उपहार-लघुकथा

 उपहार-लघुकथा

एक कहानी रोज़-239 (12/12/2020)

         *निधि* कल पुरे आठ वर्ष की हो जायेगी। हर वर्ष जन्मदिन पर उसे अपने पिता से मनपसंद उपहार मिला करता है। इस बार भी जन्मदिन गिफ्ट को लेकर वह उत्साहित थी।

"बोलो बिटीयां रानी! इस जन्मदिन पर तुम्हें क्या चाहिये?" निधि के पिता आदित्य ने पूछा। वे ऑफिस जाने की तैयारी में थे। निधि की मां सुमन किचन में नाश्ता बना रही थी।

"पापा! मुझे इस बार गिफ्ट नहीं आपका पक्का वाला प्राॅमिस चाहिये।" निधि ने अपने पिता का हाथ पकड़कर कहा।

आदित्य और सुमन दोनों निधि के इस कथन पर आश्चर्यचकित थे।

"कैसा प्राॅमिश निधि?" आदित्य ने आगे पूछा।

"यही है कि अब से आप ममा से प्यार से बात करेंगे, गुस्से से नहीं। उनसे चिढ़ेगें नहीं और अपनी बात सुनाने के बाद ममा की भी सुनेंगे।" निधि बोली।

सुमन नाश्ते की टेबल के पास खड़ी-खड़ी जड़ हो गयी थी। आदित्य भी कैसे रियेक्ट करे, यह समझ नहीं पा रहा था।

"टीवी में पापा लोग कितने अच्छे होते है। वो मम्मीयों से कितना प्यार करते है। कभी दुतकारते नहीं, गालियां नहीं बकते और कभी ममा पर हाथ नहीं उठाते। आप आज मुझे वैसे ही अच्छे वाले पापा बनने का प्राॅमिस कीजिए। यही मेरा जन्मदिन का गिफ्ट है।" निधि बोली। उसने स्कूल बेग पीठ पर टांग लिया। स्कूल वेन की आहट सुनकर वह घर से बाहर दौड़ पड़ी। आदित्य उसे घर के बाहर तक छोड़ने आया। उसका सिर सुमन के आगे झुका था। सुमन ने आदित्य का हाथ पकड़ा और उसे नाश्ते की टेबल तक ले गयी। आदित्य को आज एहसास हुआ की उसका व्यवहार सिर्फ सुमन को ही हर्ट नहीं करता बल्की इससे उसकी बेटी निधि भी दुःखी है। उसने निश्चय लिया कि वह अपना व्यवहार बदलकर निधि को उसके जन्मदिन का यह उपहार जरूर देगा।


समाप्त 

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


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लेखक--

जितेन्द्र शिवहरे 

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