हास्य-व्यंग्य-देर रात का कवि सम्मेलन

 *देर रात का कवि सम्मेलन-हास्य व्यंग्य*

          *एक* कवि मित्र से मैंने कहा- "कृपया देर रात तक कवि सम्मेलन न किया करे। रात में पुलिस रोका-टोकी करती है और चालान बन जाता है क्योंकि मेरी मोटरसाइकिल के कागज कम्पलीट नहीं है।"

कवि मित्र बोले- "अरे! इसमें डरने की कोई बात नहीं है। पुलिस वालों को कह दिया करो कि आप कवि है और कवि सम्मेलन से लौट रहे है। कवि नाम सुनते ही वे तुम्हें छोड़ देंगे। एक समय मैंने भी ऐसा ही किया था।"

मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। अगले कवि सम्मेलन में देर रात लौटते समय मैंने पुलिस वालों से वैसा ही कहा जैसा उस कवि मित्र ने मुझे पुलिस से कहने को कहा था।

पुलिस वाले कवि नाम सुनते ही बाइक सहित मुझे भी पुलिस स्टेशन ले गये। रातभर लाॅकअप में रखा और सुबह छोड़ा। मैं बहुत गुस्से में अपने उस कवि मित्र के घर पहूंचा।

"क्यो मित्र! आपने तो कहा था कि कवि नाम बोलते ही पुलिस मुझे छोड़ देगी। लेकिन उन्होंने मुझे नहीं छोड़ा।मुझे रात भर लाॅकअप में रखा। टेबल कुर्सी और सलाखों को कविताएं सुनानी पड़ी। और आप कहते थे कि आपको कवि नाम सुनते ही छोड़ दिया था।"

कवि मित्र बोले-

"हां! सही है मुझे भी पुलिस ने छोड़ दिया था, मगर सुबह। रातभर मैं भी लाॅकअप में था और मुझे भी टेबल कुर्सी और सलाखों को कविताएं सुनानी पड़ी थी।"


समाप्त 

-------------------------

प्रमाणीकरण- हास्य-व्यंग्य मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। रचना प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


©®सर्वाधिकार सुरक्षित

लेखक--

जितेन्द्र शिवहरे 

177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश

मोबाइल नम्बर

7746842533

8770870151

Jshivhare2015@gmail.com Myshivhare2018@gmail.com


टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हरे कांच की चूड़ियां {कहानी} ✍️ जितेंद्र शिवहरे

लव मैरिज- कहानी

तुम, मैं और तुम (कहानी)