तुम मेरे हो (भाग-7)

 *तुम मेरे हो-कहानी (7)*

*एक कहानी रोज़-237 (10/12/2020)*

          *"अब* तो यूं लगने लगा है मानसी कि बस यही पर  ठहर जाऊं?" भूमि ने कहा।

"तु पागल हो गयी है? अरे! हम सब जानते है विशाल अब पहले से ज्यादा स्वस्थ है और एक न एक दिन उसके परिवार वाले उसे ढुंढते हुये यहां आ ही जायेंगे। विशाल उनके साथ चला जायेगा।" मानसी ने समझाया।

"मैं जानती हूं मानसी। विशाल को जैसे-जैस याद आता गया, उसने अपनी पिछली जिन्दगी के विषय में मुझे बहुत कुछ बताया है। नागपूर में उसकी भरी-पूरी फैमली है। निशा नाम की उसकी गर्लफ्रेंड भी है जो स्वयं एक आइएएस ऑफिसर है। विशाल ने बहुत मेहनत की थी  लेकिन आईएएस का इन्टरव्यू में पास न हो सका। निशा ने उसे बहुत खरी-खोटी सुनाई। जिसके कारण विशाल बहुत आहत हुआ। उसे इतना सदमा लगा कि वह कब घर छोड़कर ट्रेन में बैठ गया उसे स्वयं पता नहीं चला। इंदौर आकर वह सड़को पर मारे-मारे फिर रहा था। फिर एक दिन वह मुझे मिला, बस तब ही से विशाल मेरे पास है।" भूमि बोली।

"इससे तो साफ जाहिर होता है कि विशाल आईएएस बनते ही अपने घर लौट जायेगा और तु उसके बच्चे को जन्म देना चाहती है।" मानसी गुस्से में आ गयी।

"हां मानसी! मैं विशाल से बहुत प्यार करने लगी हूं। और मुझे यह पता है कि एक दिन विशाल मुझे छोड़कर चला जायेगा। विशाल न सही तो उसकी निशानी के साथ ही अपनी बाकी जिन्दगी गुजार लुंगी।" भूमि के स्वर शांत रस से भरे थे।

दरवाजे की आड़ में खड़ा विशाल भूमि और मानसी की सारी बातें सुन रहा था। भूमि की बाते सुनकर उसकी आखें भीग गयी।

"अच्छा ये सब छोड़। तु बता! दिल्ली चलेगी हमारे साथ?" भूमि ने पुछा।

"अरे! मगर मैं?" मानसी ने पुछा।

"हां! विशाल के इन्टरव्यू के बाद हम पुरी दिल्ली घुमेंगे। मौज-मस्ती करेंगे।" भूमि उत्साहित होकर बोली।

"अरे! लेकिन बाॅस हम दोनों को एकसाथ छुट्टी देगा क्या?" मानसी ने पुछा।

"वो सब तु मुझ पर छोड़ दे। तु हम चारों की ट्रेन की टीकीट बुक करवा दे।" भूमि ने कहा।

"चार कौन?" मानसी ने पुछा।

"मैं, विशाल, तु और हरीश!" भूमि ने कहा।

हरीश का नाम सुनते ही मानसी के चेहरे पर चमक आ गयी।

"हरीश जी! हमारे साथ?" मानसी शर्माते हुये बोली।

"हां! तु पुछकर तो देख! मुझे पुरा यकिन है मना नहीं करेंगे।" भूमि ने कहा।

मानसी प्रसन्न थी। उसने हरीश को फोन लगा दिया।

"ठीक है मानसी जी! हम आपके साथ दिल्ली चलेंगे।" फोन पर हरीश ने मानसी को सहमती दे दी।

मानसी के पैर थिरकने लगे। हरीश की स्वीकृति ने उसे भाव-विभोर कर दिया।

आधी रात में विशाल अपने कमरे से निकलकर भूमि के कमरे में दाखिल हुआ। भूमि चैन से बेड पर सो रही थी। उसके चेहरे पर बालों की लटे बिखरी थी। विशाल दबे पांव भूमि के नजदीक जाने की कोशिश करने लगा। उसके चेहरे पर डर के भाव उभर आये थे। मनोवेग में आकर वह आगे और आगे बढ़ता रहा। भूमि अब उसके एकदम पास थी। वह झूका और बेड पर बैठ गया। भूमि कमर के बल सीधे लेटी थी। उसकी आंखें बंद थी। विशाल के चेहरे पर पसीने की बुंदे साफ देखी जा सकती थी। उसने स्वयं को आगे की ओर झूकाया। भूमि अपने शरीर पर अवांछित स्पर्श अनुभव करने लगी। यकायक उसकी आंखें खुल गयी। उसने जो देखा वह आश्चर्यचकित कर देने वाला था। विशाल भूमि के पेट पर अपने कान लगाये हुये था। जैसे वह कुछ सुनने की कोशिश कर रहा हो।

"विशाल!" भूमि ने कहा।

विशाल चौंककर खड़ा हो गया।

"वोsssभूमि! मैंsss तो sss बस यूं ही।" विशाल झेंप गया था।

भूमि ने विशाल का हाथ पकड़ा और उसे अपने पास बेड पर बैठने का आग्रह किया। विशाल बैठ गया। भूमि ने संकेतों से उसे अपने पेट पर पुनः सिर रखने को कहा। विशाल अब नि:सकोच भूमि के पेट पर अपना सिर रखकर उसके गर्भ में पल रहे बेबी की आवाज़ सुनने का प्रयास करने लगा। भूमि सीधे लेटी हुई थी। उसने अपने दोनों हाथों की माला विशाल के गले पर डाल दी। विशाल और भूमि बड़े दिनों बाद एक साथ बेड शेयर कर  रहे थे।


क्रमशः .........

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


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लेखक--

जितेन्द्र शिवहरे 

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