आदत-लघुकथा
*आदत-लघुकथा*
*त* निषा ने विनीत से स्पष्ट कह दिया कि वह अपने साथ होने वाले समस्त व्यवहार से समझौता कर सकती है किन्तु बच्चों को वह सभी चाहिए जो उन्हें अपने घर में मिलता है। तनिषा चाहती थी कि उनके दोनों बच्चे बुआ के यहां शादी में अवश्य जाये किन्तु उन दोनो को वहां घर जैसा ही वातावरण मिले। सुबह उठते ही गर्म पानी, हाथ-मुहं धोने के लिये। ज्यूस और नाश्ता समय पर और वह भी उनकी पसंद का। रात को केसरियां दुध और सेपरेट रूम की व्यवस्था होनी चाहिए। तब ही वे तीन दिन शादी वाले घर में वे रूक पायेंगे। विनीत के विचार तनिषा से भिन्न थे। विनीत जानते थे कि उनकी बहन आर्थिक रूप से उतनी संपन्न नहीं है जितना की वह। उन्होंने तनिषा को समझाया। सुविधाएं हमारे लिए साधन मात्र है। सुविधाओं का आदत बना लेना कहा तक सही है? समय एक जैसा कभी नहीं रहता। बच्चे बड़े हो रहे है। उन्हें हर परिस्थिति के लिये तैयार रहना सिखाना चाहिये। इसके लिये उन्हें अंदर से मजबुत होना होगा। जिससे की वे सुविधाओं का मोहताज न बने रहे। मां-बाप बच्चों के साथ आखिर कब रहेंगे? जीवन का बहुत-सा समय बच्चों को अकेले ही बिताना होगा। यदि उन्हें हर मौसम में जीवंत और सक्रिय रहने की आदत होगी तब ही उनका जीवन सुखमय होगा। नहीं तो कठिनाईयों का अंबार ही अंबार होगा। तनिषा के पास अपने पति के इन तर्कों का कोई प्रत्युत्तर नहीं था। चूपचाप वह सामान की पैकिंग में व्यस्त हो गयी।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
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जितेन्द्र शिवहरे
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