एक कहानी रोज़--99
*सामुदायिक धर्मशाला-लघुकथा*
*रा* जेश मिन्नतें करते-करते थक गया था। कड़ाके की ठण्ड में ठिठूरते हुये सामुदायिक धर्मशाला के मैनेजर से वह एक रात बिताने की प्रार्थना कर रहा था। मैनेजर स्पष्ट वादी थी। उसने राजेश से साफ-साफ कह दिया कि यह फलां समुदाय की धर्मशाला है। इसमें संबंधित समुदाय के सदस्य ही ठहर सकते है। वो भी दकदम नि:शुल्क। दरअसल राजेश उस समाज का सदस्य नहीं था जिस समाज की वह धर्मशाला थी। राजेश ने कक्ष के बदले अधिक शुल्क देने की घोषणा तक कर दी। क्योंकि रात गहराती जा रही थी और अन्यत्र गेस्ट हाउस में ठहरने के लिये कक्ष उपलब्ध नहीं थे। वह उस समाज की सदस्यता ग्रहण करने को भी तैयार था जिस समुदाय की वह धर्मशाला थी। क्योंकि उसे स्वयं से अधिक अपने साथ सर्दी में ठिठुर रहे बीवी-बच्चों की अधिक चिंता थी। एक वही धर्मशाला थी जिसमें ठहरने हेतु कक्ष उपलब्ध थे। मैनेजर ने कढ़े स्वर में कह दिया की उसे धर्मशाला के स्वामीयों की और से सख्त निर्देश है कि किसी भी मूल्य पर अन्य समुदाय के सदस्यों को धर्मशाला के कक्ष आबंटित न किये जाये। वाद-विवाद की नौबत आये तो वह सुरक्षा प्रहरियों की सहायता लेने में परहेज न करे। हाथों में लठ्ठ लिये पास ही खड़े सुरक्षा प्रहरियों को देखकर राजेश की रही-सही आस भी समाप्त हो गयी। तब ही मुख्य द्वार से कुछ श्वान बाहर निकलते हुये दिखाई दिये। धर्मशाला के चौकीदार ने बल पुर्वक उन्हें बाहर खदेड़ दिया था। मादा श्वान अपने नवजात शिशुओं के साथ बाहर भागी। नवजातों का करूण रूदन स्पष्ट संदेश था की जब यहां मुक पशुओं के लिये कोई स्थान नहीं है तब राजेश और उसके परिवार के लिये ठहरने की व्यवस्था कैसे हो सकती थी? राजेश के अंतर्मन में विचार आया कि वह स्वयं जिस समुदाय का सदस्य है, उसकी समाजिक धर्मशाला में ठहरने के वही सारे नियम तो थे जो कुछ देर पहले वह मैनेजर उसे गिनवा रहा था। राजेश आत्मग्लानी से भर उठा। वह बीवी-बच्चों संग अन्यत्र ठहरने के स्थान की खोज हेतु निकल पड़ा। चलते-चलते वह सोचने लगा, जब तक सामुदायिक एकता के लिये लड़ने वाले समाजिक लोगों के हृदय में सर्व समाज के लिये एकत्व की भावना नहीं जागेगी तब तक पंथ निरपेक्षता की भावना, केवल एक नैतिक संदेश और अधिक से अधिक एक नियम बनकर रह जायेगी।
समाप्त
---------------
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक
जितेन्द्र शिवहरे
177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
मोबाइल नम्बर
7746842533
8770870151
Jshivhare2015@gmail.com Myshivhare2018@gmail.come
*सामुदायिक धर्मशाला-लघुकथा*
*रा* जेश मिन्नतें करते-करते थक गया था। कड़ाके की ठण्ड में ठिठूरते हुये सामुदायिक धर्मशाला के मैनेजर से वह एक रात बिताने की प्रार्थना कर रहा था। मैनेजर स्पष्ट वादी थी। उसने राजेश से साफ-साफ कह दिया कि यह फलां समुदाय की धर्मशाला है। इसमें संबंधित समुदाय के सदस्य ही ठहर सकते है। वो भी दकदम नि:शुल्क। दरअसल राजेश उस समाज का सदस्य नहीं था जिस समाज की वह धर्मशाला थी। राजेश ने कक्ष के बदले अधिक शुल्क देने की घोषणा तक कर दी। क्योंकि रात गहराती जा रही थी और अन्यत्र गेस्ट हाउस में ठहरने के लिये कक्ष उपलब्ध नहीं थे। वह उस समाज की सदस्यता ग्रहण करने को भी तैयार था जिस समुदाय की वह धर्मशाला थी। क्योंकि उसे स्वयं से अधिक अपने साथ सर्दी में ठिठुर रहे बीवी-बच्चों की अधिक चिंता थी। एक वही धर्मशाला थी जिसमें ठहरने हेतु कक्ष उपलब्ध थे। मैनेजर ने कढ़े स्वर में कह दिया की उसे धर्मशाला के स्वामीयों की और से सख्त निर्देश है कि किसी भी मूल्य पर अन्य समुदाय के सदस्यों को धर्मशाला के कक्ष आबंटित न किये जाये। वाद-विवाद की नौबत आये तो वह सुरक्षा प्रहरियों की सहायता लेने में परहेज न करे। हाथों में लठ्ठ लिये पास ही खड़े सुरक्षा प्रहरियों को देखकर राजेश की रही-सही आस भी समाप्त हो गयी। तब ही मुख्य द्वार से कुछ श्वान बाहर निकलते हुये दिखाई दिये। धर्मशाला के चौकीदार ने बल पुर्वक उन्हें बाहर खदेड़ दिया था। मादा श्वान अपने नवजात शिशुओं के साथ बाहर भागी। नवजातों का करूण रूदन स्पष्ट संदेश था की जब यहां मुक पशुओं के लिये कोई स्थान नहीं है तब राजेश और उसके परिवार के लिये ठहरने की व्यवस्था कैसे हो सकती थी? राजेश के अंतर्मन में विचार आया कि वह स्वयं जिस समुदाय का सदस्य है, उसकी समाजिक धर्मशाला में ठहरने के वही सारे नियम तो थे जो कुछ देर पहले वह मैनेजर उसे गिनवा रहा था। राजेश आत्मग्लानी से भर उठा। वह बीवी-बच्चों संग अन्यत्र ठहरने के स्थान की खोज हेतु निकल पड़ा। चलते-चलते वह सोचने लगा, जब तक सामुदायिक एकता के लिये लड़ने वाले समाजिक लोगों के हृदय में सर्व समाज के लिये एकत्व की भावना नहीं जागेगी तब तक पंथ निरपेक्षता की भावना, केवल एक नैतिक संदेश और अधिक से अधिक एक नियम बनकर रह जायेगी।
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जितेन्द्र शिवहरे
177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
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