अफेयर
एक कहानी रोज़ -124
*अफेयर*
*अनन्या* को अंकित पर श़क तब ही हो गया था जब उसकी शर्ट पर एक ब्राउन कलर का बाल मिला। किन्तु तब उसने इसे मन का वहम समझकर इग्नोर करना ही उचित समझा। किन्तु सुहानी जब भी अंकित को फोन करती तब वह बात करते समय सावधान हो जाता। अंकित देर रात तक सुहानी से व्हाटसप पर पर चैंटिंग करता। अनन्या के कुछ बोलती तो अंकित चौंकने जाता। तब अनन्या को विश्वास हो गया की यह सुहानी ही थी। जिसके साथ अंकित का अफेयर चल रहा था। अनन्या अंदर ही अंदर जल-भून रही थी। वह अंकित से उखड़ी-उखड़ी रहने लगी। उसे मात्र प्रमाण की आवश्यकता थी जिसके बल पर वह अंकित और अनन्या के अफेयर को सावर्जनिक कर सके। चूंकि वह स्वयं नौकरी पेशा थी सो स्वयं अधिक कुछ नहीं कर सकती थी। इसके लिए उसने अपने ऑफिस के दोस्त मंयक से सहायता मांगी। मंयक इसके लिये तैयार था। उसे अनन्या आरंभ से ही अच्छी लगती थी। वह अनन्या से ही शादी करना चाहता था किन्तु अनन्या को अंकित पसंद आया जिसके कारण मयंक उन दोनो के रास्ते से हट गया। मयंक जानता था कि अंकित और अनन्या का वैवाहिक रिश्ता ठीक नहीं चल रहा है। उसे अंकित के स्वभाव का पुर्व ज्ञान था। जिसकी जानकारी उसने अनन्या को विवाह पुर्व दी थी। किन्तु अनन्या को विश्वास था कि अंकित शादी के बाद सभी पुरानी अनैतिक आदतें छोड़ देगा। किन्तु ऐसा नहीं हुआ। अंकित को भी श़क होने लगा था कि अनन्या को उसके अफेयर की भनक लग गयी है। इसी कारण वह अब पहले से अधिक सावधानी बरतने लगा।
"हम चाहे तो उन दोनों को रंगें हाथ पकड़ सकते है।" सुहानी और अंकित की फोन डिटेल अनन्या के हाथ में देते हुये मंयक बोला।
"नहीं मयंक! इस बात के कारण अंकित से अधिक सुहानी की बदनामी होगी।" अनन्या बोली।
"सुहानी से अधिक तुम्हें अंकित की चिंता होनी चाहिए।" मंयक ने कहा।
"हां लेकिन, सुहानी अभी अन मेरिड है। हो सकता है उसे अंकित के विषय में पता ही न हो की वो शादी शुदा है?"
"ये तो और भी अच्छी बात है। हम उसे बता देते है।" मंयक उत्साहित था।
"बतायेंगे। पर पुरी योजना के साथ।" अनन्या ने अंकित को अपनी योजना बताई। अंकित मुस्कुरा दिया। अनन्या निश्चिंत होकर घर लौट आई।
रविवार का दिन था। अंकित अपने बेटे के साथ खेल रहा था। अनन्या रसोई में चाय-नाश्ता बना रही थी। तब ही मयंक अपने साथ सुहानी को लेकर वहां आ धमका।
अंकित अपने सम्मुख सुहानी को देखकर भौंचका रह गया। उसके पसीने छूटने लगे। वह मंयक पर क्रोधित था। अनन्या वहां आ पहूंची।
"बैठो सुहानी। चाय पीओगी?" अनन्या ने कहा।
"जी नहीं! थैंक्स। बट आपने मुझे यहां क्यों बुलवाया है?"
"सब बताती हूं थोड़ा धर्य रखो।" अनन्या ने बेटे विशु को बाहर गार्डन में खेलने भेज दिया।
"आप दोनों यह अवश्य समझ चूके होंगे कि मुझे आपके अफेयर की पुर्ण जानकारी है।" अनन्या बोली।
सुहानी सहम गयी। अंकित भी सकते में था।
"मैं चाहती तो इस समस्या को बीच सड़क पर भी हल कर सकती थी। मगर इससे पहले मुझे लगा सिर्फ एक बार आप दोनों से बैठकर बात करूं।"
"अनन्या बात को यहीं खत्म करते है। मुझसे गलती हुई है आई नो। आई एम साॅरी।" बात को संभालते हुये अंकित बोला।
"देखा सुहानी। अभी तो मैंने कुछ किया भी नहीं और अंकित ने अपनी भूल स्वीकार कर ली। तुम ऐसे व्यक्ति से प्यार करती हो जो एक पल भी मेरे सामने ठहर नहीं सका। ये दुनिया के सामने तुम्हें स्वीकार करेगा?" अनन्या की बातें चूभन से भरी थी।
"और फिर मान लो अंकित तुम्हें अपना भी ले, तब इस बात की क्या ग्यारंटी है कि किसी और के लिये वह तुम्हें नहीं छोड़गा? जैसे तुम्हारे लिये वह मुझे छोड़ने को तैयार हो गया है।" अनन्या बोली।
सुहानी का सिर स्वतः ही झुक गया। उसे अफसोस था कि सबकुछ जानते हुये भी उसने अंकित से प्रेम किया।
"सुहानी! किसी के बसी हुई गृहस्थी उजाड़ कर क्या तुम प्रसन्न रह सकोगी?" मंयक बोला।
"मैं स्वयं अनन्या से बहुत प्रेम करता था। आई मीन अब भी करता हूं। लेकिन प्रेम सिर्फ एक-दूसरे के साथ रहना ही तो नहीं है न।" मंयक बोला।
"मयंक और मैं हम दोनों शादीशुदा है। हम चाहते तो शादी के बाद भी अफेयर रख सकते थे। मगर नहीं। अपने जीवनसाथी के प्रति निष्ठापूर्वक साथ देने का वचन हमने अपने-अपने जीवनसाथी को दिया है। इस बात से कैसे मुकर जाते? नियमों का पालन तो सभी को करना ही चाहिए!"
अनन्या की बातों ने सुहानी की आंखें खोल दी। वह शर्मिंदा थी। अंकित को देखकर अंदाजा लगया जा सकता था कि वह भी पश्चाताप की आग में जलकर रहा था।
"आई एम साॅरी अनन्या। मैं अपनी गलती मानता हूं। भविष्य में ऐसा नहीं होगा मेरी बात का विश्वास करो।" अंकित ने दृढ़ता से कहा।
"विश्वास दोबारा बनाना सरल नहीं है अंकित। फिर भी मैं अपने रिश्ते को एक अवसर अवश्य दूंगी। किन्तु कहीं यह सब दोबारा हुआ तो परिणाम के जिम्मेदार तुम स्वयं होंगे।" अनन्या ने अपना निर्णय सुना दिया था। भीगी पलकों के साथ सुहानी वहां से विदा हुई। वह मयंक और अनन्या के प्रति कृतज्ञ थी जिन्होंने उसे सद्ममार्ग दिखाने का पुनित कार्य किया। मयंक, अनन्या और अंकित को भावी शुभकामनाएं देकर वहां से लौट गया। विशु बाहर से खेलकर द्वार पर आ खड़ा हुआ। अनन्या ने आगे बढ़कर विशु को बांहों में उठा लिया। वह विशु को नाश्ता खिलाने में व्यस्त हो गयी।
समाप्त
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प्रमाणीकरण-- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
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लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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