*किल्लत -- लघुकथा*

एक कहानी रोज़ -86

       *सुनिता* को राधा बुआ का फोन आया। अगले रविवार को फुफा जी के साथ वो घर आने वाली थी। ये सोच-सोच कर ही सुनिता व्याकुल हुये जा रही थी। अंततः उसने राधा बुआ को फोन लगा ही दिया।
राधा बुआ ने फोन रिसीव उठाया।
"बुआ जी! बड़ी ही खुशी की बात है की आप और फुफा जी हमारे घर आ रहे है। आपके भतीजे और भतीजी ने जब से ये सुना है , मारे खुशी के एक जगह टीकते ही नहीं है। बुआ जी! ये लेकर आयेंगे, फूफाजी वो लायेंगे! और भी न जाने क्या क्या बड़- बढ़ाये जा रहे है।" राधा फोन पर कह रही थी।
फोन स्पीकर मोड पर था। फुफा जी भी सुनिता की बातें सुन रहे थे। दोनों बहुत प्रसन्न थे सुनिता की बात सुनकर।
बड़े दिनो के बाद वो दोनों किसी अपने के यहां जा रहे थे। स्वयं के बच्चे न होने का दर्द तो वे हर रोज सह रहे थे। कभी- कभार सुनिता और उसके बच्चों से बात कर मन हल्का कर लेते। गर्मियों की छुट्टीयां शुरू हो चुकी थी। इसलिए राधा बुआ ने सुनिता के यहां कुछ दिन रहने का मन बनाया।
सुनिता फोन पर बात जारी रखते हुये बोली-
"बुआजी ! आप साथ अपने कुछ मत लाना। गर्मी में कहां बोझा उठाते फिरेंगे। फुफाजी को भी बोल देना की वे बाज़ार से बच्चों के लिए कुछ ने खरिदे। वैसे भी आप लोग त्यौहारों पर कितना कुछ भेजते रहते है हमारे लिए।
हमें अब आपका सिर्फ आशीर्वाद चाहिए और कुछ नहीं।"
सुनिता की बातें सुनकर दोनो की आंखें नम हो गयी। अपने लिए इतना अपनापन जानकर उनका दिल भर आया।
सुनिता अभी भी कुछ कह रही थी-
"बुआ जी ! युं तो हमारे पास आपके आशीर्वाद से सबकुछ है। हां! बस यहां पानी की किल्लत है। सो हो सके तो आप अपने साथ पानी लेते आना। आप जितने भी दिन यहां रहे उसके मान से पानी की व्यवस्था कर लीजियेगा। हम भी बाजार का पानी बाॅटल से मोल लेकर काम चला रहे है। सुधीर अभी भी बाजार गये पानी लाने।
नहाना तो दो-दो दिनों मे हो पाता है। कपड़े तो हफ्तों मे धुलते है। जरा आप ही सोचिए बुआजी! जब पीने के पानी की ही इतनी किल्लत है तब बाकी सब कामों के लिए पानी कहां से लाये! अच्छा बुआजी अब फोन रखती हूं। आप आना जरूर हां।" सुनिता ने फोन रख दिया।
राधा बुआ जड़ हो चुकी थी। मोहन फुफाजी कुछ बोलना चाहते थे पर शब्द नहीं निकल पा रहे थे।
घर आने का आमंत्रण देकर न आने की अभिस्वीकृति मिलने से वो दोनों मौन थे। उनकी आँखों का पानी भी पानी की किल्लत के सामने सूख गया था।

समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।

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लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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