एक कहानी/व्यंग्य रोज़-121


*प्लीज़ लाइक शेयर एण्ड कमेंट्स-व्यंग्य*


     *एक* मित्र मुझे फोन पर कह रहे थे की मैं फोन काटे बिना ही उनका स्व-निर्मित सोशल मीडिया पर बनाया गया एक चैनल सब्सक्राइब करूं। लाइक करूं और अच्छे-अच्छे कमेंट्स भी लिखूं। उन्होंने यहां तक कह डाला की घर में जितने भी एन्ड्रोएड फोन है, सभी से उनका चैनल सब्सक्राइब करवा दूं। वह भी हाथो-हाथ। तथा इस काम की पुष्टि भी त्वरित फोन पर उन्हें कर दूं। मुझे उनके प्रस्ताव से कोई ऐतराज़ नहीं था। किन्तु उनका अगला आग्रह मुझे विचलित कर गया। उन्होंने बड़ी ही आत्मीयता से आगे कहा की मैं अपने सगे- संबंधियों और बंधु-बान्धव से भी उनका चैनल सब्सक्राइब करवा दूं। मैंने विचार कर उनसे जानना चाहा की मेरे ऐसा करने से उन्हें क्या लाभ होगा? जवाब में वे कहने लगे की इससे उनकी प्रतिभा अधिकतम लोग प्रत्यक्ष निहार सकेंगे। उत्साहित होकर मैंने आगे पुछा और इससे क्या लाभ होगा? तब वे बोले की इससे उनके द्वारा अपलोड किये जाने वाले वीडीयो को देखने वाले दर्शकों की संख्या बढ़ेगी। और वीडीयो के व्यूह बढ़ने पर उन्हें विज्ञापन मिलने लगेंगे जिससे उन्हें आर्थिक लाभ भी मिलेगा। मैंने पुछा कि आप किसी ऐसे चैनल निर्माता को जानते है, जिसे अपने निजी चैनल के बेहतर प्रदर्शन के बल पर अच्छा आर्थिक लाभ हुआ हो? इतना सुनकर वे कुछ पल मौन हो गये। उनके जवाब भी गोलमोल थे। लेकिन मुझे इतना अवश्य समझ में आ गया की वे महाशय अन्य युवाओं के चैनल्स की बढ़ती लोकप्रियता से प्रभावित है। मीडिया में सोशल मीडिया स्टार्स की कमाई के खबरें और संबंधितों के वीडियो देखकर इन आदरणीय की भी तीव्र अभिलाषा जाग उठी। मुझे भी आभास हुआ कि क्यों न मैं भी अपना स्वयं का चैनल बनाऊं और प्रसारित करूं। लाॅकडाउन में वैसे भी घर बैठे था। कोई काम-धाम तो था नहीं। फिर क्या था, सोशल मीडिया पर बना लिया अपना भी एक चैनल। उसमें कुछ अच्छे वीडियो भी अपलोड कर दिये। मगर व्यूह बढ़ाना आवश्यक था। मुझे अपने उन दोस्तों की याद आई जिनके वीडियो मैं पहले ही सब्सक्राइब कर चूका था। मैंने तुरंत उन्हें लिंक भेजी और अपने चैनल को सब्सक्राइब करने की मार्मिक अपील कर डाली। जो मित्र मेरे खासमखास थे उन्होंने तुरंत मेरा चैनल सब्सक्राइब कर लिया। लेकिन अब भी बहुत से ऐसे मित्र थे जिन्होंने मेरे द्वारा भेजी गयी लिंक को देखा तक नहीं था। कुछ ने केवल लिंक को क्लिक भर कर इतिश्री कर ली थी। पलभर उन्होंने मेरे वीडियो देखे भी नहीं। उन्हें तो मेरे वीडियो के सिर्फ व्यूह बढ़ाना था। न लाइक न कमेन्ट्स। किसी ने लाइक किया तो सब्सक्राइब नहीं किया। और जिसने सब्सक्राइब किया उहने लाइक नहीं किया। बड़े दिनों के बाद भी चैनल पर व्यूह सौ-दो से आगे नहीं बढ़ रहे थे। एक अन्य दोस्त ने राय दी कि किसी साइबर हेकर से बात करूं। वो कुछ रूपये लेकर मेरे चैनल के सब्स्क्राइबर और व्यूह दोनों बढ़ा देगा। ऐसे हेकर को ढूंढकर भी वही लाया। हजारों रूपये मैंने वहां खपा दिये। मगर मेरा चैनल था कि अपनी आखिरी सांसे गिन रहा था। न चैनल के व्यूह बढ़ रहे थे और न ही सब्स्क्राइबर।

धीरे-धीरे मुझे समझ में आ गया की समाज में तेजी से फैल रही इस आधुनिक ठगी का मैं भी शिकार हो गया हूं।


समाप्त 

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


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लेखक--

जितेन्द्र शिवहरे 

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