तुम मेरे हो भाग 5-6

 


*तुम मेरे हो-कहानी* 5


*एक कहानी रोज़-235 (08/12/2020)*


     *मानसी* ने सबसे पहले अपनी प्रिय सहेली भूमि को फोन पर हरीश के विषय में बताता। किस तरह उसने हरीश को प्रपोज किया और किस तरह से हरीश ने स्वीकार किया, सब कुछ विस्तार से बताया। अनुराग की हार पर तो वह बड़ी प्रसन्न थी। इतना ही नही, हरीश स्वयं उसके पीछे स्कूटर पर बैठकर घर तक गया। भूमि भी अपनी सहेली की प्रसन्नता पर प्रसन्न थी।

"तब तूने क्या निर्णय लिया?" भूमि ने मानसी से पूछा।

"किस बात का?" मानसी ने पूछा।

"यही की हरीश को तेरे लिए बदलना चाहिये या नहीं!" भूमि ने काॅफी कप मुंह से लगाया।

दोनों रैस्टोरेंट में आये हुये थे। विशाल भी वही बैठा था। बिल्कुल चुपचाप।

"पता नहीं यार! लेकिन मैंने सोचा है हम-दोनों एक-दुसरे की निजी स्वतंत्रता पर रोक-टोक नहीं लगायेंगे। उन्हें जो सही लगता है वे करे और मुझे जो सही लगता है मैं करूंगी।" मानसी बोली।

"देट्स अ गुड आइडिया।" भूमि बोली।

"लेकिन ये आज विशाल को क्या हुआ है? ये क्यों गुमसुम बैठा है?" मानसी ने पुछा।

"तू ही पूंछ ले। मैं तो समझा-समझा कर हार गयी इसे।" भूमि बोली।

विशाल ने मानसी को बताया कि वह आगे पढ़ना चाहता है। उसे लाल बत्ती वाली सरकारी गाड़ी में बैठना है। विशाल को शुरू से ही सरकारी अफसरों की गाड़ीयां आकर्षित करती थी। वह जब भी इन कारों का साइरन सुनता, टकटकी लगाये बस देखा करता। विशाल की पढ़ने की ख्वाहिश के आगे मानसी ने हार मान ली। उसने भूमि को ही समझाया कि वह उसे पढ़ने दे। भूमि ने सहमती दे। एक प्रतिष्ठित कोचिंग सेन्टर ने विशाल का इन्टरव्यू लिया। विशाल के जवाबों ने उपस्थित सभी को हतप्रद कर दिया। विशाल को सेन्टर ने आईएएस की तैयारी के लिए चुन लिया। मगर कोचिंग की फिस सुनकर भूमि और मानसी के होश उड़ गये। दस लाख रूपये की व्यवस्था करनी थी। विशाल सपने देख रहा था। उसे किसी भी किमत पर आईएएस बनना था। उसके जुनून के आगे भूमि ने अपना फ्लेट गिरवी रख दिया। मानसी ने बहुत समझाया की अगर सिर पर छत नहीं रही तो भूमि कहां जायेगी? लेकिन भूमि ने एक न सुनी। कोचिंग सेन्टर पर दस लाख रूपये जमा कर भूमि ने विशाल की स्टडी आरंभ करवा दी। वह विशाल को सुबह छोड़कर शाम को लेने भी आती। विशाल देर रात तक स्व-अभ्यास करता। भूमि उसकी हर जरूरतें पुरी कर रही थी।

कुछ महिने बाद विशाल की मुख्य परिक्षा थी। उसने प्रारंभिक परिक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। लेकिन जब से उस रात विशाल ने भूमि को टाॅवेल में देखा था, वह दिग्भ्रमित हो चुका था। पढ़ाई में उसका मन ही नहीं लग रहा था। युवा विशाल के मनोभाव को भूमि समझने लगी थी। उसने प्रेम से विशाल को समझाया लेकिन वह समझने को तैयार न था। उसे तो बस भूमि को छुना था। उससे लिपटना था। भुमि जान चुकी थी कि यदि विशाल के मन की न हुई तो निश्चित वह मद से चूर होकर मदमस्त युवा हाथी की तरह स्वयं और दूसरों को नुकसान पहूंचा सकता है। विशाल पर दवाईयां भी असर नहीं कर रही थी। और फिर भूमि ने वह किया जो एक कुंवारी लड़की कभी नहीं करना चाहेगी। उस रात विशाल टेबल पर लैम्प   की रौशनी में पढ़ाई करने की कोशिश कर रहा था। वह बार-बार बाथरूम के गेट पर देखने लगता जिसके अंदर भूमि नहा रही थी। गहराती रात के बिच बाथरूम का गेट खुला। बालों से टपकती पानी की बूंदों को लेकर अर्धतन पर टावेल लपटे भूमि बाहर निकली। विशाल के माथे पर पसीने की बूंदे तैरने लगी। वह उठ खड़ा हुआ। कभी नजरे झुकाता तो कभी पुनः टकटकी लगाये भूमि को निहारने लगता। भूमि के केश खुले थे। वह धीरे-धीरे विशाल की तरफ बढ़ रही थी। विशाल कुर्सी हटाकर भूमि के सामने जा खड़ा हुआ। भूमि ने विशाल को गले से लगा लिया। विशाल और भूमि एक साथ बेड पर थे। सुबह भूमि की आखें विलंब से खुली। खिड़की के पास खड़ा होकर विशाल आसूं बहा रहा था। भूमि ने सहानुभूतिपूर्ण उसके कंधे पर हाथ रखा। विशाल उसका हाथ छिंटककर दूर चला गया।


क्रमशः ........... 

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


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*तुम मेरे हो-कहानी* 6


*एक कहानी रोज़-236 (09/12/2020)*


       *विशाल* अब भूमि से दूर-दूर रहने लगा था। उसे आत्मसात हुआ कि उस रात भूमि और उसके बीच जो कुछ भी हुआ उसमे सारी गलती उसी की थी। भूमि ने प्रेम के साथ संवेदना व्यक्त की और विशाल को बहुत समझाया कि वह आत्मग्लानी न करे मगर विशाल सिर्फ पछताये जा रहा था। इन सब में यह अच्छा हुआ कि वह अपनी पढ़ाई के प्रति गंभीर हो गया। उसकी दिनचर्या में पढ़ाई के अलावा अन्य कुछ महत्वपूर्ण नहीं था। यह देखकर भूमि को स्वयं के त्याग पर उतना अफसोस नहीं हुआ। विशाल की मुख्य परिक्षा अन्य शहर में थी। भूमि उसके साथ गयी। कुछ दिनों तक उन्हें उसी शहर में एक साथ होटल में रहना पड़ा। विशाल के चेहरे की खुशी बता रही थी की उसने सभी प्रश्न पत्र बहुत अच्छे से हल किये थे।

मानसी उस दिन भूमि के घर आई। रविवार का दिन था। सुबह-सुबह भूमि दो बार उल्टियां कर चूकी थी। विशाल जानबूझकर सबकुछ समझते हुये भी नासमझी का प्रयास करने लगा। इधर भूमि भी मानसी के समक्ष सामान्य बने रहने का प्रयास करती।

"क्या बात है भूमि? तेरी तबीयत ठीक नहीं है क्या?" मानसी ने भूमि के कंधे पर हाथ रखते हुये कहा।

"अरे नहीं रे! ऐसी कोई बात नहीं है। कुछ खाने-पीने में आ गया था। बस। अब ठीक हूं। आ बैठ, बहुत दिन हुये हमने एक साथ बैठकर गपशप नहीं की।" भूमि ने मानसी को बेड पर बिठाते हुये कहा।

"हां यार! विशाल के चक्कर में हम दोनों कितने दूर हो गये।" मानसी ने बोला।

"ऐसी कोई बात नहीं। दिल के रिश्ते कभी दिल से दूर होते है क्या?" भूमि बोली।

दोनों परस्पर गले लग गये।

विशाल बाहर गार्डन में सैर करने चला गया।

"अच्छा तु बता। क्या बताना चाहती थी तु मुझे।" भूमि ने पूछा।

"अरे हां! तुझे पता है मुस्कान और राज शादी कर रहे है!" मानसी ने बताया।

"क्या कहा? अरे! लेकिन राज तो मुस्कान की मदर डिम्पल से प्यार करते थे न!" भूमि ने पूछा।

"हां सही कहा। लेकिन मुस्कान की मां डिम्पल को जब पता चला कि उसकी बेटी भी उनके प्रेमी राज से प्यार करने लगी है तब उन्होंने राज से साफ-साफ कह दिया की उन्हें मुस्कान से ही शादी करनी होगी।" भूमि ने आगे कहा।

"क्या राज जी मान गये?" भूमि ने आगे पूछा।

"पता नहीं! लेकिन इतना पता है कि डिम्पल जी ने राज को अपने प्यार का वास्ता दिया था। बस! राज को मानना ही पड़ा!" मानसी ने कहा।

"अरे! लेकिन ये तो गल़त बात है। प्यार मां से और शादी बेटी से!" भूमि ने कहा।

"ये प्रेमरोग है ही कमाल का भूमि! इसमें वह सब करना पड़ता है जो हमें पसंद नहीं है।" मानसी ने कहा।

"सही कहा। लेकिन मुस्कान को तो समझना चाहिये था। कितनी मुश्किलों से विधवा डिम्पल जी ने उसे पाला पोसा। मुस्कान को तो बहुत से लड़के मिल जाते, लेकिन डिम्पल जी के लिए तो केवल राज ही थे न! अब क्या डिम्पल जी फिर से किसी ओर से प्यार कर पायेंगी?" भूमि ने कहा।

"नहीं! कभी नहीं। राज कि कितनी मन्नतों के बाद वह शादी के लिए राज़ी हुई थी। अब डिम्पल जी फिर से किसी दूसरे पुरूष को अपने दिल में जगह नहीं दे पायेंगी।।" मानसी ने कहा।

इतने में विशाल पुनः फ्लेट के अंदर आ गया।

"मानसी दीदी! अगले महिने मेरा इन्टरव्यू है! दिल्ली में। अभी मेल आया है।" विशाल ने खुशी-खुशी बताया। उसके हाथ में मोबाइल था।

"अरे! वाह! काॅन्ग्रेस एण्ड बेस्ट ऑफ लक!" मानसी ने कहा।

"थैंक्यूं।" विशाल बोला और दौड़कर भूमि के गले से जा लगा।

"मुझे पुरा यकिन है तुम इन्टरव्यू में भी सफल होगे।" भुमि बोली।

विशाल प्रसन्न होकर अंदर कमरे में चला गया।

"तेरे पेट में पल रहा बच्चा विशाल का है न भूमि?" मानसी ने पूछा।

भूमि के पैरों तले जमींन खींसक गयी। जो बात वह तीन महिने से छुपा रही थी यकायक मानसी ने कैसे जान ली?

उसके चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थी। मानसी अब भी उसे संदेह से देख रही थी। भूमि उससे नज़र बचाने का पुरा और निर्थक प्रयास करने लगी।


क्रमशः ............


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