम-झाम दिर्घामी आंतरिक सुख कभी नहीं दे सकते।
कुमार और राधा को यह बात समझनी होगी। तब ही वे संपूर्ण सफल और योग्य माने जायेंगे। पारिवारिक रिश्तों में मधुरता और पारस्परिक संबंधों को अटूट बनाये रखना दोनों की सामुहिक जिम्मेदारी होती है। इस बात को कुमार और राधा जितनी जल्दी समझ जाये, उतना ही उनके और दोनों बच्चों के लिए निश्चित लाभदायक सिद्ध होगा।
खैर! दोनों बहनों ने माता-पिता का पुनर्विवाह किये जाने की योजना में प्रारंभिक सफलता प्राप्त कर अपने प्रयत्नों में वृद्धि कर दी थी।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
मोबाइल नम्बर
7746842533
8770870151
Jshivhare2015@gmail.com Myshivhare2018@gmail.com
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*कुमार* और राधा पिछले चौदह वर्षों से अलग-अलग रहे थे। बच्चें अनु और प्रिया दोनों के मध्य बंट चुके थे। प्रिया राधा के पास थी और अनु कुमार के पास। छोटी-छोटी घरेलु बातों पर उपजा तनाव तलाक की वज़ह कब बना! दोनों समझ ही नहीं सके। राधा सरकारी स्कूल में शिक्षिका थी तो वहीं कुमार पुर्व की भांति मार्केटिंग का व्यापार कर रहा था।
"पापा! आप मार्केटिंग लाइन में न जाने कितने ग्राहकों को कनवेंस कर देते है लेकिन मम्मी को समझाने में अब तक असफल है! ऐसा क्यों?" प्रिया अपने पापा को फोन पर कह रही थी।
निश्चित रूप से ये प्रश्न कुमार को विचलित करने के लिए पर्याप्त था। अपने कॅरियर में उसने हजारों ग्राहकों को उनकी नापसंद के बावजूद जीचें जबरन विक्रय की थी, वो भी उन्हे प्रसन्न कर! फिर वह अपनी पत्नी को प्रसन्न क्यों नहीं कर सका? आज प्रिया ने उसके बीस साल के मार्केटिंग कॅरियर पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया था। यह बात उसे चिंतित करने के लिए पर्याप्त थी।
अनु अलग रहकर भी अक्सर अपनी मां से फोन पर बातें कर लिया करती।
"ममा! शिक्षक अपने व्यावसायिक जीवन में आने वाली बहुत सी चुनौतियों का न केवल सामना करते हैं अपितु विजय भी प्राप्त करते हैं। शिक्षक के भरोसे सरकार कितने ही महत्वपूर्ण कार्य संपादित करती है। क्या वह शिक्षक अपने निजी जीवन की छोटी-मोटी समस्या हल नहीं कर सकते?" अनु ने फोन पर अपनी मां से कहा।
राधा को विश्वास हो गया की अनु आयु में भले ही छोटी हो किन्तु उसके विचार अब बड़े हो गये थे। राधा को सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का राज्यपाल सम्मान पिछले वर्ष ही प्राप्त हुआ था। एक शिक्षक के रूप में वह सफल थी किन्तु निजी जीवन में असफल! क्या शिक्षक का उत्तरदायित्व स्कूल और स्कूल के बच्चों के कल्याणार्थ ही होता है। वह अपने निजी संबंधों को सुचारू रूप से गतिमान रखने में असफल क्यों हुई थी?
बाहरी चकाचौंध से नेत्र क्षणिक भर के लिए अवश्य बंद हो जाते है किन्तु ये ताम-झाम दिर्घामी आंतरिक सुख कभी नहीं दे सकते।
कुमार और राधा को यह बात समझनी होगी। तब ही वे संपूर्ण सफल और योग्य माने जायेंगे। पारिवारिक रिश्तों में मधुरता और पारस्परिक संबंधों को अटूट बनाये रखना दोनों की सामुहिक जिम्मेदारी होती है। इस बात को कुमार और राधा जितनी जल्दी समझ जाये, उतना ही उनके और दोनों बच्चों के लिए निश्चित लाभदायक सिद्ध होगा।
खैर! दोनों बहनों ने माता-पिता का पुनर्विवाह किये जाने की योजना में प्रारंभिक सफलता प्राप्त कर अपने प्रयत्नों में वृद्धि कर दी थी।
समाप्त
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