*मां का साक्षात्कार - लघुकथा*

एक कहानी रोज़-91 (14/07/2020)


    *कॉम्पीटिशन* एक्जाम के साक्षात्कार में एक प्रतियोगी उम्मीदवार से कुछ सवाल पुछे गये। उन सवालो में से कुछ सवाल उसकी मानसिक योग्यता, सामाजिक जुड़ाव और पारिवारिक रिश्तों को परखने से संबंधित थे। जो इस प्रकार है।
कमेटी का पहला सवाल था-
'जिन्दगी में खुशीयां किसके दम पर है?'
प्रतियोगी ने उत्तर दिया- ' मां ! मां से ही जीवन है और जीवन की सभी खुशियां मां में ही समायी है। '
अगला प्रश्न था- 'विश्व में सबसे अधिक शक्तिशाली और सुखद क्या है?'
प्रतियोगी ने उत्तर दिया - 'मां के आंचल की छांव से ताकतवर और सूख का अनुभव  देने वाला अन्य और कोई नहीं है।'
उन्होंने अगला प्रश्न दागा - 'समुद्र भी जिससे भय खा जाये, वह क्या है?'
उसने जवाब दिया - 'मां के आसूं अगर समुद्र में गिरे तो वह भी अपनी सीमा तोड़कर सम्पूर्ण विश्व को जलमग्न कर सकता है।'
उन्होंने आगे पुछा - 'स्वर्ग - नर्क कहां है?'
प्रतियोगी ने उत्तर दिया - 'जहां मां को भगवान समझकर मान-सम्मान दिया जाता है वहां स्वर्ग है और जहां मां को तिरस्कार झेलना पड़े वह नर्क है।'
एक आखरी सवाल के जवाब ने साक्षात्कार कमेटी को भी इमोशनल कर दिया।
सवाल था - 'जिसने अपने पुरे जीवन में छप्पन भोग का आनन्द नहीं लिया, क्या वह अभागा है?'
प्रतियोगी का उत्तर था - ' नहीं अभागा वह नहीं जिसने छप्पन भोग नहीं खाएं। अभागा वह है जिसने अपनी मां के स्तनों का कभी दुग्ध पान नही पीया। मां के स्तनों के दुध से अधिक स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजन पुरे संसार में नहीं है।'
प्रतियोगी साक्षात्कार में सफल होकर आज एक उच्च  पद पर अपनी सेवायें दे रहे हैं।

समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।

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लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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