तुम मेरे हो (भाग 1-2)
*तुम मेरे हो-कहानी* 1
*एक कहानी रोज़-231 (02/11/2020)*
*आज* ऑफिस से लौटते हुये भूमि को कुछ ज्यादा ही लेट हो गया था। फ्लैट परिसर की पार्किंग में स्कूटर पार्क करते समय भूमि की एक कोने पर नज़र पड़ी। वह युवक डरा सहमा था। भूमि ने ध्यान से देखा। उसने गार्ड को आवाज़ लगाई। गार्ड दौड़ते हुये आया।
"क्या हुआ मैडम जी!" गार्ड ने पुछा।
"देखो वहां! कोई है?" भूमि ने कहा।
"अरे! ये फिर आ गया। सुबह भी भगाया था इसे। जाने कब आकर यहां छिप गया, पता ही नहीं चला?" गार्ड ने कहा।
भूमि अब भी युवक की तरफ देख रही थी। युवक की आंखें भी भूमि की तरफ थी। वह भूमि में जाने क्या ढुंढ रही थी? देखने भर से लगता था, युवक अच्छे घराने से है। शायद घर से भागकर आया था। उसके बर्ताव से लगा कि युवक में कुछ मानसिक कमी भी अवश्य थी। गार्ड उसे हाथ से पकड़कर परिसर के बाहर खींचकर ले जाने लगा। युवक ने झटके से अपना हाथ छुड़वाया और दौड़कर भूमि से जा चिपका। भूमि कुछ भी समझ न सकी। वह युवक को अपने से दूर करने की कोशिश कर रही थी। गार्ड दौड़कर आया और युवक को भूमि से अलग किया।
"जाने दो मैडम! पागल है। इसे पता नहीं है कि यह क्या कर रहा है? ऐ चल! निकल यहां से। खबरदार! जो अब यहां आया तो।" गार्ड ने युवक को धमकाया।
युवक जाते-जाते अब भी पलटकर भूमि को ही देखे जा रहा था। स्वयं भूमि भी तब तक वहां खड़ी रही जब तक युवक उसकी नज़रों से ओझल नहीं हो गया। युवक का स्पर्श उसे अंदर तक हीला गया। इस अपनत्व को पाकर भूमि फूंली नहीं समा रही थी।
खाना-खा पीकर भूमि सोने की तैयारी में थी। फ्लैट की खिड़की के पास आकर वह सिगरेट फूंकने लगी। भूमि ने नीचे झांका। उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ। युवक बाहर था और नीचे खड़ा होकर उसे ही देख रहा था। भूमि ने संकेतों में उसे वहां से जाने को कहा। युवक साफ मुकर गया। तब भूमि ने संकतों में ही पुछा की उसे क्या चाहिये? युवक पेट पर हाथ फेरने लगा। भूमि ने उसे कुछ देर प्रतिक्षा करने को कहा। घर में पिज़्जा के कुछ पीस बचे थे। पिज्जा पैकेट को ठीक से बंद कर भूमि ने उसे खिड़की में ही से नीचे फेंक दिया। जिसे युवक ने कैच कर पकड़ लिया। भूमि ने पानी की बाॅटल भी नीचे फेंक दी। युवक जल्दी-जल्दी पिज्जा खा रहा था। उसने पेटभर कर पानी भी पिया। इसके बाद युवक वही नीचे लेट गया। भूमि ने उसे मना किया कि वह यहां न सोये। इतनी ठण्ड में खुले में वह कैसे सो सकेगा? मगर युवक नहीं माना। वह नीचे ही लेट गया। पैरों को पेट की तरफ मोड़कर हाथ दबाते हुये वह सोने लगा। भूमि व्याकुल हो उठी। उसका मन किया कि नीचे जाकर उसे कंबल दे आये। मगर फिर सोचा उसे अपने फ्लैट में ले आये।
'ऐसा ही करती हूं। सुबह उसका पता ठिकाना ढुंढकर उसे वहां पहूंचा दूंगी।' भूमि ने निश्चय किया।
वह लिफ्ट से नीचे ग्राऊन फ्लोर पर उतरी।
"रहने दीजिये मैडम जी! लड़का पागल है। कहीं आपकों कुछ कर दिया तो?" गार्ड ने भुमि को चेतावनी दी।
भूमि ने सुना-अनसुना कर दिया। युवह का हाथ पकड़कर वह उसे अपने फ्लैट में ले गयी। भंमि ने उसे बेड पर सोने को कहा। युवक ने मना कर दिया। भूमि उसे समझाने लगी की रात बहुत हो गयी, अब उसे सो जाना चाहिये।
"गाना सुनाओ! मुझे तब ही नींद आयेगी।" युवक सहमते हुये बोला।
"मोबाइल में सुना दूं?" भूमि ने पूछा।
"नहीं! तुम अपने मुंह से गाओ।" युवक बोला।
भूमि गीतों की शौकीन थी। मगर आवाज़ इतनी अच्छी भी नहीं थी की कोई गीत गुनगुनाने में गर्व महसुस करे। किन्तु युवक की जिद के आगे उसने घुटने टेक दिये
"हम तेरी मोहब्बत यूं पागल रहते है-2
दीवाने भी अब हमको दीवाना कहते है।" भूमि ने मुखड़ा गाना शुरू किया।
युवक के चेहरे पर क्रोध के भाव उभर आये। अगले ही पल उसने भूमि को एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। भुमि के लिए यह महान आश्चर्य की घड़ी थी। वह हैरान थी। एक पल को उसका मन किया कि वह युवक के गालों पर तमाचा जड़ कर हिसाब पूरा करे दे। मगर फिर स्वयं को जैसे-तैसे शांत किया। वह अपने गाल पर हाथ रखे युवक की मन:स्थिति समझने का प्रयास कर रही थी। इतने में वह युवक उठकर एक कोने में दुबककर बैठ गया। भुमि को समझ नहीं आया की वह क्या करे क्या न करें?
"तुम्हारा नाम क्या है?" भुमि ने युवक से पूछा। युवक अब भी दुबककर बैठा था। भूमि ने स्नेह भरा हाथ उसके कंधे पर रखा। युवक ने पलटकर देखा। वह उठ खड़ा हुआ। भूमि ने हाथों का सहारा देकर युवक को बेड पर बिठाया। पास में वह भी बैठ गयी।
"तुम्हारा नाम क्या है?" भूमि ने फिर से वही प्रश्न पूछा।
"विsssशाल!" युवक ने सहमते हुये बताया।
"अरे वाह! विशाल तो अच्छा नाम है?" भूमि ने कहा।
विशाल प्रसन्न था। उसने भूमि की गोद में अपना सिर रख दिया। भूमि असहज जरूर थी। मगर फिर स्वयं को समझाते हुये वह विशाल के सिर पर स्नेह भरा हाथ फेरने लगी। उसे स्वयं पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके हृदय में विशाल के लिए इतना प्रेम कैसे उमड़ रहा है? जैसे वह खुद पर नियंत्रण खो चुकी हो और कोई है जो उससे यह सब करवा रहा हो।
विशाल को नींद आ चुकी थी। थकी-हारी भूमि भी उसके पास ही सो गयी
क्रमशः ..........
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
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लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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*तुम मेरे हो-कहानी* 2
*एक कहानी रोज़-232 (03/12/2020)*
अब आगे .........
*"। सुबह नौ बजे डोर बेल बज उठी। भूमि ने उठकर देखा आसपास कोई नहीं था। दरवाजे पर भूमि की सहेली मानसी थी। दोनों यहीं से एक साथ जाॅब पर जाया करते थे।
"क्या हुआ भूमि! दरवाजा खोलने में इतनी देर?" मानसी बोली।
"हां यार! रात में देर से सोई थी। इसीलिए आंख लेट खुली।" भूमि ने दरवाजे पर रखा दुध और अखबार उठाते हुये कहा। वह हाथों से अपना जुड़ा बांधने लगी।
"क्या हुआ भूमि! रात में तेरे साथ कोई था क्या?" मानसी ने पूछा।
"वो sss हां।" भूमि ने कहा।
"क्या! आशुतोष?" मानसी ने पूछा।
"नहीं रे!" वो दरअसल बात यह हुई.......!" भूमि ने मानसी को रात वाली घटी घटना विस्तार से बताई।
"तो अभी कहाँ है विशाल?" मानसी ने पूछा।
"पता नहीं यार! रात में तो यही था मेर साथ। सुबह होते ही पता नहीं कहा चला गया? शायद टाॅयलेट में हो।" भुमि ने संदेह व्यक्त किया। भूमि ने टाॅयलेट का गेट खोलकर देखा। वह वहां भी नहीं था।
मानसी ने अंदर के कमरें में देखा।
"मानसी तू चाय बना मैं ऊपर टेरिस पर देखकर आती हूं। शायद विशाल ऊपर हो।" भूमि ने कहा। और वह दरवाजा खोलकर ऊपर टेरिस पर जाने लगी।
बहुत ढुंढने पर भी विशाल नहीं मिला। गार्ड को भी पता नहीं था कि विशाल कहाँ गया? थक-हार कर भूमि अपनी सहेली मानसी के साथ ऑफिस के लिए निकल पड़ी। उसके दिमाग में विशाल ही छाया था। वह चाहकर भी उसे वहां से निकाल नहीं पा रही थी। उसे विशाल पर मन ही मन गुस्सा भी आ रहा था। जाना ही था तो उसे बोलकर चले जाता। वह उसे रोकती थोड़े ही। मगर नहीं। विशाल के बिना बताए घर से चले जाने के कारण भुमि व्याकुल हो उठी। ऑफिस में दिन-भर वो विशाल के ही विषय में सोचती रही। मानसी ने बहुत समझाया की ज्यादा तनाव न ले। विशाल से उसका कोई नजदीकी रिश्ता थोड़े ही है जो वह उसके लिए इतना परेशान हो रहो है। मानसी की बातें सही थी। लेकिन फिर भी जाने क्यों भूमि विशाल को भूल नहीं पा रही थी।
शाम को स्कूटर पार्क करते समय भूमि ने उसी जगह पर अच्छी तरह घूरकर देखा, जहा कल उसे विशाल बैठा मिला था। लेकिन आज वहां कोई नहीं था। वह निराश थी। लिफ्ट पर चढ़कर वह अपने फ्लैट के दरवाजे पर जा पहूंची। दरवाजा खोलकर वह अंदर दाखिल हुई। टीवी ऑन थी। यह देखकर वह हैरान हो उठी। और इससे भी हैरानी की बात यह थी सोफे पर बैठा विशाल ही टीवी पर कार्टून फिल्म देख रहा था। वह लपककर विशाल के पास पहुंची।
"विशाल तुम!" भूमि चिखी।
विशाल खड़ा हो गया।
भुमि ने उसके गालों पर एक थप्पड़ लगाया। लेकिन विशाल मायुस नहीं हुआ। वह हंस रहा था।
"कल मैंने तुम्हें थप्पड़ मारा था, आज तुमने मुझे मार दिया। हिसाब बराबर! फ्रेण्डस्!" विशाल ने हाथ आगे बढ़ाते हुये कहा।
भूमि दौड़कर विशाल के गले लग गयी।
"आई एम साॅरी! तुम्हारे जाने के बाद मैं अपसेट हो गयी थी। मैंने तुम्हें थप्पड़ मारा इसके लिए मुझे माफ कर दो।" भूमि ने कहा।
"ओके! माफ किया। अब जल्दी से खाना दो! मुझे भूख लगी।" विशाल ने कहा।
"हां देती हूं। मगर मुझे एक बात बताओ!" भुमि, विशाल से अलग होकर बोली।
"क्या?" विशाल ने पूछा।
"तुम कहां चले गये थे?" भूमि ने पूछा।
"बस युं ही! बाहर घुमने चला गया था।" विशाल ने मासूमियत से कहा।
"लेकिन अब प्राॅमिश करो! अब यहां से कहीं नहीं जाओगे?" भूमि ने कहा।
"ओके! गाॅड प्राॅमिश! मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा।" विशाल भूमि के गले से लगकर बोला।
भूमि और विशाल ने साथ में खाना खाया। विशाल को बेड पर सोने का बोलकर भूमि सोफे पर लेट गयी। रात में कई बार उसने उठकर विशाल को देखा। वह शांति से सो रहा था।
"मगर भूमि! तुम कब तक विशाल को अपने पास रखोगी? आखिर उसके परिवार वाले परेशान हो रहे होंगे।" मानसी ऑफिस के लंच टाइम में बोली।
"मैंने कुछ सोचा है। क्यों न एक बार विशाल को डाॅक्टर को दिखाया जाये? हो सकता है वह ट्रीटमेंट से ठीक हो जाये और उसे अपने घर का एड्रेस याद आ जाये?" भूमि ने कहा।
"ठीक है। हम कल ही उसे किसी अच्छे साइकाईट्रैस के पास ले चलते है।" मानसी बोली।
"ठीक है। और शाम को लौटते समय विशाल के लिए कुछ कपड़े भी खरीदने है।" भूमि बोली।
"ओके बाबा! ऑफिस ऑफ टाइम से आधा घण्टा पहले निकल चलेंगे।" मानसी बोली।
नये कपड़े पहनकर विशाल बहुत खुश था। मगर डाॅक्टर को देखकर ही वह भूमि से लिपट गया। उसे डर था कहीं डाॅक्टर उसे इंजेक्शन न लगा दे? मानसी और भूमि दोनों ही उसे समझा रहे थे। डाॅक्टर ने विशाल को एक बड़ी सी चाॅकलेट दी। विशाल ने खुश होकर वह चाॅकलेट ले ली। डाॅक्टर ने विशाल से कुछ सवाल-जवाब किये। उसे कुछ च़ीजे दिखाकर उनका नाम पुछा। सामान्य ज्ञान के प्रश्नों का उत्तर देकर विशाल ने सभी को चौंका दिया।
"प्रारंभिक जांच पड़ताल के बाद मैं अभी सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि किसी चीज़ या कोई सपना पुरा न होने के कारण विशाल सदमे में आकर ऐसा बर्ताव कर रहा है। अदरवाइज वह बचपन से ऐसा नहीं है, यह मैं दावे के साथ कह सकता हूं। यदि वह चीज जो विशाल को न मिली हो उसे पुरी करने में हम सब विशाल की मदद करे तो वह जल्दी ठीक हो सकता है।" डाॅक्टर ने बताया।
"मगर वह क्या चीज़ है जिसे विशाल पाना चाहता था? वह हमें कैसे पता चलेगी?" मानसी ने पुछा।
"प्यार और स्नेह से।" डाॅक्टर बोले।
"मेरा मतलब है कि आप लोग प्रेम और स्नेह का ऐसा वातावरण बनाये कि विशाल स्वयं बता दे कि उसे क्या चाहिये?" डाॅक्टर बोले।
क्रमशः ...........
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
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