*एक कहानी रोज़-133*
*बांहों में-लघुकथा*
*"क्या* कहा! कहीं तुम पागल तो नहीं हो गयीं!" नमन ने ऐश्वर्या से कहा।
"क्यों! मैंने ऐसा भी क्या कह दिया!" ऐश्वर्या नमन की आंखों में आंखें डालकर बोली।
"और नहीं तो क्या! तुम्हें अपनी बाहों में उठाऊँ! कोई मज़ाक है क्या!" नमन मस्ती के स्वर में बोला।
"तो तुम कहना चाहते हो, मेरा वज़न ज्यादा है!" ऐश्वर्या ने नमन से कहा।
"ज्यादा नहीं! बहुत ज्यादा है!" नमन बोला।
"क्या कहा! अच्छा ठीक है! अब हम यहां से तब ही जायेंगे जब तुम मुझे अपनी गोद में उठा लोगे।" ऐश्वर्या ने मुंह फुला लिया। वह नमन की ओर पीठ कर बैठ गयी।
"ये क्या बचपना है ऐश्वर्या!" नमन अब चिढ़ने लगा था।
"बचपना ही सही! पहले-पहले तो मेरी कोमल काया के दिवाने बने घुमते थे। कहते थे मेरी जैसी दुसरी नहीं। और अब मुझे मोटी कह रहे हो।" ऐश्वर्या के नखरे देखते ही बनते थे।
"ऐश्वर्या! ये पब्लिक प्लेस है! यहां ये सब मत करो!" नमन गिड़गिड़ाया।
"तुम्हें डर लगता है तो तुम डरो! मुझे किसी का डर नहीं है!" ऐश्वर्या बोली।
"अच्छा बाबा! तुम जीती मैं हारा। मैं तुम्हें अपनी बाहों में उठाऊँगा।" नमन बोला।
"सच! ओह! तुम कितने अच्छे हो नमन! आई लव यू! वन मिनिट!" ऐश्वर्या बोली। वह उठकर समीप खड़ी एक युवती के पास गयी। अपना मोबाइल उसे देकर फोटो खींचने की प्रार्थना की।
"ओके नमन! तुम तैयार हो!" ऐश्वर्या ने कहा।
"हां!" नमन खड़ा हो चुका था।
"तो उठाओ मुझे।" ऐश्वर्या ने कहा।
चाट चौपाटी पर आती-जाती लोगों की भीड़ को नज़र अंदाज कर नमन ऐश्वर्या के पास आया। ऐश्वर्या उसे ही देखे जा रही थी। हाथ में मोबाइल थामे पास ही खड़ी युवती रेडी पोजिसन में थी।
नमन ऐश्वर्य के बिल्कुल पास आ चुका था। उसने अपना एक हाथ ऐश्वर्या की पीठ पर और दुसरा हाथ उसके पृष्ठ पैरों पर रखा। स्वयं को झुकाकार थोड़ा जोर लगाया। अगले ही पल ऐश्वर्या नमन की बाहों में खेल रही थी। आते-जाते लोग इस लव बर्ड्स को देखकर प्रसन्नता व्यक्त करने लगे।
"नमन! क्या वाकई में मैं इतनी भारी हूं।" ऐश्वर्या ने नमन से पूछा।
"नहीं डीयर! मैं तो मज़ाक कर रहा था। तुम्हें तो मैं सारी जिन्दगी अपनी बाहों में उठाकर चल सकता हूं।" नमन रोमेन्टिक था।
"तो चलो! उस चाट के ठेले पर मुझे अपनी बाहों में उठाएं ले चलो!" ऐश्वर्या बोली।
"ओके जान!" कहते हुये नमन ऐश्वर्या को अपनी बाहों में उठाएं चाट के ठेले की ओर चल दिया।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
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लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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