*एक कहानी रोज़-134* (27/08/2020)
*पर-संबंध*
*रामनगर* में अभी-अभी रहने आये नवविवाहित बेमेल जोड़े को देखकर कोई भी इसे पचा नहीं पा रहा था। देखने भर से लगता था कि विवाहित पुरूष अपनी पत्नी से आयु में कम से कम से दस-बारह वर्ष तो अवश्य छोटा होगा। नवयुवक की पत्नी भरे-पुरे शरीर की स्वामिनी और अनुभवी अधेड़ महिला थी तो वहीं युवक जो बीस-बाइस साल का हाल ही में प्रथम प्यार में डुबे किसी आशिक की तरह वेशभुषा धारण करने वाले नौसिखिये से कम नहीं था। उस पर आये दिन दोनों के मध्य की किचकिच और परस्पर लड़ाई-झगड़े की कर्कश ध्वनी से रहवासी परेशान हो उठे। अपने पुराने रहवास एरिया में दोनों आमने-सामने ही रहते थे। महीला विवाहिता होकर दो किशोरावस्था के बच्चों की माता थी तो वही युवक अभी-अभी परिणय बंधन में बंधा था। चंद माह में ही युवक के पिता बनने की खब़र ने सभी को चौंका दिया था। इस बीच युवक और उस अधेड़ आयु की महिला का प्रेम प्रसंग इतना आगे बड़ा की दोनों अपना बसा-बसाया घर त्याग कर एक-दुसरे के साथ भाग खड़े हुये। सम्पूर्ण मोहल्ले में इस अजब प्रेम की गजब कहानी चर्चा का विषय बनी हुयी थी। महिला का पुर्व पति और दोनों बच्चें घर में दुबके बैठे थे। वे लोग किसी से मिलने-जुलने का साहस तक नहीं जुटा पा रहे थे। घर छोड़कर परस्त्री के साथ भागे युवक की पत्नी ने तो सारे मोहल्ले को रणक्षेत्र बना दिया था। हाथ में छ: माह की बच्ची को लेकर वह अपने ससुराल और ससुराल के लोगों पर बिफर पड़ी। पुलिस को बुलाया सो अलग। आखिरकार शर्मसार उस विवाहित पुरूष को अपना घर-बार छोड़कर गांव जाना पड़ा।
इधर ये दोनों बेमेले पति-पत्नी का तमगा हासिल कर यहां से वहां भाग रहे थे। जब अंध प्रेम का नशा उतरा तब दोनों ही आत्मग्लानी से भर उठे। खूब जी भर के रोये भी। युवक भागना चाहता था किन्तु महिला के क्रोधित स्वभाव के आगे उसकी एक न चली। उसने झुकना ही उचित समझा। दोनों ही घुट-घटकर जी रहे थे। आत्मदाह भी नहीं कर सकते थे क्योंकि उनके अंदर इसका भी साहस नहीं था। युवक चिंता में सूखकर कांटा हुआ जा रहा था। अपना घर बार और बसा बसाया कारोबार छोड़ कर घर से भागना उसके जीवन का सबसे बड़ा गल़त कदम सिद्ध हुआ था। जिसने उसे आर्थिक और सामाजिक रूप से बर्बाद कर दिया। नये शहर में मात्र मजदुरी के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था। दो वक्त की रोटी की व्यवस्था भी बमुश्किल हो पा रही थी। महिला को अपने इस नये जीवन साथी पर तनिक भी भरोसा नहीं था। वह उसे छोड़कर कब भाग जाये, इसी आशंका में वह हर समय युवक के साथ ही रहती। युवक स्वयं को बंधुवा मजदूर मान चुका था। जिसकी प्रत्येक सांस पर उसकी दूसरी पत्नी का एकाधिकार था। रात-रात भर वो सो नहीं पाता। मारे डर के वह आधी रात में जागकर उठ जाता। उसकी दशा देखकर महिला भी विचलित होने लगी। ऐसे में कहीं उस युवक को कुछ हो गया तो सारा श़क उस महिला पर ही जायेगा। 'अच्छा होगा इस समस्या को कोई यथोचित मार्ग ढुंढा जाएं।' महिला ने सोचा।
अंततः युवक और उस महिला ने आपसी सहमति से एक जोखिम उठाने का निर्णय लिया। दोनों अपने-अपने पुराने जीवनसाथी के पास जाकर पश्चाताप करेंगे। अपने अपराध की क्षमा मांगेंगे। इस तरह की गलती दोबारा नहीं होगी ऐसा विश्वास दिलाने की पुरी कोशिश करेंगे। इन सबके बाद भी यदि उन्होंने दोनो को स्वीकार नहीं किया तब वर्तमान परिस्थिति को स्वीकार कर दोनों स्वेच्छा से अलग-अलग होकर अपना शेष जीवन बितातेंगे।
युवक और उस महिला ने अतुलनीय साहस का परिचय देकर अपने-अपने पुर्व जीवन साथी के कदमों में अपना सिर रख दिया। अपनी भूल की क्षमा मांगी। बहुत रोये और नाक भी रगड़ी। रहवासियों और पंचों में सलाह-मशवरा का एक पुरा दौर चला। दोनों के बच्चों की खातिर सभी ने युवक और महिला को अपनी-अपनी गृहस्थी में पुनः प्रवेश देने का एक अंतिम अवसर देना ही उचित उपाय ठहराया।
दोनों के पुर्व पति-पत्नी इस हेतु तैयार नहीं थे। समय लगा किन्तु बच्चों के भविष्य को दखते हुये उन्होंने यह कड़वा घुंट पीना ही उचित समझा। युवक अपनी पुर्व पत्नी के साथ अन्य क्षेत्र में जा बसा। वहीं वह विवाहित महिला भी अपने पुर्व पति के साथ अन्यत्र किसी मोहल्ले में रहने लगी जहां उसे और उसके परिवार के लोगों को कोई जानता-पहचानता नहीं था।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
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लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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