तुम मेरे हो भाग-9

    तुम मेरे हो- कहानी भाग-9

एक कहानी रोज़-240 (13/12/2020)

"पद्मिनी और विशाल शादी कर रहे है और तुझे कोई फर्क नहीं पड़ता?" मानसी गुस्से में थी।

"देख मानसी! पद्मिनी विशाल का पहला प्यार है और पद्मिनी ने भी विशाल के अलावा किसी ओर को अपने मन मन्दिर में नहीं बिठाया। इट्स मीन वो दोनों एक-दुसरे से कितना प्यार करते हैं?" भूमि बोली।

"तू नहीं करती विशाल से प्यार?" मानसी ने आगे पुछा।

"मैं! मैं! विशाल से प्यार नहीं! उसकी पूजा करती हूं।" भूमि की आवाज़ भारी हो गयी।

"विशाल को यहां तक लाने वाली तू! उसे एक आईएएस ऑफिसर बनाने वाली तू! और वो शादी कर रहा है पद्मिनी से। उस पद्मिनी से, जिसने विशाल के घर छोड़कर चले जाने के बाद उसे ढूंढने तक की कोशिश नहीं की। विशाल कहां है किस हाल में? कभी आकर देखा तक नहीं। क्योंकि उसे पता चल गया था कि विशाल आईएएस न बनने के कारण दिमागी रूप से पागल हो गया है और एक पागल से कौन शादी करता है।" मानसी बोली।

"तू मेरी चिंता मत कर मानसी! मैं ठीक हूं।" भूमि बेड पर लेटी थी।

"ये तेरा नौवां महिना चल रहा है! तु कुंवारी मां बनने वाली है और तु कहती है मैं तेरी चिंता न करूं? नहीं मैं विशाल से अभी फोन पर बात करती हूं।" मानसी ने मोबाइल हाथ में ले लिया।

"नहीं! मानसी नही! आज विशाल और पद्मिनी की सगाई है और मैं नहीं चाहती की विशाल दुःखी होकर फंक्शन छोड़कर मुझे देखने आ जाए।" भूमि ने मानसी का हाथ थामकर उसे विशाल को फोन लगाने से रोका।

मानसी स्तब्ध थी। आज के युग में भूमि का विशाल के प्रति अगाथ प्रेम देखकर वह अपने आंसु रोक न सकी।

"अच्छा ये तो बता! तु और हरीश कब शादी कर रहे है?" भूमि ने पूछा।

"कभी नहीं!" मानसी ने जवाब दिया।

"क्यों?" भूमि ने फूछा।

"क्योँ! क्या? भूल गयी। हम दोनों ने तय किया था कि हमारी शादी एक ही दिन होगी वो भी एक ही मंडप में।" मानसी ने बताया।

"अब यह मुमकिन नहीं है मानसी। मैं तुझसे माफी मांगती हूं कि मैं अपना प्राॅमिस निभा नहीं सकी।" भूमि की आंखें भीग चूकी थी।

मानसी उसके गले जा लगी। दोनों सहेली फूटकर रोने लगी।

इधर नागपूर में सगाई सेरेमनी से कुछ घंटे पुर्व होटल के टैरेस पर विशाल पद्मिनी का इंतजार कर रहा था। उसने पद्मिनी को सबकुछ बता दिया था। वह चाहता था कि उसके और भूमि के बीच जो भी घटित हुआ, वह सब  पद्मिनी को पता रहे। अगर यह सुनने के बाद पद्मिनी  विशाल से शादी न करना चाहे तो उसे कोई ऐतराज नहीं था। विशाल जानता था कि भूमि विशाल के अलावा किसी ओर से कभी शादी नहीं करेगी। इसलिए वह भूमि और अपने होने वाले बच्चें का ध्यान रखना चाहता था। वह यह सबकुछ पद्मिनी के संज्ञान में लाकर करना चाहता था ताकि उन दोनों के गृहस्थ जीवन में कोई क्लेश न उत्पन्न हो।

"विशाल! मैं जानती हूं कि तुम्हें बच्चें बहुत अच्छे लगते है। और....और बच्चे का सुख तो तुम्हें मैं भी दे सकती हूं।" पद्मिनी बोली। वह विशाल के हृदय से लगकर खड़ी थी। विशाल की पसंद की गुलाबी साड़ी में पद्मिनी किसी परी से कम नहीं लग रही थी।

"शायद तुम समझी नहीं मैं क्या कहना चाहता हूं।" विशाल ने आगे कहा।

"मुझे पता है विशाल! भूमि के पेट में तुम्हारा बच्चा है जो किसी भी वक्त इस दुनिया में आ सकता है और तुम चाहते हो मैं तुम्हें अपने बच्चें और भूमि दोनों से मिलने-जुलने की छूट दूं।" पद्मिनी बोली।

विशाल चाहता था कि पद्मिनी अपनी कही उक्त बातों पर सहमति दे। मगर पद्मिनी भी एक आम औरत थी जो अपनी सौतन को कभी स्वीकार्य नहीं कर सकती थी। पद्मिनी ने भूमि और उसके बच्चें को अपनाने से साफ इंकार कर दिया। उसने विशाल से भी स्पष्ट कह दिया की वह भूमि को भूल जाये। मगर विशाल भुमि को भुला न सका। वह बोझिल मन से ट्रेनिंग पर रवाना हो रहा था। दिल में भूमि और अपने होने वाले बच्चें की चिंता उसके चेहरे पर ऊभर आयी थी। पद्मिनी ने विशाल को समझा-बुझाकर ट्रेनिंग हेतु मसूरी विदा किया।



क्रमशः ..........

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


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लेखक--

जितेन्द्र शिवहरे 

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