लिपस्टिक-कहानी

        एक कहानी रोज़

*लिपस्टिक-कहानी*

     *रीमा* को बोल्ड रेड कलर की लिपस्टिक बहुत पसंद थी। इतनी कि बिना इसे होठों पर लगाये एक दिन नहीं रहती। युवराज को यह पसंद नहीं था। जब से दोनों की सगाई हुई थी, लिपस्टिक के विषय में कई बार बहस हो चुकी थी। युवराज नहीं चाहता था कि उसकी होने वाली पत्नी को देखकर अन्य लोग छींटा-कशी करे। वह नौकरी पेशा था। अतएव एक सीधा-सादा वैवाहिक जीवन जीना चाहता था। व्यर्थ के आडम्बर उसे परेशान करते थे। लिपस्टिक की रोक से रीमा को कढ़ा ऐतराज था। वह किसी भी कीमत पर यह बलिदान नहीं देना चाहती थी। उसने युवराज से तो कुछ छोड़ने को नहीं कहा! फिर युवराज उसके प्रति ऐसी हठधर्मीता क्यों दिखा रहा था? आज अगर युवराज की बात मानकर वह लिपस्टिक लगाना छोड़ देगी तो कल को उसके कहने पर न जाने क्या-क्या छोड़ना पड़ेगा? "नहीं! मैं नहीं झूंकूगीं। मैं शादी के बाद कि दासता स्वीकार नहीं करूँगी, चाहे वह मेरा होने वाला पति ही क्यों न हो।"  रीमा ने आत्म निश्चय किया।

युवराज को रीमा का दृढ़ निश्चय पता था। अतः उसने भी एक कठोर निश्चय लिया। वह रीमा से संबंध तोड़ने तक को राज़ी हो गया। जब यह रीमा को ज्ञात हुआ तब वह भी युवराज के निर्णय को स्वीकारने का दंभ भरती नज़र आयी।

युवराज और रीमा दोनों ने ही एक-दुसरे से दुरी बना ली। दोनों की सगाई टूट गयी। यह समय दोनों के लिए आत्म मंथन का था। युवराज अक्सर विचारणीय मुद्रा में दिखाई देता। यही हाल रीमा का भी था। जरा-सी बात को महत्व देकर दोनों ने अपने-अपने जीवन में आने वाली खुशियों को लौटा दिया था। 'क्या हुआ जो रीमा लिपस्टिक की श़ौकीन है! जीवन में हर किसी का कोई न कोई श़ौक तो अवश्य होता है। जैसा मुझे स्वीमिंग का है। और यह श़ौक ही तो तो इंसान को सदैव आशान्वित और उत्साहित बनाये रखता है।' युवराज विचार कर रहा था। रीमा भी सोच रही थी। उसने युवराज की खातिर लिपस्टिक त्यागने का मन बना लिया था। 

'युवी ने आखिर मांगा ही क्या था मुझसे! यही की मैं अब से लिपस्टिक न लगाऊं!' रीमा सोच रही थी।

'दान-दहेज में उसे कुछ नहीं चाहिये। मुझे जाॅब करने की फ्रीडम भी देने के लिए तैयार है! ठीक है। अब से मैं लिपस्टिक नहीं लगाऊंगी। और आज युवराज से मिलकर यह सब कह दूंगी।' रीमा सैण्डिल पहनकर तेज कदमों से युवराज से मिलने के लिए घर से बाहर निकल पड़ी।


समाप्त 

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


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लेखक--

जितेन्द्र शिवहरे 

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